#MNN@24X7 पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो फांसी के तख्ते पर खड़े थे।जेलर घड़ी की सुइयों पर नजर टिकाए था। 2 बजकर 4 मिनट हुए पांचवा मिनट शुरू हो चुका था।जेलर ने इशारा किया।जल्लाद जुल्फिकार के करीब कान में जाकर कुछ फुसफुसाया और फिर लीवर खींच दिया।

भुट्टो का शरीर जमीन से 5 फीट ऊपर झूल गया। लगभग आधे घंटे बाद जुल्फिकार के शव को उतारा गया।डॉक्टर ने नब्ज जांची और मृत घोषित कर दिया।

1961 में लाहौर शहर का रिडेवलपमेंट होना था।एक जेल जो बड़ी पुरानी थी अब वो शहर के बीच हो गयी थी। सरकार बहादुर ने तय किया कि जेल को गिरा दिया जाएगा।खूब सारे प्लॉट निकाले जायेंगे,एक बड़ी काॅलोनी बनेगी और खुशनुमा काॅलोनी।खुशनुमा यानी हिंदी में प्रसन्नचित्त,अंग्रेजी में हैप्पी और उर्दू में शादमान।जेल ढहाकर शादमान काॅलोनी बनाई गई।इस जेल की एक खासियत बड़ी मशहूर थी।इसी जेल में भगत सिंह को फांसी हुई थी।

बरहाल जेल ढह गई,कालोनी बनी,जिस जगह भगत सिंह ने अंतिम सांस ली थी,फांसी का वो तख्ता जहां था उस जगह काॅलोनी का चौराहा बना।ठीक तख्ते की जगह पर एक गोल चक्कर बनाया गया।उसे शादमान चौक कहते थे।इस शादमान चौक पर एक मर्डर हुआ।एक कार को एम्बुश कर गोलियां चलाई गई। बचने की हर कोशिश बेकार हुई,शिकार की लाश गोल चक्कर पर गिरी।

जुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री थे।संसद में भाषण देने के लिए खड़े हुए तो एक सदस्य उन्हें रोककर चिल्लाने लगा।एक छोटी बोतल निकाली,जिसमें खून भरा था और साथ में लहराई एक खून से सनी कमीज।सदस्य का आरोप था कि पिछले दिनों शादमान चौक पर उसके बाप की जो लाश गिरी थी उस मर्डर के पीछे स्वयं प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का हाथ था।

20 नवम्बर 1974 को संसद में यह सनसनीखेज आरोप लगाने के बाद अहमद रजा कसूरी रुके नहीं। उन्होंने एफ़आईआर भी दर्ज करवाई।मकतूल यानी मोहम्मद अहमद कसूरी की हत्या की साजिश के लिए उसके बेटे की तहरीर पर लाहौर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की,लेकिन भला पीएम की जांच कौन करता है। एफआईआर धूल खाती रही।

जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान में डेमोक्रिटिकली चुने गए सर्वशक्तिमान प्रधानमंत्री थे।अकेला ऐसा शख्स जो आर्मी के कन्ट्रोल में न था,बल्कि आर्मी का बॉस था।कन्ट्रोल बनाये रखने के लिए सेनापति के पद पर अपना आदमी बनाना पड़ता है।जब नया सेनाध्यक्ष चुनना था तब भुट्टो ने सीनियरिटी क्रम में सातवें,लेकिन चमचागिरी में पहली रैंक के अफसर को चुना।उसका नाम जियाउलहक था।

जुल्फिकार अली भुट्टो ने ये चॉइस थोड़ी गलत कर दी।क्योकि 13 माह बाद ही जियाउलहक ने जुल्फिकार का तख्ता पलट दिया।मार्शल ला लगा दिया और करप्शन के इल्जाम में जेल में ठूंस दिया। जुल्फिकार की पॉपुलरिटी तगड़ी थी।उनके जिंदा रहते जियाउलहक की सत्ता खतरे में थी। राह का कांटा निकालने के लिए बहाना चाहिए था।बहाना मिला वो धूल खाती एफ़आईआर।

ये कोई नही जानता कि आरोप में सचाई कितनी थी,लेकिन चटपट जांच आगे बढ़ाई गई और फिर पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को दोषी पाकर सजा ए मौत दी गयी। 4 अप्रैल 1979 को सुबह 2 बजकर 5 मिनट पर जेलर ने इशारा किया जल्लाद ने लीवर खींच दिया।जुल्फिकार का शरीर जमीन से 5 फीट ऊपर झूल गया।जिनके मर्डर के इल्जाम में जुल्फिकार को फांसी हुई,जिनकी लाश शादमान चौक के गोल चक्कर पर गिरी थी वो मोहम्मद अहमद कसूरी एक समय ब्रिटिश गर्वमेन्ट के अफसर हुआ करता था।भगत सिंह के डैथ वारंट पर दस्तखत उसी कसूरी के थे।

साभार स्वराज सवेरा