MNN@24X7 आज का दिन मिथिलांचल में काफी महत्वपूर्ण है। इस दिन के कुशा उखाड़ने का काफी महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। जैसा कि हम जानते हैं कि कुशा का महत्व सनातन धर्म में बहुत अधिक है। हमारे शास्त्रों में प्रत्येक हिन्दू साधक व धर्मावलंबी को संध्यावंदन, अग्निहोत्र, पूजन-अर्चन, होम एवं पितृकार्य करना आवश्यक है।

शास्त्रानुसार इन कार्यों को संपादित करते समय साधक को ‘पवित्री’ धारण करना आवश्यक माना गया है। हमारे शास्त्रों में ‘पवित्री’ से आशय कुश (Kush) अथवा स्वर्ण से बनी अंगूठी से होता है जिसे धारण किए बिना कोई भी धार्मिक कार्य की विशुद्धि व पूर्णता नहीं मानी गई है।

कहा जाता है कि अन्य किसी भी मास की अमावस को उखाड़ा गया कुश 1 मास तक पवित्र व शुद्ध रहता है। इस कुश से बनी पवित्री देवकार्य के पश्चात पवित्र स्थान में सुरक्षित रखकर पुन: 1 माह तक उपयोग में ली जा सकती है किंतु भाद्रपद मास की अमावस जिसे विशेष रूप से ‘कुशोत्पाटिनी अमावस’ (Kushotpatini Amavasya) कहा जाता है। इस दिन प्राप्त किया(स्वयं के द्वारा उखाड़ा) गया कुश 1 वर्ष तक देवकार्य व पितृकार्य में उपयोग किया जा सकता है।

कादम्बरी (मैथिली नाटक-पहिल कड़ी)