‘संस्कृत- साहित्य में वर्णित वसुधैव कुटुंबकम् की भावना’ विषय पर प्रो बच्चन, प्रो रेणुका, डा घनश्याम, डा चौरसिया, डा सुरेश, डा भक्तिनाथ व डा ममता ने रखे विचार।
संस्कृत सप्ताह के समापन समारोह में भाषण, क्विज तथा श्लोक वाचन प्रतियोगिताओं के सफल प्रतिभागियों को किया गया सम्मानित।
#MNN@24X7 दरभंगा, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्वावधान में मनाए जा रहे संस्कृत सप्ताह समारोह का समापन पीजी संस्कृत विभाग के सभागार में विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। दीप प्रज्वलित कर समापन समारोह सह “संस्कृत- साहित्य में वर्णित वसुधैव कुटुंबकम् की भावना” विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन विश्वविद्यालय के मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो ए के बच्चन ने किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के साहित्य एवं व्याकरण संकायाध्यक्ष प्रो रेणुका सिन्हा, विश्वविद्यालय के पेंशन पदाधिकारी डा सुरेश पासवान सम्मानित अतिथि, मिल्लत कॉलेज, दरभंगा के पूर्व समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डा भक्तिनाथ झा विशिष्ट अतिथि, स्वागत कर्ता एवं विषय प्रवर्तक के रूप में संस्कृत- प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया तथा संचालक एवं धन्यवाद कर्ता संस्कृत- प्राध्यापिका डा ममता स्नेही आदि ने अपने- अपने विचार रखे।
अपने उद्घाटन संबोधन में प्रो ए के बच्चन कहा कि वसुधैव कुटुंबकम् की भावना भारतीय दर्शन के सार्वभौमिक भाईचारा को व्यक्त करता है। इससे सामंजस्य पूर्ण समाज के निर्माण में मदद मिलेगी। हम सब के प्रति दया, करुणा एवं बंधुत्व का भाव रखें। उन्होंने कहा कि पीजी संस्कृत विभाग द्वारा लगातार कार्यक्रमों के आयोजनों से संस्कृत के प्रति छात्रों में लगाव बढेगा।
मुख्य अतिथि प्रो रेणुका सिन्हा ने कहा कि प्राचीन एवं देवभाषा संस्कृत श्रेष्ठ और पवित्र भाषा है, जिसमें सर्वत्र वसुधैव कुटुंबकम् की भावना दीख पड़ती है। संस्कृत- साहित्य में वर्णित विश्वबंधुत्व की भावना की आज अधिक प्रासंगिकता है। उन्होंने संस्कृत सप्ताह के दौरान अनेक विषयों पर विस्तृत एवं गंभीर चर्चा की सराहना करते हुए कहा कि भारत की प्रतिष्ठा संस्कृत एवं संस्कृति के कारण ही है।
सम्मानित अतिथि के रूप में मिथिला विश्वविद्यालय के पेंशन पदाधिकारी डा सुरेश पासवान ने कहा कि भारत को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठा एवं पहचान दिलाने वाली संस्कृत भाषा आदिकाल से रही है तथा जब तक धरती रहेगी, तब तक विद्यमान रहेगी। उन्होंने कहा कि संस्कृत शब्दों के उच्चारण मात्र से शारीरिक एवं मानसिक दुःख दूर होते हैं। साहित्य पैत्रिक नहीं, बल्कि अर्जित सामाजिक संपत्ति है।
विशिष्ट अतिथि डा भक्तिनाथ झा ने कहा कि इस भावना से हम जिए और दूसरों को भी जीने दें। इसके अभाव में हम सब चैन से नहीं रह सकते। संस्कृत मानवता की भाषा है जो समरस समाज बनाने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि संस्कृत हमारा चरित्र एवं व्यवहार बेहतर बनाता है।
अध्यक्षीय संबोधन में डा घनश्याम महतो ने संस्कृत- दिवस को श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने की चर्चा करते हुए बताया कि आज से 54 वर्ष पूर्व 1969 से इस दिवस को मनाने की परंपरा शुरू हुई। वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से ही भारत पहले विश्वगुरु था और आगे पुनः विश्वगुरु बनेगा। उन्होंने संस्कृत में निहित ज्ञान- विज्ञान की बातों को रखते हुए बताया कि आज इसरो प्रमुख सहित सभी वैज्ञानिक, अभियंत्रण एवं प्रबंधन आदि के लोग भी संस्कृत की महत्ता को स्वीकारते हैं।
स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए डा आर एन चौरसिया ने कहा कि ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ सूत्र वाक्य सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है, जिसका अर्थ पूरी धरती एक परिवार सदृश्य है और उदार हृदय वाले व्यक्ति पूरे विश्व को अपना परिवार जैसा मानते हैं। आज इस विश्वबंधुत्व की भावना की अति आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि स्वार्थ हमें विनाश की ओर ले जाता है और जगत्- कल्याण की भावना से मानव उच्च गरिमा को प्राप्त करता है। संस्कृत- साहित्य में हजारों वर्ष पहले से ही शान्तिपूर्ण, सहअस्तित्व और बन्धुत्व की भावना का महत्व रहा है, जिसकी प्रासंगिकता दिनानुदिन बढ़ती जा रही है।
संस्कृत सप्ताह समारोह- 2023 के संयोजक डा आर एन चौरसिया ने बताया कि संस्कृत- सप्ताह के दौरान “संस्कृत- साहित्य में वैज्ञानिक चेतना” विषय पर भाषण प्रतियोगिता, भारतीय संस्कृति पर आधारित क्विज प्रतियोगिता तथा श्लोक वाचन प्रतियोगिता के साथ ही “राष्ट्र- निर्माण में संस्कृत की भूमिका” विषयक राष्ट्रीय वेबीनार तथा “संस्कृत- साहित्य में वसुधैव कुटुंबकम् की भावना” पर राष्ट्रीय सेमिनार आदि का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम- संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभागीय प्राध्यापिका डा ममता स्नेही ने कहा कि इस भावना को अपना कर हम संघर्षों को दूर करने तथा असमानताओं को कम करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।यह एक कालातीत सिद्धांत है जो हमारी संस्कृति एवं आध्यात्मिक विरासत का हिस्सा रहा है। यह दर्शन हमारी वैश्विक जिम्मेदारी की भावना को भी प्रोत्साहित करता है, जिससे व्यक्ति स्वयं तथा दूसरों को भी लाभान्वित करता है।
इस अवसर पर संस्कृत सप्ताह के दौरान छात्र- छात्राओं के लिए आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में सफल अक्षय कुमार झा, अमन कुमार झा, रितु कुमारी, चंद्रशेखर झा, विकास कुमार यादव, अतुल कुमार झा तथा भक्ति रानी आदि को प्रमाण पत्र तथा मेडल आदि से अतिथियों द्वारा सम्मानित कर हौसला अफजाई किया गया।
कार्यक्रम में ललित कुमार झा, विकास कुमार गिरी, भार्गवी भारती, नीली रानी, कंचन कुमारी, सदानंद विश्वास, बाबू साहेब कुमार, तन्नू कुमारी, प्रीति खंडेलवाल, मंजू अकेला, योगेन्द्र पासवान, विद्यासागर भारती, उदय कुमार उदेश, राहुल राज गुप्ता, वैष्णवी कुमारी तथा कृष्ण मोहन कुमार गुप्ता आदि उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत पाग एवं चादर से किया गया।