चन्द्रभूषण पाठक की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में डा घनश्याम, डा चौरसिया, डा विनोद, डा आनंद राज, डा विकास, डा ममता, सुजय पांडे ने रखे विचार।
कुष्टरोग का सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक आदि अनेक कुप्रभाव- चन्द्रभूषण।
कुष्ठरोग वैश्विक, पर अनुवांशिक रोग नहीं, पूर्ण एवं सही जानकारी से ही भारत कुष्ठरोग मुक्त देश बनेगा- डा चौरसिया।
#MNN@24X7 दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के पीजी संस्कृत विभाग में विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग, सक्षम, दरभंगा तथा पीजी एनएसएस इकाई के संयुक्त तत्वावधान में “कुष्ठरोग : समस्या एवं निदान” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें स्नातकोत्तर संस्कृत विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो, सक्षम के उत्तर बिहार प्रांताध्यक्ष चन्द्रभूषण पाठक, कुष्ठ रोग विशेषज्ञ डा मोर्सेस आनंद राज (चेन्नई), एनएसएस के विश्वविद्यालय समन्वयक डा विनोद बैठा, संगोष्ठी के संयोजक डा आर एन चौरसिया, मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह, एमएल एकेडमी, दरभंगा के शिक्षक सुजय पांडे, विभागीय शिक्षिका डा ममता स्नेही आदि ने विचार व्यक्त किया।
वहीं सक्षम, दरभंगा के संयोजक विजय कुमार लाल दास, इतिहास के प्राध्यापक डा मनीष कुमार एवं डा अवनीश कुमार (के एस कॉलेज), सदानंद विश्वास, संदीप घोष, अनिमेष मंडल, बालकृष्ण कुमार सिंह, सोनाली मंडल, मंजू अकेला, विद्यासागर भारती, हिन्दी- शिक्षक डा गुरु कुमार आनंद, अजय कुमार, आदित्य मिश्रा, प्रशांत कुमार झा, ज्योति कुमारी, प्रियंका, सलोनी, खुशबू, उषा कुमारी, श्रेया, पुष्पांजलि, शिवानी, अफसाना परवीन, हरम हासमी एवं अभिनव प्रकाश सहित 50 से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे।
मुख्य वक्ता के रूप में कुष्ठरोग विशेषज्ञ डा मोर्सेस आनंद राज ने कहा कि कुष्ठ एक पुराना रोग है जो इलाज से पूरी तरह ठीक हो सकती है। यदि प्रारंभिक अवस्था में ही सही से काउंसलिंग हो तो 50% कुष्ठरोग का इलाज हो जाता है। सामान्य कुष्ठरोग छह माह में तथा गंभीर कुष्ठरोग 12 माह में इलाज से ठीक हो सकता है। कुछ लोग इसे व्यक्ति के पूर्व के पापों का रोग मानते हैं जो बिल्कुल ही गलत है। हम सामाजिक कलंकता को छोड़कर जन जागरूकता फैलाकर कुष्ठरोग से मुक्ति पा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कुष्ठरोग का बैक्टीरिया नसों को कुप्रभावित करता है, जिससे अंग सुन्न हो जाता है। उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग इस से बच सकते हैं।
अध्यक्षीय संबोधन में चन्द्रभूषण पाठक ने कहा कि कुष्ठरोग से शरीर पर गहरा धब्बा बनता है, जहां दर्द महसूस नहीं होता है। कुष्ठरोग खुद दिव्यांगता नहीं है, पर इसके कारण कई तरह की दिव्यांगताएं उत्पन्न होती हैं।
उन्होंने कहा कि कुष्ठरोग का रोगी एवं समाज पर काफी कुप्रभाव पड़ता है, जिनमें सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक आदि प्रभाव शामिल हैं। इसके कारण तनाव, हीनभावना, नकारात्मकता, चिरचिरापन, आत्मविश्वास की कमी, बहिष्कार, अपनत्व का अभाव, रोजगार की समस्या एवं भिक्षावृत्ति आदि बढ़ती है।
अतिथि स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो ने कहा कि ईसा पूर्व 600 ईस्वी के सुश्रुत संहिता में भी कुष्ठरोग के प्रमाण मिलते हैं। यह एक बैक्टीरियल रोग है जो धीरे-धीरे 15 से 20 वर्षों में शरीर में फैलता है, जिससे प्रायः लोग जान भी नहीं पाते हैं। पहले इसे गरीबों का रोग कहा जाता था, पर यह धारणा आज गलत है। इससे त्वचा में विकृति, अंगों का गलना तथा दर्द महसूस न होना आदि होता है।
एनएसएस कोऑर्डिनेटर डा विनोद बैठा ने कहा कि कुष्ठरोग तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है, जिससे दाग, दाना एवं लाल चकता आदि होता है। हर जिला में कुष्ठरोगी को मुफ्त रूप में इलाज होता है। वहीं डा विकास सिंह ने कहा कि इस बीमारी के प्रमाण मिश्र एवं चीन आदि देशों में भी प्राचीन काल से ही मिलते हैं। वैज्ञानिक सोच एवं समुचित चिकित्सीय इलाज से इसे ठीक किया जा सकता है, जबकि सुजय पांडे ने कहा कि यदि रोगी सुबह सूरज प्रकाश का सेवन करें तथा योग, प्राणायाम एवं आयुर्वेदिक तरीके से जीवन यापन करें तो रोग जल्दी ठीक हो सकता है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए संयोजक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि कुष्ठ एक वैश्विक बीमारी है, पर यह अनुवांशिक रोग नहीं है। पूर्ण एवं सही जानकारी से ही भारत कुष्ठरोग मुक्त हो सकता है। धन्यवाद ज्ञापन विभागीय शिक्षिका डा ममता स्नेही ने किया।