-भाषा प्रखंड एवं संस्कृति क्लब के संयुक्त तत्वावधान में हुआ कार्यक्रम का आयोजन।

#MNN@24X7 दरभंगा, प्रत्येक शिक्षक चाहे वह किसी भी विषय के हों, उन्हें सामान्य कल का ज्ञान अवश्य रखना चाहिए। क्योंकि कला की सहायता से किसी भी विषय को बहुत ही सुंदर ढंग से पढ़ाया जा सकता है। इस उद्देश्य के साथ सीएम साइंस कॉलेज के शिक्षकों ने हिंदी दिवस के अवसर पर बृहस्पतिवार को ‘अभिशप्त देवव्रत’ हिंदी नाटक का मंचन किया। महाविद्यालय के कामेश्वर भवन में आयोजित कार्यक्रम का आयोजन भाषा प्रखंड एवं संस्कृति क्लब के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

मौके पर प्रधानाचार्य प्रो दिलीप कुमार चौधरी ने कहा कि महाविद्यालय के शिक्षकों का यह प्रयास शिक्षा व कला के बीच सेतु बंध कायम करने के साथ ही शैक्षणिक विकास की गति को तेज करने में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि कला और शिक्षा का परस्पर सम्बन्ध काफी घनिष्ठ है। शिक्षा में कला का विशेष स्थान है, क्योंकि कला शिक्षा का एक माध्यम तथा साधन है।

उन्होंने मानवीय जीवन के तीन पक्षों क्रमशः ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक की विस्तार से चर्चा करते कहा कि मनुष्य के सामाजिक प्राणी बनने में यदि शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। तो कला इन तीनों पक्षों को विकसित करने में सहायता करती है।

मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने बताया कि मोहन मुरारी का लिखा हिंदी नाटक ‘अभिशप्त देवव्रत ‘ भारत के अस्वस्थ राजनीति और कुरूप होती सामाजिक व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा करती है। स्वतंत्रता के पश्चात हमारे देश की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था ने जिस दिशा में कदम बढ़ाया उससे लोगों में, समाजों में और वर्गों में संघर्ष बढ़ता गया। चुनाव और लोकतंत्र के पक्षधरों ने भारत के पौराणिक चिंतन की उपेक्षा की जिसका दुष्परिणाम वर्तमान पीढ़ी को झेलनी पड़ रही है। भारत के अतीत में एक स्वस्थ लोकतंत्र एवं राजनैतिक व्यवस्था की छाप और संकेत सदैव मिलता है। हालांकि इस नाटक में महाभारत के युद्ध का विश्लेषण नहीं किया गया है लेकिन इसके माध्यम से अपने पौराणिक कालखंड पर एक स्वस्थ दृष्टि जरूर घुमाई गई है। उन्होंने कहा कि यह नाटक वर्तमान के जटिल प्रश्नों को हमारे गौरवान्वित करने वाली अतीत के बीच खड़ा कर भारत के वर्तमान मूल्यांकन करता है।

नाटक में कृष्ण की भूमिका डा युगेश्वर साह ने, युद्धिष्ठिर की भूमिका डा अभिषेक शेखर ने भरत की भूमिका डा वी.डी. त्रिपाठी ने, मंत्री की भूमिका डा पांशु प्रतीक ने, माता की भूमिका डा रश्मि रेखा ने, सत्यवती की भूमिका डा निधि झा ने, दासराज की भूमिका डा डी.पी. साह ने, देवव्रत की भूमिका डा अभय सिंह ने, भीष्म की भूमिका डा प्रणव कुमार चौधरी ने, शांतनु की भूमिका डा सत्येन्द्र कुमार झा ने, अर्जुन की भूमिका नजीरूल होदा ने, भीम की भूमिका प्रणय शाण्डिल्य ने, नकुल की भूमिका विवेक कुमार सिंह ने, सहदेव की भूमिका अनिल कुमार साफी ने, मुनादी की भूमिका विजय कुमार ने, अभिमन्यु की भूमिका कुमार गौरव ने, सारथी की भूमिका पंकज कुमार ने, नृत्यांगना की भूमिका कुमारी वैष्णवी, प्रज्ञा कुमारी व जया ने तथा
सखी की भूमिका अम्बे कुमारी व श्यामा मणि ने अभिनीत की।

मोहन मुरारी के लिखे इस हिंदी नाटक की परिकल्पना व गीत तैयार करने के साथ ही इसके निर्देशन का कार्य डा सत्येंद्र कुमार झा ने बखूबी किया। संगीत एवं पार्श्वध्वनि उत्सव ने, पोस्टर संस्कृति झा ने, मेकअप ड आर्यिका पाल व अमित कुमार शर्मा ने, वस्त्र विन्यास अमित कुमार शर्मा व पंकज कुमार ने, मंच सज्जा उत्सव, पंकज, विजय, गौरव व प्रणव ने मंच सामग्री संयोजन पंकज, प्रज्ञा, नजीरुल व विजय ने, नृत्य संयोजन अमन त्यागी ने की। जबकि डा आर्यिका पॉल के कुशल संचालन में अभिषेक कुमार एवं चेतकर झा ने मंचीय व्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान दिया।