खुशहाल एवं संवेदनशील समाज तथा समृद्ध एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षा रूपी प्रकाश अनिवार्य- डा रामचन्द्र।
शिक्षा रूपी चाबी से खुलेगा चौपाल- पान एवं बुनकर सहित सभी समाज के विकास एवं खुशहाली का द्वार- डा चौरसिया।
अभी भी यदि बुनकर-पेशा में सुधार हो तो चौपाल समाज की प्रतिष्ठा तथा आर्थिक सहित सभी स्थितियों में सुधार संभव- डा रामबाबू।
#MNN@24X7 दरभंगा, राष्ट्रीय मानव शोध संस्थान, दरभंगा तथा चौपाल, पान एवं बुनकर समाज के तत्वावधान में “बुनकर पेशा : मुद्दे एवं चुनौतियां” विषयक प्रांतीय संगोष्ठी सह कार्यकारणी की बैठक का आयोजन डा रामबाबू चौपाल की अध्यक्षता में सी एम कॉलेज, दरभंगा के सेमिनार हॉल में किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में एमएलएसएम कॉलेज, दरभंगा के हिन्दी- प्राध्यापक डा रामचन्द्र सिंह ‘चंद्रेश’ तथा मुख्य वक्ता के रूप में मिथिला विश्वविद्यालय के संस्कृत- प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया सहित डा प्रभात कुमार चौधरी, संजय चौपाल, जितेन्द्र, रामसागर चौपाल, शैलेन्द्र, उमेश चौपाल, विनोद, मनोज चौपाल, ललित चौपाल, गौरीकांत, कृष्ण चौपाल, अजय, बिरमल, देवनाथ, वीरेन्द्र चौपाल, बनारसी, अरुण मंडल, राहुल, मंगनू चौपाल, राम नरेश दास, राजन कुमार तथा प्रणव नारायण आदि उपस्थित थे।
डा रामचन्द्र सिंह ने कहा कि किसी भी व्यक्ति या समाज को विकास के पथ पर बढ़ाने के लिए मार्गो के कष्टों को सहना ही पड़ता है। आज हमें पहले स्वयं को पढ़ने और समझने की जरूरत है। बुनकर का संबंध समाज के विकास से सीधे जुड़ा हुआ है। मेहनत और हिम्मत से आगे बढ़ने पर हर कुछ मिल जाता है। चौपाल समाज में शिक्षा एवं जागृति की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि खुशहाल एवं संवेदनशील समाज तथा समृद्ध एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षा रूपी प्रकाश अनिवार्य है। अपनी आवाज एवं विकास को बताने के लिए आज चौपाल समाज को अखबार निकालने की भी जरूरत है। लोकतंत्र में राजनीति की नहीं, बल्कि लोकनीति की जरूरत है।
मुख्य वक्ता डा आर एन चौरसिया ने कहा कि शिक्षा रूपी चाबी से ही चौपाल- पान एवं बुनकर सहित सभी समाजों के विकास एवं खुशहाली का द्वार खुलेगा। स्वस्थ एवं विकसित समाज निर्माण में स्त्री पुरुष दोनों का शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षा हमें अधिकार एवं कर्तव्यों का बोध कराती है और जीवन में आगे बढ़ाने तथा सफलता प्राप्त करने में भी मददगार है। इससे हमारा आत्मविश्वास, आत्मगौरव तथा कार्यक्षमता विकसित होती हैं। अपने सपनों को सच करने का एकमात्र और सर्वोत्तम मार्ग अच्छी शिक्षा व्यवस्था ही है। उन्होंने बुनकर पेशा के मुद्दे एवं चुनौतियां की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हमें चुनौतियों को अवसर में बदलना सिखना ही होगा।
अध्यक्षीय संबोधन में डा रामबाबू चौपाल ने कहा कि बुनकर हमारे परंपरागत पेशा एवं प्रतिष्ठा है। अभी भी यदि बुनकर पेशा में सुधार हो तो चौपाल समाज की प्रतिष्ठा तथा आर्थिक सहित सभी स्थितियों में सुधार संभव है। इस पेशा को अपना कर महिलाएं भी अपने परिवारों का भरण- पोषण कर सकती हैं। सरकार की अनेक योजनाएं चल रही हैं, जिनका हमें अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहिए। भारत की आजादी के पहले तथा बाद में भी साजिश के तहत बुनकरों के पेशे को मृतप्राय कर दिया गया, जिसके कारण आज 95% महिलाएं बेकार हो गई हैं। संगोष्ठी को शिशो पूर्वी, दरभंगा के मुखिया बजरंगबली दास, करहारा पंचायत के मुखिया भोगेन्द्र मंडल तथा शिक्षक जितेन्द्र कुमार आदि ने भी संबोधित किया।
संविधान दिवस के शुभ अवसर पर आयोजित संगोष्ठी का प्रारंभ अतिथियों एवं प्रतिभागियों द्वारा डॉ भीमराव अंबेडकर के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि से हुआ। कार्यक्रम का संचालन करते हुए रामनरेश दास ने कहा कि बुनकर समाज कई पेशों, उपजातियां एवं टाइटल में बटे हुए हैं। संगोष्ठी के बाद बिहार प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई, जिसमें अनेक निर्णय लिए गए।