#MNN@24X7 दरभंगा, आज दिनांक 08-04-2023 को महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 130वीं जयंती की पूर्व संध्या पर विश्विद्यालय हिंदी विभाग में ‘राहुल सांकृत्यायन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो० राजेन्द्र साह की अध्यक्षता में किया गया। संगोष्ठी की विधिवत् शुरुआत महापंडित राहुल सांकृत्यायन के तैल चित्र पर माल्यार्पण-पुष्पांजलि के साथ हुई।
प्रो० राजेन्द्र साह ने इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि उन्हें महापंडित की उपाधि इसलिए नहीं दी गयी क्योंकि वे छत्तीस भाषाओं के जानकार थे,बल्कि उनमें वह प्रेम का तत्त्व था जिसकी वजह से वे महापंडित कहलाए। वे मानवतावादी विचारों को अंगीकार करनेवाले महान व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने पचास हजार पृष्ठों के साहित्य का सृजन किया। उनके साहित्य में समाज का सबसे अंतिम व्यक्ति स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
इस अवसर पर डॉ० मंजरी खरे ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन सातवीं में पढ़ते समय ही घर छोड़ कर भाग निकले। तमाम तरह की यात्राओं को पूरा करते हुए राहुल सांकृत्यायन ने अमवारी के किसान आंदोलन में भाग लिया। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि सैंतीस भाषाओं के ज्ञाता राहुल ने अपना लेखन कार्य हिंदी में किया। राहुल सांकृत्यायन का जन्म सनातनी ब्राह्मण परिवार में हुआ, श्रीलंका जा कर वे बौद्ध हुए और फिर रूस की यात्रा के बाद उन्होंने मार्क्सवाद अपना लिया। इस दृष्टि से देखा जाय तो उनके सम्पूर्ण जीवन में वैचारिक संघर्ष देखा जा सकता है।
प्रो०सिंह ने कहा कि उनके लेखन के केंद्र में इतिहास है। चाहे वह कहानियाँ हों, उपन्यासों हों या यात्रा संस्मरण हों। उनके साहित्य की प्रारंभिक अवस्था में ब्रिटिश सम्राज्यवाद और भारतीय सामंतवाद का क्रांतिकारी विरोध दिखाई सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
डॉ० सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने इस अवसर पर कहा कि राहुल सांकृत्यायन क्रांतिकारी और योद्धा साहित्यकार थे। उन्होंने मार्क्सवाद का गहन अध्ययन कर उसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाया था।
संगोष्ठी में वरीय शोधप्रज्ञ कृष्णा अनुराग, अभिषेक कुमार सिन्हा, सियाराम मुखिया, शिखा सिन्हा, दुर्गानन्द ठाकुर, सरिता कुमारी, ज्योति कुमारी समेत बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी, छात्र और साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।