विश्व किडनी दिवस किडनी से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के प्रभाव को कम करने के लिए, स्वास्थ्य में किडनी की महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए वैश्विक जागरूकता अभियान है। इस दिवस पर दिनांक 10 मार्च को राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान, मोहनपुर, दरभंगा एवं राजकीय कामेश्वर सिंह आयुर्वेदिक चिकित्सालय ,कामेश्वर नगर, दरभंगा में किडनी रोग के कारण बचाव एवं निवारण के प्रति जागरूकता हेतु शिविर का आयोजन किया जाएगा। प्राचार्य प्रो. दिनेश्वर प्रसाद ने यह बताया कि वर्तमान समय में अप्राकृतिक जीवन शैली एवं अप्राकृतिक आहार के कारण किडनी रोग में तेजी से वृद्धि हो रही है। आज ‘रीनल फेल्योर’ समाज का आम रोग बनता जा रहा है ।आयुर्वेद से रीनल फेल्योर चिकित्सा में विश्व के लिए आशा की किरण जग रही है। विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद जिसका प्रथम लक्ष्य स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं दूसरा लक्ष्य रोगी पुरुष के रोग की चिकित्सा करना है। हमारी किडनी जीवन पर्यंत प्राकृतिक रूप से काम करती रहे, इसके लिए हमें आयुर्वेदिक दिनचर्या, ऋतुचर्या के साथ-साथ आयुर्वेद में वर्णित स्वास्थ्य संरक्षण के सिद्धांतों को पालन करना होगा ।महर्षि चरक के अनुसार नए चावलों का अधिक सेवन, घी के साथ नया मटर, नये उड़द की दाल, जलीय पशु- पक्षियों के मांसो का अधिक सेवन, चीनी से बनी मिठाइयों का अधिक प्रयोग ,व्यायाम न करना, बहुत सोना, लेटे रहना और बहुत देर तक बैठे रहना , मद्यपान, धूम्रपान एवं नशा पान आदि किडनी रोग होने के प्रमुख कारण है। मिथिलांचल की गणना आनुप प्रदेश के रूप में होती है। यहां मुख्य रूप से भोजन में दही और मछली का सेवन किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार जलीय पशु पंछी के मांस रस का अधिक सेवन, दूध का अधिक सेवन ,दही का अधिक सेवन किडनी रोग उत्पन्न करने में कारण होते हैं। रक्तचाप एवं मधुमेह की स्थिति लगातार बनी रहने के कारण तथा दर्द निवारक आदि अंग्रेजी दवाओं के दुष्परिणाम के फल स्वरुप किडनी फेल्योर की स्थिति बनती है । गुर्दे हमारे शरीर में खून से विषैले पदार्थों और अनावश्यक जल को निकाल कर उसे साफ करते हैं साथ ही सारे टॉक्सिंस मूत्र के जरिए शरीर से बाहर निकालने में मदद भी करते हैं। यदि किडनी ठीक न रहे तो रक्त शुद्ध नहीं होगा और सेहत बिगड़ने लगेगी। कम पानी पीना, तली भुनी चीजों का अधिकांश सेवन करना, ज्यादा नमक का सेवन ,संक्रमण को नजरअंदाज करना आदि खराब आदतें किडनी की सेहत को खराब करने के लिए जिम्मेदार होती है।

प्राचार्य प्रो.दिनेश्वर प्रसाद ने गुर्दे के रोगियों की आहार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि गुर्दे रोग से पीड़ित व्यक्ति को अम्लीय पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए । क्षारीय पदार्थ का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लाना चाहिए। तैलीय पदार्थ र्जैसे-पकौड़ी ,कचौड़ी, मैदा जनित वस्तुएं, चावल, शक्कर, बेसन अम्लीय पदार्थ माने जाते हैं। गुर्दे के रोगी को योग- प्राणायाम अवश्य करना चाहिए। किडनी रोग के इलाज में शरीर के शोधन के साथ-साथ यकृत और वृक्क को बल प्रदान करने वाली मूत्र प्रवर्तन कराने वाली औषधियां भी सेवन करना चाहिए ।इसमें सर्वतोभद्र वटी ,चंद्रप्रभा वटी ,पूनर्नवादि मंडूर ,पुनर्नवाष्टक क्वाथ, पंचतृणमूल एवं वरुण क्वाथ आदि औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।
महर्षि चरक अनुसार फलत्रिकादि क्वाथ के प्रयोग से सभी प्रकार के मूत्र संबंधी रोग को दूर किया जा सकता है। मूंग और आंवले के नित्य प्रयोग करने से मूत्र संबंधी रोग नहीं होते हैं।

प्राचार्य ने यह जानकारी दी कि शिविर में किडनी संरक्षण एवं किडनी रोग में प्रयुक्त होने वाली आयुर्वेदिक औषधियों का प्रर्दशनी महाविद्यालय के मुख्य परिसर मोहनपुर में लगाकर आमजनों के बीच जागरूकता पैदा की जायेगी।