उपलब्ध 20 स्मृतियों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्राचीन, उपयोगी एवं प्रमुख धर्मशास्त्र- प्रो दिलीप कुमार झा।
#MNN@24X7 दरभंगा मनु स्वयंभू हैं, जिन्हें भगवान भी कहा जाता है। हम सब उन्हीं की संतान हैं, जिस कारण मानव कहलाते हैं। उन्होंने कहा है कि जन्म से सभी व्यक्ति शूद्र होते हैं, पर संस्कार से ही द्विज बनते हैं। मानव धर्म बताने वाला शास्त्र ही धर्मशास्त्र है। उपलब्ध 20 स्मृतियों में मनुस्मृति ही सर्वाधिक प्राचीन, उपयोगी एवं प्रमुख धर्मशास्त्र है। उक्त बातें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में स्थापित मंडन मिश्र चेयर तथा डॉ प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में “मनुस्मृति की समकालीन प्रासंगिकता” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष सह संकायाध्यक्ष प्रो दिलीप कुमार झा ने कही। उन्होंने कहा कि मनु के वचन में काफी सार्थकता तथा मनुस्मृति की समकालीन प्रासंगिकता सर्वाधिक है। मनु ने कहा था कि यदि मानव मन पर नियंत्रण कर ले तो दसों इंद्रियां स्वत: नियंत्रित हो जाएंगी। मनुस्मृति के व्यवहार अध्याय में न्याय की व्यवस्था की गई है, जिसकी आज भी उपयोगिता है। निंदित कर्मों के लिए मनु ने प्रायश्चित का भी प्रावधान किया है। मनु ने राजा के लिए न्याय पूर्वक कोष- संचय तथा बिना किसी पक्षपात के न्याय करने की व्यवस्था की है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में संस्कृत-प्रेमी एवं सामाजिक ओम प्रकाश ने कहा कि मनुस्मृति में संपूर्ण समाज को सुचारू बनाने की व्यवस्था की गई है, न कि किसी के प्रति राग या द्वेष। यह धर्मशास्त्र में अति प्राचीन, लोकप्रिय एवं प्रमाण स्वरूप माना जाता है, जिसमें जगत की उत्पत्ति, धर्म के लक्षण, संस्कार, मानव कर्तव्य, गृहस्थ जीवन, वर्णाश्रम व्यवस्था, राजधर्म, युद्ध- नीति आदि का वृहद वर्णन है। विषय प्रवेश कराते हुए फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि मनुस्मृति में 12 अध्याय तथा 2682 श्लोक हैं, जिनमें वर्णित 98% बातें आज भी प्रासंगिक हैं। इसमें धर्म के 10 लक्षण बताए गए हैं, जिनमें चार काफी प्रमुख हैं। इसका 12वां अध्याय दर्शन तथा 11वां अध्याय प्रायश्चित से संबंधित है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए मंडन मिश्र पीठ के समन्वयक डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि मनुस्मृति में वर्णित धर्म एवं नैतिकता हमारे व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन के मूल स्तंभ हैं। इसके सिद्धांत हमें समग्र जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। इसमें प्रकृति के प्रति सम्मान एवं पर्यावरण संरक्षण की अवधारणा भी वर्णित है जो आज की जलवायु समस्याओं के समाधान में काफी उपयोगी है। मनुस्मृति एक प्राचीन भारतीय ग्रंथ है जो हिंदू धर्म और समाज के नियमों तथा मानव मूल्य के बारे में बताता है। इसमें वर्णित सिद्धांत एवं जीवन मूल्य आज काफी प्रासंगिक हैं।
अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने संगोष्ठी के विषय को काफी विस्तृत एवं महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि मनुस्मृति में मानव जीवन से संबंधित सभी पक्षों का वर्णन है जो देश, काल एवं परिस्थिति के सापेक्ष है। इसमें वर्णित आचार संबंधी बातों को व्यवहार में लाने की जरूरत है। मनुस्मृति के सात वें अध्याय में वर्णित राजधर्म हमारी शासन व्यवस्था की रीढ़ है। मनु ने दंड का बहुत ही सुनियोजित ढंग से वर्णन किया है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संस्कृत- प्राध्यापिका डॉ मोना शर्मा ने कहा कि मनुस्मृति में धर्म को व्यक्तिगत, सामाजिक तथा विश्व व्यापी नियमों का पालन करने वाली संहिता के रूप में मान्यता है। इसमें धर्म को कर्तव्य और नैतिक जीवन शैली के रूप में देखा गया है, जहां समाज में सद्भाव बनाए रखने के लिए इनका निर्धारण किया गया है।
जेआरएफ एवं शोधार्थी रितु कुमारी के संचालन में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ, जबकि अतिथियों का स्वागत पुष्प-पौधा प्रदान कर किया गया। संस्कृत- प्रेमी ओम प्रकाश ने स्वस्तिवाचन किया। वहीं सेमिनार में भाग लेने वाले सभी शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को फाउंडेशन की ओर से प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया। संगोष्ठी में मणि पुष्पक घोष, सदानंद विश्वास, डॉ राम पवित्र राय, अमित कुमार झा, राजीव कुमार, रोशन कुमार राठौर, प्रशांत कुमार झा, मंजू अकेला, विद्यासागर भारती, योगेंद्र पासवान, उदय कुमार उदेश, राजकुमार गणेशन तथा अनिल कुमार सिंह आदि ने सक्रिय सहयोग किया।