#MNN@24X7 कृषि विज्ञान केंद्र, जाले, दरभंगा के द्वारा राष्ट्रीय जलवायु सम्मुथान कृषि में नवप्रवर्तन परियोजना अंतर्गत चयनित ग्राम चंदौना, जोगियारा और मुरैठा के कृषकों को उपादान स्वरूप खरपतवार नाशक दवा (बिसपाइरीबैक सोडियम और पाइरोजोसल्फ्युरान) दिया गया।

जिले में बारिश के अभाव से खरीफ की फसलें प्रभावित हो रही है, वहीं लगातार सूखे के बाद हल्की बारिश से खरपतवारों के बढवार में काफी वृद्धि देखने को मिल रही है। जिसकी वजह से मुख्य फसल की विकास बाधित हो रही है। इसी को मद्देनजर केंद्र के द्वारा राष्ट्रीय जलवायु समथान कृषि में नवप्रवर्तन परियोजना अंतर्गत चयनित ग्राम के कृषक को खरपतवारनाशक दवा दिया गया।

कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक सह अध्यक्ष डॉ दिव्यांशु शेखर ने बताया कि जिन किसानों ने बारिश के अभाव के कारण अभी तक किसी भी फसल की बुवाई नहीं की है। वह अपने खाली पड़े खेतों के लिए अन्य आकास्मिक फसल का चयन कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि बाजरा और ज्वार अच्छा विकल्प हो सकता है। इन दोनों फसलों को अगस्त में लगाया जा सकता है। सामान्य तौर पर सितंबर में लगाने वाली तोरिया का विकल्प भी अच्छा है। इसकी फसल 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके अलावा मोटे अनाजों में सांबा, चीना और कोदो की फसल का भी चयन उत्तम होगा। खरीफ दलहनी (राजमा, अरहर, उड़द इत्यादि) फसलें भी किसान लगा सकते है।

उन्होंने बताया कि वर्षा ना होने से जिले में हरे चारे का भी किल्लत देखने को मिल रही है। ऐसे में किसान नेपियर, गिन्नी आदि हरे चारे का चयन कर सकते हैं। सब्जियों में मूली, टमाटर, बैंगन, आगत गोबी, लौकी, भिंडी भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। इन फसलों का चयन कर किसान अन्य फसलों की तुलना में तीन गुना ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र के पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ गौतम कुणाल ने खरपतवारनाशी के बारे में बताते हुए कहा कि बिसपाइरीबैक सोडियम नामक दवा का 80 से 100 मिली लीटर+ पाइरोजोसल्फ्युरान नामक खरपतवारनासी का 80 से 100 ग्राम प्रति डेढ़ सौ से 200 लीटर पानी की दर से 1 एकड़ में छिड़काव करने से खरपतवारओं की समस्या से निजात मिल सकता है।

ध्यान देने योग्य बात है कि इन खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के 24 घंटे के अंदर खेतों में नमी होना आवश्यक है। इस कार्यक्रम के दौरान इस परियोजना के शोध सहायक अभिषेक रंजन उपस्थित रहे।