सुभाषित कंठ पाठ प्रतियोगिता में छोड़ी छाप
तारीफ कर रहे हैं संस्कृतानुरागी
#MNN@24X7 दरभंगा, सच ही कहा गया है, एक बार नहीं बल्कि बार बार कहा गया है कि भाषाई उन्मुक्तता को मजहबी दीवारें कभी भी नहीं रोक सकतीं। इसके एक नहीं शायद लाखों उदाहरण हैं जो चली आ रही व्यवस्थाओं के ठीक विपरीत होते हैं। इसको और स्पष्ट रूप से कहा जाय तो मौजूदा सामाजिक परिपाटी और धारणा यही है कि अध्ययन व अध्यापन के लिए जब विषयों व पाठ्यक्रमों का चुनाव किया जाता है तो धार्मिक सोच व विचार नहीं चाहते भी आगे आ ही जाते हैं। यानी कि आम धारणा यही होती है कि मुस्लिम कौम के विद्यार्थी अमूमन भाषा साहित्य के रूप में उर्दू ही रखते हैं। इसी तरह अन्य कौम के बच्चे हिंदी या फिर मैथिली , नहीं तो संस्कृत या अंग्रेजी का चुनाव करते हैं। वहीं जब यह आम मिथक टूटता है तो वह नजीर बन जाता है। लाजिमी है कि ऐसे में इसके नायक आम से खास हो जाते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में देखने को मिला। वहां मौजूद संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानों को कहना पड़ा कि स्थानीय होली क्रॉस स्कूल की आठवीं कक्षा की छात्रा नमरा कलाम जब मंच पर संस्कृत में सुभाषित कंठ पाठ कर रही थी तो उसकी अभिव्यक्ति का तौर- तरीका व चेहरे के साथ- साथ हाथों का हाव -भाव अद्भुत था। किसी मंजे हुए खिलाड़ी की तरह वह सपाट पिच पर एक तरफा रन बना रही थी। महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह द्वारा प्रदत्त ऐतिहासिक दरबार हॉल में सभी मुक्त कंठ से उसकी तारीफ कर रहे थे। उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि संस्कृत सप्ताह के निमित्त जारी सुभाषित कंठ पाठ
प्रतियोगिता में स्कूली बच्चों को संस्कृत के दस श्लोकों की करीब 30-35 पंक्तियों का बिना पर्ची देखे भावयुक्त पाठ करना था। इसी में मिथक तोड़कर आगे आयी स्थानीय रहम खां मुहल्ला निवासी और बीएड कालेज के सहायक निदेशक कलाम उद्दीन असलम की पुत्री नमरा ने भाग लिया था। प्रतियोगिता में आधे दर्जन से अधिक स्कूलों के बच्चों ने शिरकत की थी। नमरा ने प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया ।विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने उसे प्रमाण पत्र के साथ पुरस्कार राशि भी प्रदान की। बता दें कि मक्का के संदर्भ में हाजियों के लिए नमरा एक बहुत ही पवित्र स्थल है और यहां की पवित्रता की छाप बच्ची पर विल्कुल पड़ी है।
समाचार सुनकर संस्कृत पढ़ने का मन किया
पुरस्कार पाकर दरबार हॉल में अपनी अम्मी डॉ निशात शाहीन के साथ बैठी नमरा से जब पूछा गया कि वह कब से और कैसे संस्कृत की तरफ मुड़ी तो सपाट से जवाब दी कि संस्कृत सुनकर अच्छा लगा तो वह चतुर्थ वर्ग से ही संस्कृत पढ़ने लगी। अब उसमें गहरी रुचि हो गयी है। स्थानीय सीएम कालेज में मनोविज्ञान विषय की सहायक प्रध्यापिका डॉ निशात से जब पूछा कि संस्कृत लेकर उनकी बच्ची पढ़ रही है तो क्या उन्हें थोड़ा भी अटपटा नहीं लगता ? जवाब दिया कि वह मनोविज्ञान की छात्रा रही है। उसे पता है कि बच्चे को किस तरह प्रोत्साहित किया जाता है। वैसे भी निशात का मतलब ही होता है ऊर्जा भर कर खुशियां ला देना। इस लिहाज से भी वह बच्ची को पढ़ने की पूरी आजादी दे रही है। नमरा के पिता श्री असलम भी उसे उत्साहवर्धन करते रहते हैं।
पढ़ाई में मदद को तैयार हैं संस्कृत के प्रध्यापक
सुभाषित कंठ पाठ प्रतियोगिता के संयोजक व व्याकरण के विद्वान डॉ यदुवीर शास्त्री ने नमरा की विलक्षण प्रतिभा को देखकर कहा कि बच्ची अद्भुत है। इसमें काफी आत्म विश्वास है। संस्कृत में पाठ का अंदाजा बेहद निराला था। नमरा के साथ साथ अन्य स्कूली बच्चे भी अगर उनसे संस्कृत पढ़ाई में मदद मांगेंगे तो वे शंका समाधान को हमेशा तैयार हैं।पीआरओ ने बताया कि कुलपति प्रो0 पांडेय हमेशा कहा करते हैं कि संस्कृत में सम्भाषण का प्रयास जारी रहना चाहिए। तभी यह भाषा व्यवहार में आएगी। कुलपति प्रो0 पांडेय की यह समेकित सोच अवश्य ही बदलाव लाएगी।