-सिर्फ 800 ग्राम था शिशु का वजन, कोई अंग विकसित नहीं था।

-डॉक्टरों की सूझ-बूझ से विकसित हो रहा बच्चा।

#MNN@24X7 दरभंगा, पारस ग्लोबल, दरभंगा ने समयपूर्व प्रसव के एक अनूठे और संजीदा मामले में एक अर्धविकसित और बेहद कमजोर शिशु को जीने की स्थिति में ला दिया है। यह कारनामा हुआ है मधुबनी की किरण कुमारी के साथ। जब छह महीने की गर्भवती किरण पेट कुछ असामान्य हलचल की शिकायत लेकर देर रात पारस ग्लोबल हॉस्पिटल, दरभंगा पहुंची थी। तब यहां पल्स और बीपी आदि की जांच के दौरान ही उनका बच्चा पेट से स्वत: बाहर निकल गया। यह स्थिति मरीज और डॉक्टर दोनों के लिए बहुत ही गंभीर और दुर्लभ स्थिति थी।


डॉक्टरों ने पाया कि बच्चे का वजन सिर्फ 800 ग्राम है। उसका न तो फेंफड़ा और न ही कोई अन्य अंग पूरी तरह से विकसित हो पाया है। उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। वह खुद से दूध पी पाने की स्थिति में नहीं था। ऐसी स्थिति में डॉक्टरों ने उसे तत्काल एनआईसीयू (निकु) वार्ड में भर्ती किया और उसे ऑक्सीजन सपोर्ट दिया। आईवी फ्लूड शुरू
किया गया।

इस केस को देख रहीं पीडियाट्रिक विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. इशरत परवीन ने बताया कि शुरुआत में तो हमें भी लगा कि इतना समयपूर्व प्रसव का बच्चा कैसे जी पाएगा। मगर मरीज के परिजनों के हामी भरने के बाद हमने उसका इलाज शुरू किया। इलाज के साथ धीरे-धीरे उसमें विकास होना शुरू हुआ। दो-तीन दिन के बाद उसके सांस में जो तकलीफ थी उसमें सुधार होने लगा। इसके बाद हमने ट्यूब के जरिए उसे मां का दूध पिलाना शुरू किया। इलाज के करीब दस दिनों के बाद बच्चे ने ऑक्सीजन सपोर्ट के बिना सांस लेना शुरू कर दिया। अब उसे केएमसी (कंगारू मदर केयर) के लिए तैयार किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि केएमसी एक ऐसी तकनीक है जिसमें नवजात शिशु को उसकी मां या किसी अन्य देखभालकर्ता के साथ त्वचा से त्वचा के संपर्क में रखा जाता है। इसमें कोशिश की जाती है कि जहां तक संभव हो, शिशु को गर्भ के अंदर जैसा माहौल दिया जाय। यह समयपूर्व प्रसव या कम जन्म वजन वाले शिशुओं की देखभाल के लिए एक मानक अभ्यास है।) डॉक्टर बताती हैं कि हम कोशिश कर रहे हैं कि उसकी मां इस तकनीक के लिए जल्द तैयार हो जाएंगी और जब बच्चा मां से संभलने की स्थिति में आ जाएगा तो उसे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा।

इस दुर्लभ इलाज में डॉ. इशरत परवीन की साथ दे रहे डॉ. मनीष का मानना है कि हमने बहुत कुछ नहीं किया है। यह बच्चे का अपना संघर्ष है कि वह जी रहा है और वह हमारी हर कोशिशों की मदद लेकर जीना चाहता है। हमारे लिए यह राहत की बात है कि बच्चे का कोई अंग खराब नहीं हुआ है। उसके मस्तिष्क या फेंफड़ा में किसी तरह की चोट या खराबी नहीं है। उसे किसी तरह का इन्फेक्शन भी नहीं है। हालांकि यह कहना लाजिमी होगा कि यह कोई सामान्य केस नहीं है। सामान्य स्थितियों में ऐसे शिशुओं के जी पाने की संभावना बहुत कम होती है।