ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में आयोजित कार्यक्रम में डा घनश्याम, डा मित्रनाथ, डा विकास, मृत्युंजय तथा डा चौरसिया आदि ने रखे विचार।
स्वागत संबोधन- डा ममता स्नेही, धन्यवाद ज्ञापन- डा मोना शर्मा, संचालन- रीतु कुमारी, सीताराम गान- भक्ति रानी तथा स्वस्तिवाचन- रंजेश्वर झा ने किया।
विचारगोष्ठी में मिथिला एवं बिहार सहित पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, असम, दिल्ली तथा वाराणसी आदि से 100 से अधिक ऑनलाइन जुड़े शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी।
#MNN@24X7 दरभंगा दैनिक जागरण, दरभंगा तथा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में “मिथिला और श्रीराम का अंतर्संबंध” विषयक राष्ट्रीय विचारगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालयीय संस्कृत विभाग में किया गया, जिसमें मिथिला एवं बिहार सहित पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, वाराणसी तथा दिल्ली आदि के 100 से अधिक संस्कृत- प्रेमियों, शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया। इस अवसर पर दैनिक जागरण के शिक्षा- संवाददाता प्रिंस कुमार तथा स्वास्थ्य- संवादाता राहुल गुप्ता, हिन्दी- प्राध्यापक डा आनंद प्रकाश गुप्ता, अंग्रेजी- प्राध्यापक डा अखिलेश कुमार सिंह, उदय कुमार उदेश तथा योगेन्द्र पासवान आदि भी उपस्थित थे।
पीजी संस्कृत- विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो की अध्यक्षता में आयोजित विचारगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में मिथिला शोध संस्थान, दरभंगा के पूर्व पांडुलिपि विभागाध्यक्ष डा मित्रनाथ झा, सम्मानित वक्ता के रूप में दैनिक जागरण, दरभंगा के ब्यूरो चीफ मृत्युंजय भारद्वाज, विशिष्ट वक्ता के रूप में मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह, विषय- प्रवर्तक के रूप में विभागीय संस्कृत- प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया, विभागीय सहायक प्राध्यापिका डा ममता स्नेही स्वागत संबोधन तथा डा मोना शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। विभागीय शोधार्थी एवं जेआरएफ रीतु कुमारी के संचालन में आयोजित राष्ट्रीय विचारगोष्ठी में संस्कृत- शोधार्थी रंजेश्वर झा ने स्वस्तिवाचन तथा संस्कृत- छात्रा भक्ति रानी ने सीताराम पर आधारित श्लोकों का सस्वर गायन प्रस्तुत किया।
मुख्य वक्ता डा मित्रनाथ झा ने रामायण के प्रमुख श्लोकों का पाठ करते हुए कहा कि आज की यह विचारगोष्ठी कई मामलों में विशिष्ट है। इस आयोजन को कर आयोजकों ने मिथिला के लोग को और अधिक जगाने का काम किया है। उन्होंने बताया कि आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में हो रहे रामोत्सव का लाइव प्रसारण विश्व के 160 से अधिक देशों में होगा।
डॉ मित्रनाथ ने कहा कि मिथिला में राम का नाम काफी घुला- मिला है। आज भी यहां के स्थलों के नाम सीता और राम से जुड़े हुए हैं। वैसे तो विश्व में अनगिनत रामायण हैं, पर वाल्मीकि रामायण ही मूल तथा आदि रामायण है जो सात काण्डों में 24000 श्लोकों के साथ है। मिथिला में राम की लोकप्रियता कृष्ण से भी बढ़कर है। राम और मिथिला का संबंध अकाट्य एवं अन्योन्याश्रित है। आज राम को हम आत्मासात कर चुके हैं तथा पूरा भारतवर्ष राममय हो रहा है।
सम्मानित अतिथि के रूप में मृत्युंजय भारद्वाज ने संस्कृत विभाग द्वारा ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों रूपों में विचारगोष्ठी आयोजित करने को अच्छी पहल बताते हुए कहा कि इससे समीपस्थ एवं दूरस्थ सभी व्यक्तियों को संगोष्ठी से जोड़ने में आसानी हो रही है। उन्होंने कहा कि श्रीराम मिथिला से गहरे रूप में जुड़े हुए हैं। हम सब आगामी 22 जनवरी को श्रीराम के सम्मान में अपने- अपने घरों एवं मंदिरों में रामोत्सव मनाते हुए दीप जलाए और छोटी दीवाली मनाएं।
विशिष्ट अतिथि डा विकास सिंह ने कहा कि भगवान राम हमारे सिर्फ सांस्कृतिक प्रतिमान ही नहीं, बल्कि साक्षात् ईश्वर के पर्याय हैं। भारत की कोई भाषा नहीं, जिसमें राम का उदात्त चरित्र वर्णित न हुआ हो। मुस्लिम देश इंडोनेशिया सहित जावा, सुमात्रा, श्रीलंका आदि विदेशों में भी रामचरित्र आज भी आदर्श है। माता सीता तथा प्रभु श्रीराम मिथिला के कण-कण में व्याप्त हैं। नारियों की आदर्श मिथिला- पुत्री सीता श्रीराम को पद- पग पर साथ देकर मर्यादा पुरुषोत्तम बनने में काफी मदद की।
