*’गीता में वर्णित भक्तियोग का स्वरूप एवं महत्ता’ विषयक कार्यक्रम में 100 व्यक्तियों की हुई सहभागिता*
*वेबीनार में प्रो ऋतु बाला,डा सरिता, प्रो जयप्रकाश, डा फूलो, डा विकास, डा सुनीता, डा चौरसिया ने रखे महत्वपूर्ण विचार*
*दिव्य एवं शाश्वत आध्यात्मिक ग्रन्थ गीता में ज्ञान, कर्म व भक्ति का अद्भुत समन्वय- प्रो ऋतु बाला*
*गीता आध्यात्मिक ज्ञान का अमूल्य निधि, जिसका संपूर्ण विश्व में है आदरणीय स्थान- प्रो जयप्रकाश*
*ब्रह्मज्ञानी व कर्मत्यागी बनना कठिन, पर भक्ति से मुक्ति पाना सहज व सरल- डा सरिता*
*गीता का समाज- निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान, जिसका भक्तियोग सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक- डा चौरसिया*
सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभाग के तत्वावधान में “गीता में वर्णित भक्तियोग का स्वरूप एवं महत्व” विषयक ऑनलाइन/ऑफलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पंजाब विश्वविद्यालय, होशियारपुर की प्राध्यापिका प्रो ऋतु बाला, मुख्य वक्ता जामिया मिलिया इस्लामिया (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जयप्रकाश नारायण, विशिष्ट अतिथि के रूप में कमला नेहरु कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली की प्राध्यापिका डा सरिता शर्मा, अध्यक्ष के रूप में प्रधानाचार्य डा फुलो पासवान, मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह संचालक एवं स्वागत कर्ता, संस्कृत विभागाध्यक्ष, सी एम कॉलेज, दरभंगा के डा आर एन चौरसिया संयोजक एवं विषय प्रवर्तक के रूप में तथा धन्यवाद कर्ता के रूप में मारवाड़ी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभागाध्यक्षा डा सुनीता कुमारी आदि ने अपने विचार व्यक्त किए, जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ मैत्रेयी कुमारी, एमआरएम कॉलेज से डॉ नीलम सेन, सी एम कॉलेज से डा मसरूर सोगरा, संस्कृत विश्वविद्यालय से डा दीनानाथ साह, मिथिला विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जीवानंद झा, जीकेपीडी कॉलेज से डा प्रमोद साह, विद्यानंद चौरसिया, डा कृष्णकांत, डा बृजेश, डा मीना कुमारी, डा विक्रम, डा देवी सिंह, डा रमेश, शोधार्थी बालकृष्ण सिंह, डा अर्चना, डा एकता वर्मा, डा शालिनी, डा नंदकिशोर, रामाशंकर, जूही झा, नीरज, उपासना, प्रिंस, संगीता, ब्रजकिशोर, कृष्णा, रवीन्द्र, अतुल, मिथुन, व वेदालंकार सहित 100 व्यक्तियों ने भाग लिया।
मुख्य अतिथि प्रो ऋतु बाला ने कहा कि दिव्य एवं शास्वत आध्यात्मिक ग्रंथ गीता में ज्ञान, कर्म और भक्ति का अद्भुत समन्वय है। यह ज्ञानकोष मानव- जाति का युग- युग तक कल्याण करता रहेगा। गीताज्ञान किसी धर्म- संप्रदाय या जाति- वर्ग तक ही सीमित न होकर समस्त मानवता के कल्याण करने में सक्षम है। उन्होंने भक्ति शब्द के व्याकरणिक निर्वचन की विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि लौकिक प्रेम जब अलौकिक प्रेम का रूप धारण करता है तो वह भक्ति में परिवर्तित हो जाता है। गीता में 4 भक्तों के बारे में बताकर भक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
मुख्य वक्ता प्रो जयप्रकाश नारायण ने कहा कि गीता आध्यात्मिक ज्ञान का अमूल्य निधि है, जिसका संपूर्ण विश्व में आदरणीय स्थान है। गीता षड्दर्शन व उपनिषदों का सार है, जिसमें सर्वधर्म समन्वयक का रूप दिखता है। यह भगवान कष्ण तथा धनुर्धर अर्जुन के बीच संवाद रूप में है, जिसके 12 वें अध्याय में भक्तिमार्ग का विशेष वर्णन हुआ है। उन्होंने सगुण व निर्गुण भक्ति तथा नवधा भक्ति की चर्चा कर भक्तों द्वारा ईश्वर प्राप्ति की प्रक्रिया को समझाते हुए कहा कि गृहस्थावस्था में रहते हुए भी भक्त भक्ति की अनुभूति कर सकता है। ज्ञान युक्त भक्ति ही सच्ची भक्ति है।
विशिष्ट अतिथि डा सरिता शर्मा ने कहा कि ब्रह्मज्ञानी व कर्मत्यागी बनना कठिन है, पर भक्तियोग से मुक्ति पाना सहज और सरल है। 18 अध्यायों के गीता में 7 से 12 वें अध्याय तक भक्ति की विशद चर्चा है। गीता का संदेश विश्वव्यापी है और भारतीयता को विदेशों में स्थापित करने में भक्ति योग का महत्वपूर्ण स्थान है।
अध्यक्षीय संबोधन में प्रधानाचार्य डा फुलो पासवान ने आयोजक, अतिथि एवं प्रतिभागियों को बधाई एवं शुभकामना देते हुए कहा कि मिथिला में छह में से चार दर्शनों का प्रादुर्भाव हुआ है। भक्तियोग अन्य योगों से सरल एवं सफल योग है। भक्त अहंकार रहित ईश्वर के शरणागत हो जाते हैं। भक्ति भवसागर से मुक्ति का बेहतरीन माध्यम है।
कार्यक्रम के संयोजक डा आर एन चौरसिया ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि समाज- निर्माण में गीता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिसके भक्तियोग का महत्व सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक है। भक्त भगवान का अत्यंत प्यारा होता है, जिसका उद्धार भगवान स्वमेव करते हैं।
अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत एवं विद्वता पूर्ण कार्यक्रम का संचालन डा विकास सिंह ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डा सुनीता कुमारी ने किया।