#MNN@24X7 दरभंगा, 21 फरवरी, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर इकाई, राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर लक्ष्मीनिवास पांडेय की अध्यक्षता में संपन्न हुआ।
उन्होंने कहा कि सभी भाषाएं मातृभाषा में निहित हैं। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस सभी भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि सभी भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन होना चाहिए। मुख्यातिथि छात्र कल्याण अध्यक्ष डॉ. शिवलोचन झा ने अपने संबोधन में कहा कि “हमारी भाषा, हमारा गर्व” और मातृभाषा के संरक्षण पर बल दिया। सारस्वतातिथि अहिल्या स्थान महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बिकाऊ झा ने ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि जन्मभूमि स्वर्ग से महान है, तो मातृभाषा भी उतनी ही पूजनीय होनी चाहिए।
राष्ट्रीय सेवा योजना कार्यक्रम समन्वयक डॉ. सुधीर कुमार झा ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के इतिहास पर चर्चा की और बताया कि यह दिवस 21 फरवरी 1952 को बांग्लादेश में मातृभाषा आंदोलन के दौरान चार छात्रों की शहादत की स्मृति में मनाया जाता है। उन्होंने छात्रों को ‘माय भारत पोर्टल’ पर पंजीकरण कर एक मिनट का वीडियो अपलोड कर ‘युवा संसद’ में भाग लेने हेतु प्रेरित किया। साथ ही, विश्वविद्यालय को जिला स्तरीय प्रतियोगिताओं के आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी गई।
इस अवसर पर कुलानुशासक प्रोफेसर पुरेंद्र बारिक ने उड़िया भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रारंभिक शिक्षा में दो भाषाओं का समावेश आवश्यक है—एक संस्कृत की भाषा और दूसरी मातृभाषा। उन्होंने उपस्थित विद्यार्थियों को उड़िया भाषा में परिचय देना भी सिखाया।धर्मशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. दिलीप कुमार झा और व्याकरण विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. दयानाथ झा ने मैथिली की मिठास का वर्णन किया।
वेद विभाग के अध्यक्ष डॉ. ध्रुव मिश्रा ने मैथिली और संस्कृत की समानता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मैथिली भी संस्कृत और संस्कृति की रक्षा करती है। पुराने समय में उन्होंने गांव में बचपन के खेल का वर्णन किया कि कैसे संस्कृति अनायास सीख जाते थे। वहीं दर्शन विभाग के अध्यक्ष डॉ. धीरज कुमार पंडित ने संस्कृत में अपना भाषण प्रस्तुत किया।
साहित्य विभाग के डॉ. रितेश कुमार चतुर्वेदी ने त्रिभाषा सूत्र की चर्चा करते हुए मातृभाषा में शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। व्याकरण विभाग की सहायक आचार्य डॉ. एल. सविता आर्य ने कहा कि मातृभाषा की व्युत्पत्ति माटी से होती है, अर्थात जो हमें जन्म से जोड़ती है। उन्होंने अपनी मातृभाषा मारवाड़ी, जन्मभूमि भाषा तेलुगु और जीवन भाषा संस्कृत को बताया।
कार्यक्रम पदाधिकारी एवं संयोजक डॉ. साधना शर्मा ने संस्कृत के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि संस्कृत ही हमारी ऐसी भाषा है जो हमारी पहचान को संरक्षित करती है। ज्योतिष विभाग से डॉ. अवधेश कुमार श्रोत्रिय ने अपनी महत्वपूर्ण बातें रखीं।छात्रों में से विश्व मोहन ने ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के उदाहरण से मातृभाषा में शिक्षा के महत्व को दर्शाया।
उन्होंने बताया कि कैसे कलाम साहब ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में ग्रहण की और बाद में विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बने। इसके अतिरिक्त, उन्होंने एक प्रसिद्ध गायिका का उल्लेख किया जो अपनी मातृभाषा में गाने के कारण वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध और सबसे महंगी गायिका बनीं।कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं,शिक्षकों और प्रशासनिक अधिकारियों ने भाग लिया और मातृभाषा के महत्व को आत्मसात करने का संकल्प लिया।