कुशलता व परिपक्वता देती है मातृभाषा : प्रतिकुलपति
मां, मिट्टी व मातृभाषा ईश्वरीय प्रदत्त : प्रो0 मुश्ताक
मातृभाषा को लील रहा बाजारवाद : प्रो0 मेहता
उपनिवेशवाद से निकलने की जरूरत :प्रो0 ओझा
स्थानीय भाषा ही मातृभाषा है : प्रो0 झा
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर संस्कृत विश्वविद्यालय में व्याख्यानमाला आयोजित
#MNN@24X7 दरभंगा, अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर बुधवार को संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित व्याख्यानमाला के दौरान साक्षात बहुभाषा की गंगा काफी देर तक बहती रही और इसका गवाह बना दरबार हॉल एवं वहां उपस्थित सभी विद्वतजन। मैथिली, संस्कृत, उर्दू,अंग्रेजी, भोजपुरी, उड़िया समेत अन्य भाषाओं में विद्वानों ने व्याख्यान दिया।
रजत जयंती वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने कहा कि प्राचीन शिक्षा भारतीय भाषाओं में होती थी।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सह भाषा ने बड़ी तेजी से विकास किया जिसका प्रभाव मातृभाषा पर भी पड़ा। उन्होंने बहु भाषा की वकालत करते हुए यह भी कहा कि व्यवहार व उपयुक्त वातावरण से मातृभाषा पनपती है, पुष्पित व पल्लवित होती है। भाषाओं के आपसी समन्वय से मातृभाषा बलवती होती है।
विषय प्रवर्तन करते हुए प्रतिकुलपति प्रो0 सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने से ठोस रूप में कुशलता व परिपक्वता आती है। उन्होंने बंगलादेश समेत कई उद्धरणों से याद दिलाया कि भाषा व संस्कृति हमेशा हमें जोड़ती है। मातृभाषा हमेशा समरस समाज की स्थापना करती है।लोक भाषा हमें लोक ज्ञान देती है, उपदेश देती है।उन्होंने कहा कि मातृभाषा की संवृद्धि ही असली स्वतन्त्रता है।
मौके पर सीएम कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो0 मुश्ताक अहमद ने बड़े ही अदव से भातृभाषा को ही हुनर व शिक्षा का सशक्त माध्यम बताया। उन्होंने कहा कि मां, मिट्टी यानी देश एवम अपनी भाषा मातृभाषा ईश्वरीय प्रदत्त है। उन्होंने विश्व मे भारत को सबसे अधिक सौभग्यशाली देश बताते हुए कहा कि यहां भाषाई व रहन सहन की विविधताएं हैं । दूसरी भाषाओं से हमें ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। मातृभाषा तो हमारे दिल मे जलने वाला चिराग है। इसलिए इसकी तरक्की व हिफाजत होनी ही चाहिए।
उन्होंने कहा कि विश्व मे तकरीबन 6809 भाषाएं बोली जाती है। नोबेल पुरस्कार विजेताएं जितने भी हुए हैं वे सभी के सभी मातृभाषा में भी तालीम लिए हुए हैं। उन्होंने ऐतिहासिक व वर्तमान सन्दर्भों के माध्यम से विस्तार में मातृभाषा की अहमियत व ताकत से सभी को रूबरू कराया। उन्होंने सवालिए लहजे में यहां तक कहा की मिथिला राज्य की मांग तो हमलोग करते हैं लेकिन यहां एक भी प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान नही है जो मैथिली में बुनियादी शिक्षा दे सके। मातृभाषा के विकास को ही उन्होंने सर्वांगीण उन्नति का माध्यम बताया।
इसी क्रम में मिथिला विश्वविद्यालय के कॉलेज निरीक्षक सह मैथिली के विद्वान प्रो0 अशोक कुमार मेहता ने कहा कि बाजारवाद व विज्ञापन के युग ने मातृभाषा को क्षत विक्षत कर दिया है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा में काफी ताकत है। इसे हमारे पशु पक्षी भी समझ लेते हैं। मातृभाषा को रोजी रोटी की भाषा बनाने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि तभी इसका समुचित विकास सम्भव है। हम लोकल के लिए वोकल की बात तो करते हैं लेकिन यह व्यवहारिकता
में कठिन हो चला है।
वहीं जेपी विश्वविद्यालय, छपरा के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो0 उदय शंकर ओझा ने ऑनलाइन व्याख्यान देते हुए कहा कि उपनिवेशवाद से आज भी हमलोग पूरी तरह से बाहर नही आ पाए हैं। यही कारण है कि मातृभाषा थोड़ी ठिठक सी गयी है। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य भाषाओं के प्रति हमारा झुकाव अधिक हो गया है। हम हीं भावना से ग्रषित हो चुके हैं।क्षेत्रीय भाषाओं को उन्होंने बढ़ावा देने पर जोर दिया। कहा कि इससे नस्लवाद व क्षेत्रवाद घटेगा।
मौके पर स्नातकोत्तर प्रभारी व व्याकरण के विद्वान प्रो0 सुरेश्वर झा ने भी मातृभाषा की परिभाषा व उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने स्थानीय भाषा को ही मातृभाषा बताते हुए कहा कि इससे पढ़ने वाला ज्यादा मेधावी होता है।
उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि तमाम वक्ताओं ने मातृभाषा को सर्वोपरि बताते हुए इसे समृद्ध करने पर बल दिया। नई शिक्षा नीति को सभी ने सराहा और कहा कि इसमें मातृभाषा यानी स्थानीय भाषा को प्राथमिकता दी गयी है। विश्वविद्यालय के आइक्यूएसी के नोडल डॉ नरोत्तम मिश्रा व एनएसएस के कार्यक्रम समन्वयक डॉ सुधीर कुमार झा के संयोजकत्व में आयोजित व्याख्यानमाला में आगत अतिथियों का स्वागत सीसीडीसी डॉ दिनेश झा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विकास पदाधिकारी डॉ पवन कुमार झा ने किया।
व्याकरण विभाग की प्राध्यापिका डॉ साधना शर्मा ने मंच संचालन किया तथा छात्रा ज्योति उपाध्याय ने कुलगीत प्रस्तुत किया। इसके पूर्व उड़िया भाषा मे धर्मशास्त्र विभाग के प्राध्यापक प्रो0 पुरेन्द्र वारिक ने मातृभाषा की महत्ता बताया। वहीं अतिथि शिक्षिका डॉ माया कुमारी ने मैथिली गीत प्रस्तुत किया।