विषय- प्रवर्तक सह संगोष्ठी के संयोजक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि रामायण तथा श्रीराम का हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक जीवन में सर्वाधिक महत्व है। रामायण तथा रामचरित कल्पतरु सदृश है जो सदा से मानव को बेहतरीन मार्गदर्शन करता रहा है। रामचरित्र की सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक प्रासंगिकता सदा से रही है। उन्होंने कहा कि रामायण में वर्णित अहल्योधार की कथा अतीव मार्मिक है। श्रीराम के अवतार का प्रयोजन पतितोद्धार भी है। मिथिला में पाषाणभूत अहल्या का उद्धार कर प्रभु राम ने नारी- मर्यादा की रक्षा की थी। डा चौरसिया ने कहा कि मानवीय संस्कृति एवं संस्कार की रक्षा में सीताराम- चरित का काफी योगदान है। मिथिला एक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र है, जिससे श्रीराम अत्यधिक प्रभावित हुए थे। प्राचीन काल से ही मिथिला और अयोध्या का गहरा संबंध रहा है। सीता से विवाह के उपरांत ही भगवान् राम पूर्णत्व को प्राप्त किया था। समस्त मानवीय गुणों से समाहित सीता एवं राम आज भी हमारे लिए आदर्श एवं प्रेरणास्रोत हैं। आज भी हम राम के आदर्श राज्य को साकार करने हेतु रामराज्य की कामना करते हैं, जिसमें सभी स्वस्थ एवं संपन्न थे। रामायण के नायक श्रीराम जहां साक्षात् परब्रह्म हैं, वहीं नायिका जगन्जननी तथा प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी जनकनंदिनी आदिशक्ति भगवती सीता लोकहितेषिणा की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं।
आभासी रूप से विचारगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डा घनश्याम महतो ने राम के चरित्र पर मिथिला तथा सीता के प्रभाव को रेखांकित करते हुए संगोष्ठी का सर सारांश प्रस्तुत किया।अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्कृत- प्राध्यापिका डा ममता सनेही ने कहा कि राम कोई व्यक्ति विशेष नहीं, बल्कि एक अवतारी पुरुष थे। जिसमें योगिजन रमण करते हैं, उसे राम कहा गया है। राम अद्वैत वेदांत के ब्रह्म हैं। पूरे यूनिवर्स की सुप्रीम पावर अर्थात् विश्वात्मा राम ही हैं। आज अयोध्या में हो रहे राम की प्राणप्रतिष्ठा के अवसर पर राम की घर- घर में पूजा हो रही है, जिससे उनके चरित्र की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संस्कृत- प्राध्यापिका डा मोना शर्मा ने कहा कि “सियाराम मय सब जग जानी, करहुं नाथ जोरि जुग पाणि”। मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम केवल अयोध्या या मिथिला के ही नहीं, अपितु वे जन- जन के राम हैं। राम के जीवन की कथा घर- घर की कहानी बन गयी है। वे एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता तथा आदर्श प्रजा- पलक के रूप में सबके हृदय में वास करते हैं।
विचारसंगोष्ठी का संचालन करते हुए जेआरएफ तथा शोधार्थी रीतु कुमारी ने कहा कि धर्म की भूमि मिथिला श्रीराम का ससुराल है। यहां उन्हें काफी मान- सम्मान मिला था, जिससे वे काफी प्रभावित हुए। तेजी से समय बदलने के बावजूद भी आज मिथिला में रामलीला का प्रचलन है, जिससे नई पीढ़ी सीख प्राप्त कर रहे हैं।
इस अवसर पर संस्कृत- शोधार्थी रंजेश्वर झा ने स्वस्ति वाचन किया, जबकि संस्कृत- छात्रा भक्ति रानी ने सीताराम- चरित्र पर आधारित श्लोकों का सस्वर वाचन किया। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय भूगोल विभागाध्यक्ष डा विनयनाथ झा, एमएलएसएम कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य प्रो विद्यानाथ झा, डा कालिदास झा तथा अंग्रेजी- प्राध्यापक डा विधानचंद्र चौधरी एवं डा अखिलेश कुमार सिंह, मिल्लत कॉलेज के पूर्व समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डा भक्तिनाथ झा, बी एम ए कॉलेज, बहेरी के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा संजीत कुमार राम, असम से संस्कृत- प्राध्यापक डा मृणाल कांति सरकार, जीडी कॉलेज, बेगूसराय से संस्कृत- प्राध्यापक दीपक कुमार विश्वकर्मा, पश्चिम बंगाल से संस्कृत- शोधार्थी नजमा हसन, बीएचयू, वाराणसी से प्रेरणा नारायण, दिल्ली से अमित रंजन तथा आनंद कुमार, बंगाल से संस्कृत- शोधार्थी सदानंद विश्वास, सीतामढ़ी से आशीष रंजन व आनंद सागर मौर्य, डॉ केके सिंह, डा लक्ष्मी नारायण चौधरी, अतुल कुमार झा, चंद्रभानु त्रिपाठी, कंचन कुमारी, उदय शंकर चौधरी, गिरीश कुमार झा, शिवम गुप्ता, प्रत्यूष कुमार, ज्योति, शिव कुमार, राजेश, स्मिता, राजन, अमन, विनोद, मीरा, राहुल, अशोक, देव कुमार झा, सतीश, माधुरी, मनमोहन तथा आस्थानंद यादव सहित 100 से अधिक व्यक्ति सम्मिलित हुए।