-ज्ञान को निर्यात करने के कारण ही भारत को पहले प्राप्त था विश्वगुरु का दर्जा : प्रो. पवन कुमार सिन्हा।
-मिथिला ने तर्क की परंपरा को दी है जन्म : प्रो. अरविंद कुमार झा।
-भारत अपनी जड़ से ही जुड़कर बन सकता है विश्वगुरु : प्रो. उषा शर्मा।
-शिक्षकों के मूल में वैज्ञानिक सोच होने की जरूरत : प्रो. सुभाष चंद्र राय।
-राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की बुनियाद भारत को विकसित देश बनाने की : प्रो. फैज अहमद।
-बीएड (नियमित) विभाग में आइसीएसएसआर प्रायोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का सफल समापन।
समापन समारोह को संबोधित करते डॉ. सुरेंद्र मोहन झा व मुख्य अतिथि प्रो. पवन सिन्हा।
सेमिनार को संबोधित करते प्रो. उषा शर्मा व मंचासीन अतिथि।
#MNN@24X7 दरभंगा। शिक्षक ही बच्चों के चरित्र का निर्माण कर सकते हैं। इसके लिए शिक्षकों को नैतिक रूप से मजबूत होने की जरूरत है। नैतिक रूप से मजबूत होने के लिए बिहार के शिक्षकों को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।
उक्त बाते बीएड (नियमित) विभाग के तत्वावधान में आइसीएसएसआर प्रायोजित ‘समाज में शिक्षकों की भूमिका की परिकल्पना/राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020: विश्वगुरु भारत’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुरेंद्र मोहन झा ने कही। प्रो. झा ने कहा कि शिक्षक को बिना आशा के समाज और प्रणाली को बदलने में अपनी भूमिका निभाई चाहिए। शिक्षकों के सकारात्मक रूप से कार्य करने पर ही भारत फिर से विश्वगुरु बन सकता है।
मोतीलाल नेहरू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीतिक विभाग के प्रो. पवन कुमार सिन्हा ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय पहले चर्चा-परिचर्चा को लेकर कभी घबराते नहीं थे। भारत की पहचान ही इसी से थी। भारत को ज्ञान का देश कहा जाता था। भारत पहले ज्ञान का निर्यात करता था, अभी ज्ञान का आयात करने का कार्य कर रहा है। ज्ञान को निर्यात करने के कारण ही भारत को विश्वगुरु का दर्जा प्राप्त था। प्रो. सिन्हा ने कहा कि विश्वगुरु भारत का वर्तमान का विषय है। शिक्षक पहले समाज को दिशा दिखाने का कार्य थे। वर्तमान में इसमें काफी हास आ गया है।
इग्नू के शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रो. अरविंद कुमार झा ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि मिथिला ने तर्क की परंपरा को जन्म दी है। शिक्षक भविष्य के निर्माण करने के लिए ही है। मनुष्य जो चाहता है, जीवन में वही सीखता है। प्रधानाध्यापकों को अपने महाविद्यालयों और विद्यालयों में नियम तय करने का अधिकार होना चाहिए। इसके लिए सरकार को नियम में बदलाव करने पर सोचना चाहिए। शिक्षकों को खुद तो ज्ञानी होना ही चाहिए, साथ ही छात्रों को भी ज्ञानी बनाने की कला आना चाहिए।
एनसीईआरटी, नई दिल्ली के शिक्षाशास्त्र विभाग की प्रो. उषा शर्मा ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि लॉड मैकाले के बनाये हुए झासे की जाल में आज भी भारत की शिक्षा पद्धति है। इससे निकलने के लिए जो नई शिक्षा नीति 2020 का प्रारूप तैयार किया गया है, जिसके लिए सबसे पहले अपनी जड़ को टटोलने की जरूरत है कि किस शिक्षा पद्धति के कारण भारत पहले विश्वगुरु था। भारत अपनी जड़ से ही जुड़कर विश्वगुरु बन सकता है। हमें अपना अस्तित्व दूसरे में खोजने की जरूरत नहीं है।
प्रो. शर्मा ने कहा कि वर्तमान में शिक्षा के लक्ष्य को बदलने की जरूरत है। शिक्षा निर्माण करने की प्रक्रिया है। शिक्षा और जीवन एक-दूसरे का पर्याय हैं। हर कोई व्यक्ति शिक्षक नहीं बन सकते हैं, वैसे लोगों को शिक्षक बनाने की जरूरत है, जो मन से शिक्षक बनना चाहते हैं। इसके लिए शिक्षा को चहारदीवारी से मुक्त करना होगा। मॉडर्न होने के नाम पर हमें अपनी सभ्यता को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। शिक्षकों को भारतीय होने पर गर्व करना होगा।
प्रो. शर्मा ने कहा कि मुझे पूरी उम्मीद है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक बेहतर शिक्षक के साथ अच्छे इंसान और तर्कशील मानव का निर्माण करेंगे। नवाचार की सफलता तभी होती है जब वे जमीन पर परिवर्तन लाने में सक्षम हो। मुझे अपना खोया सम्मान वापस पाने की जरूरत है न कि दूसरे को हमेशा मानक मानने की।
एनसीईआरटी, शिलाँग के शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रो. सुभाष चंद्र राय ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षकों के मूल में वैज्ञानिक सोच होने की जरूरत है। इसके लिए आवश्यकता है कि शिक्षकों को पाठ्यक्रम की बाध्यता से मुक्त करने की। शिक्षक ये बात जान लें कि सम्मान मांगने की नहीं, अर्जित करने की चीज है। शिक्षण में गतिविधि नाम का चीज होना ही चाहिए, जिससे शिक्षक से बाल केंद्रित शिक्षा व्यवस्था का निर्माण कर सकें।
प्रो. राय ने कहा कि नई शिक्षा नीति का आत्मा समेकित है। इसमें सभी बिंदुओं पर जोर दिया गया है। अब शिक्षकों को समावेशी प्रयास करके इसे जमीन पर उतारने का कार्य करना चाहिए। इसके लिए भारत में सांस्थानिक सभ्यता का विकास करना होगा, जिससे सोचने का एक मंच तैयार हो सकें।
मानू, दरभंगा के प्रधानाध्यापक प्रो. मो. फैज अहमद ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की बुनियाद भारत को विकसित देश बनाने की है। दिल से सोचकर नीति पर कार्य किया गया है। शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान के लिए स्कूल एक लैब की तरह है। इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के पास स्कूल होने की बात कही गई है। कोई भी नई व्यवस्था लागू करने में काफी परेशानी होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अगले 20 वर्ष तक एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने की बात कही गई है, जिससे आने वाले समय में शिक्षकों के मन में एक लगन के साथ समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो। अब शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान का कार्य समाज की प्रतिभाओं को समाने लाने की है।
बीएड (नियमित) विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार मिलन ने सेमिनार में शामिल सभी संसाधन पुरूषों,शोधार्थियों, डेलीगेट्स और छात्र-छात्राओं का आभार प्रकट किया। सेमिनार में डॉ. निधि वत्स, डॉ. शुभ्रा, डॉ. कुमारी स्वर्णरेखा, डॉ. मिर्जा रुहुल्लाह बेग,कुमार सत्यम,गोविंद कुमार,डॉ. जयशंकर सिंह, डॉ. रेश्मा तबस्सुम, किरण कुमारी, प्रसेनजित रॉय, डॉ. कुमारी बबीता रानी, सुनील कुमार गुफ्ता, राजू कुमार, सुभागलाल दास एवं डेलीगेट्स उपस्थित थे।