कहा- देव भाषा नहीं , लोक भाषा बनाने की जरूरत
#MNN24X7 दरभंगा, संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने गुरुवार को संस्कृतानुरागियों के लिए बहुत बड़ा सन्देश दिया है। पदाधिकारियों के साथ औपचारिक बैठक में उन्होंने कहा कि हम अपने घर के बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं यह बहुत ही अच्छी बात है लेकिन सिर्फ इससे काम चलनेवाला नहीं है। संस्कृत के फलक को विस्तारित करने के लिए इसके अतिरिक्त आस-पास के कम से कम दस बच्चों को भी हमलोग संस्कृत पढ़ाएं। ऐसा करने से संस्कृत के जानकारों की एक सशक्त श्रृंखला बनेगी और इस भाषा के लिए नया वातावरण भी तैयार होगा जिससे इसकी पैठ सुलभता से समाज मे हो जाएगी। इतना ही नहीं, समाज को संस्कृत के प्रति आकर्षित करने की जरूरत है। खुशी की बात है कि लोगों की श्रद्धा आज भी संस्कृत में है। उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि संस्कृत की मौजूदा दशा व दिशा पर कुलपति ने बेहद चिंता जताई।
इसी क्रम में कुलपति प्रो0 पांडेय ने कहा कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना करीब छह दशक पूर्व हुई थी। बावजूद इसके यहां संस्कृत में कार्यशैली नहीं पनप पायी। यहां के कई विद्वानों ने देश स्तर पर ख्याति हासिल की है लेकिन समाज मे संस्कृत लोक भाषा नही बन पायी, इस पर किसी का ध्यान नहीं जा सका। हमलोग जाने अनजाने संस्कृत को देवभाषा-देववाणी कहने लगे। इससे इस भाषा के प्रति एक भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी और दिनों दिन इस भाषा से समाज दूर होता चला गया। हमने इसे सीमित कर दिया। ऐसे में कायदे से दस पंक्ति संस्कृत में बोलना-लिखना एक चुनौती तो है लेकिन मिलजुलकर सार्थक प्रयास से संस्कृत को व्यवहार में लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि रोज के व्यवहार व उपयुक्त वातावरण से ही संस्कृत पुष्पित व पल्लवित होगी। इसे लोक भाषा बनाने को हर सम्भव प्रयास जारी रखने की जरूरत है।
इसी क्रम में कुलपति प्रो0 पांडेय ने कहा कि जून के प्रथम सप्ताह से विश्वविद्यालय मुख्यालय में शुरू होने जा रहा आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम भी संस्कृत को बढ़ावा देने के लिये ही आयोजित किया जा रहा है।