डॉ कृष्णकान्त, डॉ शिवानन्द, डॉ घनश्याम, डॉ चौरसिया, डॉ ममता, डॉ मोना, अमित तथा मुकेश आदि ने रखे विचार।

छात्र-छात्राओं ने संस्कृत भाषा में रखे अपने शिविर के अनुभव, सभी प्रतिभागियों को दिया गया सहभागिता प्रमाण पत्र।

#MNN24X7 दरभंगा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, लोक भाषा प्रचार समिति, बिहार प्रांत तथा डॉ प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा के संयुक्त तत्त्वावधान में “पांच दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर” का समापन पीजी संस्कृत विभाग में विभागाध्यक्ष डॉ कृष्णकांत झा की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ शिवानन्द झा- मुख्य अतिथि, पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो, संस्कृत अध्ययन केन्द्र के अधिकारी डॉ आर एन चौरसिया, उदयनाचार्य पीठ के समन्वयक डॉ मोना शर्मा, संस्कृत-प्राध्यापिका डॉ ममता स्नेही, शिविर प्रशिक्षक अमित कुमार झा तथा फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा आदि ने विचार रखें। समारोह में प्रशिक्षु- आकाश अग्रज, अभिषेक कुमार, निशांत कुमार, दयानंद कुमार, लाल बाबू कुमार, दिनेश कुमार भगत, ज्योति कुमारी, कुमकुम कुमारी तथा नीरज कुमार आदि ने संस्कृत भाषा में अपने अनुभवों को साझा किया। सभी प्रतिभागियों को आयोजकों के द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
प्रशिक्षक अमित कुमार झा के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में नीरज कुमार ने वैदिक मंगलाचरण किया, जबकि कुमकुम कुमारी ने संस्कृत में सरस्वती वंदना प्रस्तुत करते हुए शिविर का ध्येय-गीन- पठामि संस्कृतं नित्यम्… का गायन किया।

स्वागत संबोधन डॉ ममता स्नेही ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन मुकेश कुमार झा ने किया। प्रतिभागियों ने संस्कृत में अपना तथा अपने परिवार का परिचय, समय परिचय, गणेश वंदना तथा दैनिक क्रियाकलापों का परिचय दिया। साथ ही संस्कृत में अनेक प्रेरक वाक्यों एवं श्लोकों का वाचन किया। उन्होंने शिविर से काफी लाभ होने तथा आत्मविश्वास बढ़ने की बात करते हुए कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा ही नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। प्राचीन, वैज्ञानिक एवं देवभाषा संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। हमलोग शिविर आयोजन से थोड़ा-बहुत संस्कृत बोलना सीख गए हैं। आगे अभ्यास जारी रखेंगे तथा अगले शिविर में भी भाग लेंगे।

डॉ शिवानन्द झा ने कहा कि यद्यपि 100% शुद्ध संस्कृत बोलना कठिन है, फिर भी यह धीरे-धीरे प्रयास से सीखी जा सकती है। सीखने की कोई अवस्था नहीं होती है। अतः हमलोग संस्कृत को बोलचाल एवं व्यवहार की भाषा बनाएं। डॉ कृष्णकांत झा ने कहा कि छात्र व्याकरण या शुद्धता पर ध्यान न देते हुए पहले संस्कृत में बोलना सीखें। यदि वे संस्कृत बोलना सीख जाएंगे तो बाद में शुद्धता स्वत: आ जाएगी। उन्होंने अगले वर्ष के शुरुआत में पुनः बड़े शिविर आयोजन की घोषणा की। डॉ घनश्याम महतो ने कहा कि संस्कृत काफी उपयोगी एवं व्यावहारिक भाषा है। संस्कृत संभाषण सोपानवत् है जो जितना प्रयास करेगा, वह उतना ही आगे बढ़ेगा। इस दृष्टि से शिविर का आयोजन सराहनीय कदम है।

डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि नियमित संस्कृत संभाषण से मस्तिष्क सक्रिय एवं सशक्त होता है, जिससे स्मरण शक्ति, एकाग्रता तथा विश्लेषण क्षमता बढ़ती है। साथ ही इसे सदाचार, करूणा एवं सत्यनिष्ठा जैसे गुण विकसित होते हैं। उन्होंने संस्कृत की महत्ता बताते हुए कहा कि इससे भारतीय सांस्कृतिक विरासत सुरक्षित रहेगी, क्योंकि यह भारतीय संस्कृति, हमारे संस्कार एवं जीवन दृष्टि की आधारशिला है।
डॉ मोना शर्मा ने कहा कि संस्कृत हमारे जीवन का आधार है। आज संस्कृत शिक्षकों का अभाव नहीं है। संस्कृत में बोलना लज्जा की नहीं, बल्कि गर्व की बात है। विभाग में नियमित शिविर आयोजन से छात्रों को काफी लाभ हो रहा है। कार्यक्रम में डॉ निसार अहमद ने भी विचार रखें। डॉ ममता स्नेही ने स्वागत संबोधन किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन मुकेश कुमार झा ने किया। शांति मंत्र पाठ से समारोह का समापन हुआ।