विशेष रिपोर्ट | मैथिली न्यूज नेटवर्क
#MNN24X7 दरभंगा जिले में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक माहौल काफी सक्रिय हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गठबंधन के नेताओं तथा स्थानीय जनता के बीच इस बात को लेकर हलचल है,और यही स्थिति विपक्षी महागठबंधन, विशेषकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और उसके सहयोगी दलों में भी दिख रहा है।
इस रिपोर्ट में हम प्रमुख दलों की स्थिति, मतदाता मनोदशा तथा क्षेत्रीय-सामाजिक कारकों का विश्लेषण करने का प्रयास करेंगे।
2020 में इस क्षेत्र की विधानसभा सीट (दरभंगा विधानसभा क्षेत्र) पर भाजपा के संजय सरावगी को जीत मिली थी। वहीं भाजपा के कार्यकर्ता बताते हैं कि इस बार विकास के एजेंडे (सड़क, नालों, बिजली, पानी) को काम में लाकर वोट बैंक बढ़ाने की योजना है।
RJD-महागठबंधन के लिए भी दरभंगा महत्वपूर्ण क्षेत्र है। लेकिन महागठबंधन के भीतर सीट-बंटवारे व रणनीति को लेकर खटास दिख रहा है। साथ ही मतदाताओं बीच एक धारणा यह भी बन रही है कि अभी तक महागठबंधन ने काम कम और वादे अधिक किए हैं।
अगर मतदाताओं की मनोदशा एवं सामाजिक कारणों की बात करें तो कई ग्रामीणों का यह भी कहना है कि “मौजूदा विधायक ने पांच साल में बुनियादी सुविधाओं में सुधार कोई नहीं किया”। इसी वजह से स्थानीय स्तर पर कहीं कहीं विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह बात विशेषकर विपक्ष-वादियों द्वारा कही जा रही है।
दरभंगा जैसे जिले में छोटे दलों-संघों (जैसे उपचुनावी दल, जाति-आधारित संगठन) की भूमिका निर्णायक मानी जा रही है। मुस्लिम मतदाता समूह, जो इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं, अपेक्षाकृत असमंजस में दिखाई दे रहे हैं — कुछ विकास के एजेंडे पर भरोसा कर रहे हैं, तो कुछ महागठबंधन-विपक्ष की ओर देख रहे हैं।
वोट बैंक और जातीय समीकरण इस क्षेत्र में निर्णायक हैं। तथा सभी राजनीतिक दल इनका आकर्षण हासिल करने की कोशिश में हैं। महागठबंधन के अंदर सीट-बंटवारे, प्रत्याशी चयन तथा संचालन को लेकर भी मतभेद सामने आ रहे हैं, जिससे आम मतदाताओं में “महागठबंधन कमजोर है” की धारणा बन रही है। कुछ मतदाता तो यह भी मानते हैं कि “पिछली बार वादे तो खूब हुए, लेकिन परिणाम नहीं दिखा” —यह बात विशेषकर विपक्ष-वादियों द्वारा कही जा रही है।
हायाघाट विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो वहां कुछ जगहों पर देखा गया है कि भाजपा विधायक का ग्रामीणों ने विरोध किया है। जो कि यह संकेत देता है कि स्थानीय विकास-समस्या साथ ही जनसंपर्क-कमियों को मतदाता गंभीरता से ले रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार भाजपा को स्थानीय स्तर पर कुछ विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है; उदाहरणस्वरूप रामचंद्र प्रसाद (हायाघाट सीट से भाजपा विधायक/प्रत्याशी) को ग्रामीणों ने जनसंपर्क के दौरान तीखे नारे लगाने के बाद उन्हें वहां से बाहर जाना पड़ा। ग्रामीणों की टिप्पणी थी कि “विकास नहीं हुआ … पाँच साल में कुछ ठोस नहीं किया”। वहीं जाले विधानसभा क्षेत्र में गहराती राजनीतिक गुत्थियाँ हैं। एक ऐसी सीट जहाँ नामांकन हुआ लेकिन असल प्रभाव अलग ही दिख रहा है। मुस्लिम मतदाता समूह में “किसके साथ जाएँ” की स्थिति स्पष्ट नहीं — यह असमंजस महागठबंधन/एनडीए के लिए चुनौती हो सकती है।
दरभंगा में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए निम्नलिखित बातें विशेष रूप से देखी जा रही हैं:
विकास का प्रसंग अब सिर्फ नारा नहीं रहा — स्थानीय मतदाता इसे परीक्षण मान रहे हैं। बड़ी पार्टियों के साथ-साथ छोटे क्षेत्र-वादियों तथा जाति-आधारित घटकों की भूमिका निर्णायक होगी।
महागठबंधन के भीतर तालमेल में कमी यदि बनी रही, तो उसकी छवि को नुकसान हो सकता है। साथ ही भाजपा के लिए विकास-एजेंडा लाभप्रद हो सकता है, लेकिन स्थानीय शिकायतों और विरोध प्रदर्शन को भी हल करना होगा।
मुस्लिम व पिछड़े वर्गों का वोट बैंक झुकाव-विहीन माना जा रहा है — जिसे सही दिशा में खींचना हर दल के लिए अहम होगा। इसलिए, दरभंगा में “पार्टियों का झगड़ा” कम और “वोटरों की उम्मीदों-समीक्षाओं” का खेल ज्यादा-ज्यादा दिखाई दे रहा है। आगामी मतदाता-मतपत्र पर इसका असर कैसे दिखता है — यह देखने योग्य होगा।
