#MNN@24X7 कृषि विज्ञान केंद्र, जाले के द्वारा 18वां गाजर घास जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है। इस जागरूकता अभियान को दिनांक 16 से 22 अगस्त तक मनाया जाना है। इस जागरूकता कार्यक्रम के आयोजक डॉ जगपाल बताते हैं की इस कार्यक्रम को कृषि विज्ञान केंद्र जाले के प्रधान सह वरीय वैज्ञानिक डॉक्टर दिव्यांशु शेखर के मार्गदर्शन में मनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि यह जागरूकता कार्यक्रम बीते दिन जाले प्रखंड के पटोला में मनाया गया था। वही इस जागरूकता सप्ताह के दूसरे दिन को सनदोही टोला के कृषकों को गाजर घास के बारे में जागरूक किया गया और इसके नियंत्रण हेतु उचित सुझाव साझा किया गया।

डॉ जग पाल ने बताया की इस कार्यक्रम में महिला एवं पुरुष किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने बताया कि यह घास काफी विनाशकारी होता है जिसे कांग्रेस घास चटक चांदनी, गंधी बूटी, सफेद टोपी आदि नामों से जाना जाता है।

हमारे देश में यह साल 1955 में अमेरिका से आयात होने वाले गेहूं के जरिये आई और सभी राज्यों में गेहूं की फसल के जरिये फैल गई। यह खरपतवार पशु एवं मानव के लिए लिए बहुत ही खतरनाक है। यह मनुष्यों एवं पशुओं में कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न करता है। इस खरपतवार के लगातार संर्पक में आने पर मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा, श्वसन तंत्र में संक्रमण, गले में छाले, दस्त, मूत्र पथ के संक्रमण, पेचिश आदि की बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। यह घास, पौधों का पोषण सोखकर उन्हें कमजोर बना देती हैं और कीट-रोगों को भी न्यौता दे देती है। इसके कारण फसलों का उत्पादन घट जाता है.

देश में बढ़ रहे गाजर घास की समस्या पर नियंत्रण के लिए नगर एवं राज्य के लोगों में जागरूकता प्रशिक्षण या प्रदर्शन के माध्यम से इसके दुष्प्रभाव को रोका जा सकता है। अगर इस पौधे में फूल आने से पहले ही पौधे को जड़ से उखाड़ कर नष्ट कर दिया जाए यह कंपोस्ट बना दिया जाए तो तेजी से हो रही वृद्धि को रोका जा सकता है। गाजर घास का कंपोस्ट बनाकर किसान इसे अपने खेतों में इस्तेमाल कर सकते हैं जोकि उनके क्षेत्रों के लिए बहुत लाभकारी हो सकता है, क्योंकि इसके कंपोस्ट में नाइट्रोजन तथा अन्य पौष्टिक तत्व की मात्रा गोबर खाद से ज्यादा होते हैं। ग्लाइफो सेट, 2-4 D, मेट्रिब्यूज़ीन रसायनों का इस्तेमाल कर इस खरपतवार का नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है