#MNN@24X7 दरभंगा आज 31 जुलाई को विश्वविद्यालय हिंदी विभाग और प्रेमचंद जयंती समारोह समिति के संयुक्त तत्वावधान में कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 143वी जयंती प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह की अध्यक्षता एवं डॉ. लाल कुमार के संचालन में सयोजित की गई। इस अवसर पर किसानी जीवन, प्रेमचंद और आज का कथा-साहित्य विषयक परिचर्चा आयोजित की गई जिसमें शिक्षकों, शोधार्थियों एवं छात्र-छात्राओं ने अपनी सहभागिताएं दी।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने कथा-साहित्य को तिलस्म और अय्यार की दुनिया से निकलकर किसानों और मजदूरों के जीवन पर केंद्रित किया। उनके दुख-दर्द को अपनी कहानियों और उपन्यासों में चित्रित किया। आज किसानों और मजदूरों की हालत प्रेमचंद के समय से भी खराब हो गई है लेकिन उसकी नोटिस नहीं ली जा रही है। किसान आत्महत्या के लिए बाध्य है। मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल रही है।
डॉ. लाल कुमार ने परिचर्चा का विषय प्रवेश किया तदोपरांत शिवम मिश्रा ने सहभागिता के क्रम में कहा कि प्रेमचंद ने वर्तमान ही नहीं भविष्य को भी इंगित किया। दर्शन सुधाकर ने कहा कि प्रेमचंद ने आम पाठकों के लिए लिखा। वे आरंभ में हृदय परिर्वतन में विश्वास करते थे , पर बाद में क्रांतिकारी बदलाव के समर्थक हो गए। शोधार्थी सियाराम मुखिया ने बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा कि प्रेमचंद की कथनी और करनी में अंतर नहीं है। वे किसानों – मजदूरों की आवाज थे लेकिन आज उनकी सुनने वाला कोई नहीं हैं। अमित कुमार ने जुलूस कहानी की व्याख्या करते हुए प्रेमचंद की लेखनी के महत्त्व को रेखांकित किया।
डॉ. मंजरी खरे ने प्रेमचंद को भाषा की सीमाओं से परे बताया। वे युग प्रवर्तक थे। डॉ. खरे ने कहा कि आज साहित्य बंटा हुआ है लेकिन प्रेमचंद के कथा-साहित्य में सभी वर्ग है, सभी विमर्श है। प्रेमचंद जयंती समारोह समिति के संयुक्त सचिव मुजाहिद आज़म ने कहा कि आज का दौर आत्मकेंद्रित है। ऐसे दौर में प्रेमचंद का स्मरण महत्त्वपूर्ण है। साजिश के तहत प्रेमचंद, नागार्जुन जैसे लेखकों को गायब किया जा रहा है जिसका प्रतिकार अपेक्षित है। परिचर्चा के अंत में शोधार्थी दुर्गानन्द ठाकुर ने उपस्थित शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। परिचर्चा में बड़ी संख्या में शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।