वर्तमान युग में ज्ञान को डिजिटाइजेशन के माध्यम से सहेजने की आवश्यकता । विज्ञान और मानविकी हो तादात्म्य । उक्त बातें राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन,नई दिल्ली द्वारा संपोषित एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय,दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग तत्वबोध व्याख्यान के अंतर्गत “पांडुलिपि: प्रबंधन एवं प्रासंगिकता” विषय पर आयोजित व्याख्यान के उदघाटनकर्त्री के रूप में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की प्रतिकुलपति प्रो.डॉली सिन्हा ने कहीं । आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित इस उच्चस्तरीय अकादमिक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो.सिद्धार्थशंकर सिंह ने पांडुलिपियों की ऐतिहासिक महत्ता को विस्तार से रेखांकित करते हुए विश्वविद्यालयों द्वारा इनके समुचित विकास किए जाने पर बल दिया ।
मुख्य वक्ता शास्त्रचूड़ामणि विद्वान डा. मित्रनाथ झा ने पांडुलिपियों को भारतीय ज्ञान परंपरा की गंगोत्री की संज्ञा देते हुए इसके विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत प्रकाश डाला । साथ ही डा. झा ने मिथिला की पांडुलिपि धरोहर को बचाएं जाने तथा भावी पीढ़ी को इसे सुरक्षित स्थानांतरण किए जानें के लिए वर्तमान बुद्धिजीवियों से आगे आने का आह्वान किया । विशिष्ट अतिथि प्रो.जयशंकर झा ने बीज भाषण के क्रम में भारतीय विद्या को आगे बढ़ाने पांडुलिपियों के योगदान के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया । अध्यक्षीय उद्बोधन में स्नातकोत्तर विभागाध्यक्ष प्रो.जीवानंद झा ने प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा की विस्तृत व्याख्या करते हुए पांडुलिपियों की उत्पति पर विस्तार से चर्चा की । कार्यक्रम के प्रारंभ मे दीप प्रज्वलन से पूर्व प्रो.उमानंद झा,प्रो.बैजू,डा.अमरनाथ झा,डा.सोमेश्वर नाथ झा दधीचि ने सामूहिक रूप से वैदिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया ।
स्वागत डा.कृष्णकांत झा एवं धन्यवाद ज्ञापन डा. विनय कुमार झा द्वारा किया गया । डा. शम्भुकांत झा द्वारा संचालित इस कार्यक्रम में डा. बौवानंद झा, डा. विद्यानाथ झा ने भी विचार रखे । मौके पर प्रो.राजेंद्र साह,प्रो.रमेश झा, प्रो. मंजू चतुर्वेदी, प्रो ऋषिकेश कुमार, प्रो. रुद्रकांत अमर, प्रो.अनुरंजन के साथ कई गणमान्य विद्वान एवं शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं उपस्थित थे ।