#MNN24X7 दरभंगा मैथिली के यशस्वी रचनाकार भवेशचन्द्र मिश्र ‘शिंवासुं’ के निधन के उपरांत मिथिला लेखक मंच के तत्वावधान में एक शोक सभा का आयोजन मैथिली साहित्य परिषद, दरभंगा के परिसर में किया गया। उनके निधन से मैथिली साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है और पूरे मिथिला क्षेत्र में शोक की लहर व्याप्त है।

शोक सभा की अध्यक्षता डॉ. विद्यानाथ झा ने की, जबकि संचालन चन्द्रेश जी ने किया। वक्ताओं ने स्व. मिश्र के साहित्यिक योगदान और उनके सहज, सरल व व्यवहारिक व्यक्तित्व को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

भवेशचन्द्र मिश्र ‘शिंवासुं’ मैथिली साहित्य के बहुआयामी रचनाकार थे। उनके प्रमुख कृतियों में “कपिश कथा मृत” (खंडकाव्य), “चीत्रंगदा”, “सुन्दर वन के छोर पर” (कथा संग्रह), “सोन चीरैया”, “भौड़ागढ़ी”, “दांगो गोढ़िण”, “युद्ध विज”, “सर सज्जा पर पितामह”, “मेघ माला” तथा “महायोद्धा” (उपन्यास) उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त “वन्द” और “प्रश्न” कविता संग्रह भी उनके चर्चित कृतियों में शामिल हैं। वर्तमान में उनकी आधा दर्जन पुस्तकें प्रकाशनाधीन थीं।

व्यक्ति के रूप में वे अत्यंत व्यवहारिक और मिलनसार थे। वे बैंक सेवा से अवकाश प्राप्त कर साहित्य साधना में निरंतर सक्रिय रहे। अपने पीछे वे दो पुत्रियों—जिनमें एक प्रोफेसर हैं—और एक अभियंता पुत्र को छोड़ गए हैं।

शोक सभा में प्रो. उदय शंकर मिश्र, रमेश जी, सुबेदार नन्द किशोर साहू, विजय कुमार मिश्र, बैजु कुमार झा, अविशेष कुमार, विवेक कश्यप, सुभाष कुमार झा सहित कई साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी उपस्थित रहे। सभी ने दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और उनके साहित्यिक अवदान को चिरस्मरणीय बताया।