*’नजीर अकबरावादी और भारतीय संस्कृति’ विषयक व्याख्यान में प्रो मुश्ताक, प्रो रियाज, डा फुलो, प्रो आफताब आदि ने रखे विचार*

*नजीर भारत की साझी संस्कृति के अद्भुत प्रतिनिधि कवि, जिन्होंने लोकवाणी को साहित्य वाणी बनाया- प्रो मुश्ताक*

*नजीर जनमानस के शायर, जिनकी रचनाओं में इंसान और इंसानियत की प्रधानता- प्रो रियाज*

*नजीर नागार्जुन सदृश्य जनभाषा के कवि, जिनकी शायरी का मैथिली भाषा में होगी प्रस्तुति- डा फुलो*

सी एम कॉलेज, दरभंगा के उर्दू विभाग के तत्वावधान में राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद् , शिक्षा विभाग, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित मौलाना मजहरूल हक विस्तारित व्याख्यान के तहत “नजीर अकबरावादी और हिन्दुस्तानी संस्कृति” विषयक कार्यक्रम आयोजित किया गया। महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डा फुलो पासवान की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो मुश्ताक अहमद, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू एवं कश्मीर के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो मो रियाज अहमद, सम्मानित अतिथि के रूप में प्रो मो आफताब अशरफ, स्नातकोत्तर उर्दू विभागाध्यक्ष, ल ना मिथिला विश्वविद्यालय सहित अनेक वक्ताओं ने विचार व्यक्त किये। दीप प्रज्वलन द्वारा प्रारंभ कार्यक्रम में डा मुजफ्फर इस्लाम, प्रो इफ्तिखार अहमद,डा वसी अहमद, डा बदरुद्दीन, डा मोतिउर रहमान, प्रो एहतेशामुद्दीन, डा अब्दुल, अनवर आफाकी, प्रो इंदिरा झा, प्रो मंजू राय, डा पी के चौधरी, डा आर एन चौरसिया,डा आलोक राय, डा ललित शर्मा, डा आलोक रंजन, डा प्रीति कनोडिया, प्रो रागिनी रंजन, डा मसरूर सोगरा, डा नफासत कमाली, डा तनीमा कुमारी, डा रीता दुबे, डा मीनाक्षी राणा, डा अभिलाषा, डा विजयसेन, डा एकता श्रीवास्तव, डा शैलेंद्र श्रीवास्तव, डा आशीष, डा मनोज सिंह, प्रो अखिलेश राठौर, डा रूपेंद्र झा, ड़ा मयंक श्रीवास्तव सहित 100 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया। अतिथियों का स्वागत पाग-चादर एवं पुष्पगुच्छ से किया गया।
अपने संबोधन में प्रो मुश्ताक अहमद ने कहा कि नजीर हिंदुस्तानी जुबान के शायर थे, जिनकी कविता में भारतीय सभ्यता व संस्कृति तथा बदलती हुई सामाजिक जीवन का चित्रण है। नजीर भारत की साझा संस्कृति के अद्भुत प्रतिनिधि कवि थे, जिन्होंने लोकवाणी को साहित्य वाणी बनाया। इन्होंने आमलोगों की भावनाओं को साहित्य में व्यक्त किया।
प्रो मो रियाज अहमद ने कहा कि नजीर जनमानस के शायर थे, जिनकी रचनाओं में इंसान और इंसानियत की प्रधानता है। उन्होंने उर्दू, अरबी, ब्रजभाषा, अवधी व पंजाबी आदि भाषाओं में कविता लिखा। नजीर विरले कवि हैं, जिन्होंने हिंदू देवी- देवताओं व पर्व-त्योहारों पर धर्म- मजहब से ऊपर उठकर शायरी लिखा। आज के दौर में सामाजिक समरसता के दृष्टिकोण से नजीर को पढ़ना- समझना बहुत आवश्यक है।
प्रो मो आफताब अशरफ ने कहा कि नजीर की परवरिश अमीरी में हुई, परंतु इनकी कविता में गरीबों व दबे- कुचलों की बातें मुखर हुई। हिंदी कवियों ने इनकी शायरी को जन-जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाया। नजीर हमेशा कृष्ण स्थल वृंदावन व मथुरा आदि जाया करते थे।
अध्यक्षीय संबोधन में डा फुलो पासवान ने कहा कि साहित्य पर देश, काल और परिस्थिति का गहरा प्रभाव पड़ता है। नजीर नागार्जुन सदृश्य जनभाषा के कवि थे, जिनकी शायरी का मैथिली भाषा में प्रस्तुतीकरण किया जाएगा। नजीर ने गरीबों, पिछड़ों व मेहनतकशों की दर्द- पीड़ा को बखूबी समझकर साहित्य में वर्णित किया। नजीर ने लखनवी नवाबी- संस्कृति से दूर रहकर सूफी आंदोलन को नया रूप दिया। उनकी रचनाएं दिल को झकझोरती हैं। कार्यक्रम के संयोजक डा अब्दुल हई के सफल संचालन में आयोजित व्याख्यान में आगत अतिथियों का स्वागत उर्दू विभागाध्यक्ष डा जफर आलम ने किया, जबकि कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान जन मन..से हुआ।