#MNN@24X7 दरभंगा। प्राचीन युग से ही भारत खगोल विज्ञान के क्षेत्र में समृद्धशाली रहा है। ब्रह्मांड के ज्ञात सभी पहलुओं की सटीक व्याख्या वैदिक ग्रंथों में दर्ज है और आधुनिक खगोल विज्ञान भी इससे सहमत है।
भारत में खगोलिकी की अति प्राचीन एवं उज्ज्वल परम्परा रही है। वास्तव में भारत में खगोलीय अध्ययन वेद के अंग (वेदांग) के रूप में ईसा पूर्व या उससे भी पहले शुरू हो चुका था। ब्रह्मांड के बारे में इस भारतीय वैदिक दृष्टिकोण से अमेरिकी खगोलशास्त्री कार्ल एडर्वड सेगन भी प्रभावित थे। आधुनिक काल के खगोलीय वैज्ञानिक कार्ल सागन ने वैदिक ग्रंथों में मौजूद तारों की गणना, सभी ग्रहों के अपनी धुरी पर परिगमन आदि तथ्यों को आधुनिक तरीके से स्थापित किया है।
ये बातें इंजीनियरिंग कॉलेज के वरीय प्रो डॉ अविनाश कुमार मिश्र ने डॉ प्रभात दास फाउण्डेशन एवं लनामिविवि के पी जी भूगोल विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सेमिनार में कही।उन्होंने भारतीय खगोलशास्त्र और कार्ल सेगन विषय पर बताया कि जब दुनिया ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजने का प्रयास कर रही थी, उससे पूर्व ही भारतीय मनीषियों ने सीमित संसाधनों में इसके रहस्य से पर्दा हटा दिया था।
ईसा पूर्व में ही आर्यभट्ट, वराह, ब्रह्मगुप्त, बोधायन आदि जैसे महर्षियों ने खगोलविज्ञान को व्यापक ऊँचाई दी। कार्ल सेगन भारतीय खगोल ज्ञान से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने इस संबंध में भारत आकर शोधपूर्ण टेली फिल्म का निर्माण किया। इस फिल्म के जरिए उन्होंने पूरे विश्व को बताया कि आधुनिक युग में जिन खगोलीय विवरणों को स्थापित किया जा रहा है, वे पहले से ही वैदिक ग्रंथों में उपलब्ध हैं।
कार्ल सेगन ने यह भी साबित किया कि भारत के सभी पर्व- त्योहार पूर्णतया खगोलीय ज्ञान पर आधारित है। उन्होंने शिव तांडव की मुद्राओं को भी ब्रह्मांड से जोड़ा और उसे सत्यापित किया। सेमिनार में विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद उच्चैठ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ शुभ कुमार साहु ने काव्यात्मक प्रस्तुति के जरिए सरल शब्दों में विषय वस्तु पर प्रकाश डाला, जबकि अध्यक्षता करते हुए भूगोल विभागाध्यक्ष डॉ संतोष कुमार ने कहा कि भारत खगोल विज्ञान की जन्मभूमि रही हैं और ब्रह्मांड से संबंधित अधिकांश ज्ञान यही से फैले हैं। ब्रह्मांड संबंधी विचार जो प्राचीन धर्मग्रंथों के केन्द्र में है, वहीं आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान का भी आधार बना है। इस संबंध में उन्होंने ऋग्वेद का भी हवाला दिया और बताया कि सबसे परिष्कृत ब्रह्मांड संबंधी विचार भारत से ही पूरे विश्व में फैला है।
जबकि भूगोल विभाग की डॉ रश्मि शिखा ने कहा कि आधुनिक वैज्ञानिक ब्रह्मांड विज्ञान के जिस सिद्धांत पर कार्य रहे हैं वो भारतीय दर्शन की देन है। यहां के ऋषि- मुनियों ने प्राचीन काल में ही ब्रह्मांड को सर्वोपरि माना और इस क्षेत्र में ऐसे कार्य किए जो आज भी नजीर बना हुआ है। इससे पूर्व कार्यक्रम का आरंभ अतिथि को पौधा प्रदान कर किया गया।धन्यवाद ज्ञापन प्रो मनुराज शर्मा ने किया, जबकि स्वागत फाउण्डेशन के सचिव मुकेश कुमार झा किया।
वहीं संचालन डॉ अनुरंजन कुमार ने करते हुए कहा कि प्राचीन भारतीय खगोल शास्त्रियों ने अंतरिक्ष के अनेक बुनियादी सिद्धांतों का प्रतिपादन किया, जिनमें पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करने की अवधारणा, चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण, गुरुत्वाकर्षण बल तथा ग्रहों की गति की गणना आदि शामिल हैं। आज भी इन्हीं तथ्यों पर मंथन हो रहा है और आधुनिक खगोलशास्त्री मानते हैं कि पहले ही इसकी खोज भारतीयों ने कर दी थी। कार्यक्रम में शिक्षक सोनू दास, राजकुमार गणेशन, अनिल कुमार सिंह आदि मौजूद थे।