प्रत्येक व्यक्ति यदि प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट योगाभ्यास करें तो स्वस्थ रहना संभव- डा घनश्याम।

योग स्वस्थ एवं लंबा जीवन प्रदान कर हमें बनाता है बुद्धिमान एवं शक्तिमान- प्रो रमेश।

योग भारत की श्रेष्ठ जीवन पद्धति, जिसे अपनाकर सुखी समाज तथा समृद्ध राष्ट्र के सपने को किया जा सकता है साकार- डा चौरसिया।

“भारतीय परंपरा में योग” विषयक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में जुड़े देश- विदेश के अनेक विद्वान शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी।

#MNN@24X7 दरभंगा, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, बुद्धिस्ट एवं पाली विश्वविद्यालय श्रीलंका के संस्कृत विभाग तथा मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में “भारतीय परंपरा में योग” विषयक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया, जिसमें देश- विदेश के अनेक विद्वान शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों ने शिरकत की। कार्यक्रम उद्घाटन, तकनीकी तथा समापन- तीन सत्रों में संपन्न हुआ।

मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के प्रधानाचार्य डा दिलीप कुमार में वेबीनार का उद्घाटन किया।अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो ने योग के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यदि प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट भी योग को जीवन में अपनाएं तो हम स्वस्थ रह सकते हैं। भीएसजे कॉलेज, राजनगर के प्रधानाचार्य प्रो जीवानन्द झा ने विषय प्रवेश कराया, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में बुद्धिस्ट एवं पाली विश्वविद्यालय श्रीलंका के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो लेनेगल सिरिनिवास तथा श्रीलंका के डा कंडेगामा दीपवान्सलनकारा एवं थाईलैंड के डा सइपमओन्गकओल सम्मानित अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में योग के महत्व को रेखांकित किया।

तत्पश्चात तकनीकी सत्र में डा राजेन्द्र कुमार, डा आयुष गुप्ता, ज्योति, गीतगोविंद शुक्ला, डा धर्मेन्द्र कुमार, डा एकता वर्मा तथा सोमनाथ दास आदि ने अपने- अपने विचार रखे। वहीं डा फारूक आजम, राजकुमार चक्रवर्ती, बालकृष्ण कुमार सिंह, विशाल, आशीष रंजन, डा कृष्णा सिंह, संगम जी झा, नीरज कुमार सिंह सहित एक सौ से अधिक व्यक्तियों ने वेबीनार में भाग लिया। स्वागत संबोधन डा विकास सिंह ने किया।

समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रोफेसर रमेश प्रसाद ने कहा कि 21 जून वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है, इसलिए इसी दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में चुना गया। योग हमें स्वस्थ एवं लंबा जीवन प्रदान करते हुए बुद्धिमान एवं शक्तिमान बनाता है। उन्होंने कहा कि स्वयं को अनुशासित रखना ही योग है। बौद्ध धर्म में भी अष्टांग योग का विस्तृत वर्णन है।

अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत- प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि योग हमारी बेहतरीन जीवन पद्धति है जो कला एवं विज्ञान दोनों ही है। इसके दैनिक अभ्यास से हम स्वस्थ रहकर इस धरती पर सुखोपभोग करते हुए स्वर्ग की अनुभूति कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत की प्राचीन परंपरा को आधुनिक रूप में प्रस्तुत कर भारत ने विश्व को एक सर्वोत्कृष्ट उपहार दिया है। योग के माध्यम से सामाजिक सौहार्द स्थापित करते हुए सुखी समाज तथा समृद्ध राष्ट्र की कामना को साकार किया जा सकता है।

इस अवसर पर सम्मानित अतिथि के रूप में प्रो के बी जयवर्धने तथा डा प्रपलाद सोरावित ने अपने विचार व्यक्त किए। स्वागत संबोधन डा सुमनसारा थेरो ने किया। उपसमन्वयक डा गजेन्द्र भारद्वाज के संचालन में आयोजित वेबीनार में धन्यवाद ज्ञापन अंतरराष्ट्रीय वेबीनार के संयोजक सह मारवाड़ी महाविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह ने किया।