युगद्रष्टा, वैश्विक व्यक्तित्व एवं समरसता के प्रतीक महात्मा गांधी एक व्यक्ति नहीं, वरन् एक विचारधारा- प्रो अनिल कुमार झा।
मिथिला विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा गांधी जयंती के अवसर पर पुष्पांजलि अर्पण सह संगोष्ठी आयोजित।
विश्वविद्यालय के महात्मा गांधी सदन में “वर्तमान परिदृश्य में गांधी के विचारों की प्रासंगिकता” विषयक संगोष्ठी में अनेक विद्वानों ने रखे विचार।
#MNN@24X7 दरभंगा, गांधी के विचार एवं दर्शन सिर्फ बोलने या सुनने की नहीं, बल्कि व्यवहार में अपनाने की बातें हैं। वे किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे। गांधीजी अपनी लगभग सारी जरुरतें खुद के कामों से ही पूरा कर लेते थे। यह गांधी सदन एक ऐतिहासिक स्थल है, क्योंकि यहां गांधी जी आकर ठहरे थे। मेरा सौभाग्य है कि कुलपति के रूप में इस सुअवसर पर मुझे चौथी बार आने का अवसर मिला है। उक्त बातें गांधी जयन्ती के अवसर पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से कुलपति प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा महात्मा गांधी सदन में पुष्पांजलि अर्पण सह “वर्तमान परिदृश्य में गांधी के विचारों की प्रासंगिकता” विषयक संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए कही।
कुलपति ने कहा कि महात्मा गांधी मानवता के सबसे बड़े पुजारी थे, जिनके जीवनदर्शन एवं विचारों में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना निहित है। गांधी जी सहज भाषा में लिखित अपनी रचनाओं में मानवता की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए और इसके लिए वे जीवन पर्यन्त प्रयासरत भी रहे। उन्होंने कहा कि जब किसी के मन में दूसरे के लिए दर्द होता है, तभी मानवता जागृत होती है। वास्तव में लोकमंगल एवं लोककल्याण की भावना ही सच्ची मानवता है, जिसे गांधी जी ने अपने जीवन में अपनाया।
मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय के पूर्व सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो अनिल कुमार झा ने कहा कि युगद्रष्टा, वैश्विक व्यक्तित्व एवं समरसता के प्रतीक महात्मा गांधी एक व्यक्ति ही नहीं, वरन् एक बेहतरीन विचारधारा थे। कर्मप्रधान व्यक्तित्व वाले गांधी जी की कथनी और करनी में समानता थी। आज भौतिकता का तेजी से विकास हो रहा है, परंतु मानवता का तेजी से ह्रास होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम गांधी तो नहीं हो सकते हैं, परंतु उनकी कुछ बातों को मानते हुए उनपर अमल तो कर ही सकते हैं। आज दुनिया को गांधीदर्शन की सर्वाधिक जरूरत है। गांधी जयंती के अवसर पर हमें उनके प्रेम, सहयोग तथा सद्भावना आदि को अपनाने का प्रण लेना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में वित्तीय परामर्शी डा दिलीप कुमार ने कहा कि गांधी के विचारों एवं उपदेशों पर अमल करना ही उनकी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। उन्होंने जयन्ती के अवसर पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को याद करते हुए गांधी जी की दस महत्वपूर्ण बातों को विस्तार से रखा।
विशिष्ट वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि गांधी जी राजनीतिक सुचिता के प्रतीक हैं। उन्होंने ‘ग्रामस्वराज’ में विकास की जो अवधारणा प्रस्तुत की है, वह आज भी अत्यधिक प्रासंगिक लगती है। उन्होंने निरीह जनता को सत्याग्रह का अमोघ अस्त्र दिया है। वे सर्वधर्म समभाव के प्रबल समर्थक थे। आज के धार्मिक उन्माद के दौर में गांधी जी के सर्वधर्म समभाव से सीख लेने की जरूरत है।
सीनेटर डा बैजनाथ चौधरी ने गांधी जी को विश्व शांति का प्रतीक बताते हुए कहा कि वे महिला अधिकार के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने विश्वविद्यालय में गांधी अध्ययन कोर्स शीघ्र प्रारंभ करने का आग्रह किया।
अध्यक्षीय संबोधन में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो हरे कृष्ण सिंह ने गांधी को देशभक्त और उनके विचारों एवं उपदेशों को समुद्र के समान बताते हुए कहा कि इसमें जो गोता लगाता है, वह कुछ न कुछ जरुर पाता है।
अतिथियों द्वारा गांधी जी की मूर्ति पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। तदनन्तर गांधी के प्रिय भजन- ‘रघुपति राघव राजा राम..’ तथा ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए..’ की प्रस्तुति हुई। महात्मा गांधी सदन के प्रभारी डा शंभू प्रसाद ने अतिथियों का स्वागत किया, जबकि बी एड नियमित के विभागाध्यक्ष डा अरविन्द मिलन ने संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन किया।