दरभंगा।राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान , मोहनपुर दरभंगा में 25 मार्च को चर्म रोग के इलाज हेतु लीच थेरेपी की शुरुआत कर दी गई है। प्राचार्य प्रो. दिनेश्वर प्रसाद ने बताया कि विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में पंचकर्म के अंतर्गत रक्तमोक्षण विधि का वर्णन किया गया है। नाना प्रकार के त्वाचागत एवं रक्तगत व्याधियों के इलाज में रक्तमोक्षण किया जाता है। रक्तावसेचन विधि में यदि वात दोष की वृद्धि के कारण रक्त के दृष्टि हुई हो तो श्रृंग से , पित्त से हुई हो तो जलौका से एवं कफ दोष से हुई हो तो अलाबु के द्वारा रक्तमोक्षण करना चाहिए। वर्तमान समय में त्वाचागत रोग, वात रक्त ,जोड़ों का दर्द ,युवान पीडीका, खालित्य ,वेरीकोज वेन आदि के इलाज में सफलतापूर्वक जलौकावचारण विधि का प्रयोग किया जा रहा है । लीच थेरेपी तेजी से पूरे विश्व में लोकप्रिय हो रही है । आज ‘ इद्रलुप्त ‘ जिसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में एलोपेसिया एरीटा के नाम से जाना जाता है। इसमें दाढ़ी,शिर के बाल गुच्छा में गिर जाते हैं । इसके इलाज में लीच थेरेपी का प्रयोग किया गया ।आयुर्वेद में जलौका बारह प्रकार की बताई गई है । जिसमें छ: सविष एवं छ: निविष होती है । कपिला नामक जलौका का प्रयोग इस रोग के इलाज में किया गया।

लीच थेरेपी विशेषज्ञ डॉक्टर दिनेश कुमार ने बताया कि तालाब से जलौका का संग्रह किया गया। पानी में हल्दी डालकर उसे घोलकर उसमें जोंक को डाला गया ।इससे जोंक की सक्रियता बढ़ गई , फिर उसे उचित जगह पर लगाया गया। लीच जब अच्छी तरह से पकड़ लेती है , तब उसे गीले रुई से ढक दिया जाता है। बीच-बीच में पानी की बूंदे उस पर गिराया रहते हैं ताकि जोक को अपनी प्राकृतिक आवास जल का एहसास होता रहे और उन्मुक्त रूप से रक्त का पान करती रहे। लगभग 10 से 15 मिनट तक जोंक रक्तपान करती है । इसके बाद उसके मुख पर हल्दी का चूर्ण डालने से वह रक्त चूसना छोड़ देती है, फिर उसे हल्दी के चूर्ण में रखा जाता है, जिससे वह पिए हुए रक्त को वमन कर देती है, फिर उसे साफ पानी में चार से पांच बार धूल कर रख दिया जाता है।


डॉक्टर भानु प्रताप राय ने बताया कि जलौकावचारणा एक प्राचीन विधि है , जिसका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है । मिथिलांचल एक आनुप प्रदेश है । यहां पर जोंक बहुत मात्रा में उपलब्ध है, इससे आम जनों के स्वास्थ्य लाभ में काफी फायदा होगा। महाविद्यालय के कर्मचारी अजीत कुमार, प्रेम कुमार, अनिता कुमारी, मोनू , जितेंद्र कुमार, अर्चना कुमारी ने इस विधि में अपना सहयोग दिया।