-जुबली हॉल में बीएड (नियमित) स्थापना दिवस सप्ताह के समापन समारोह का हुआ आयोजन
-बीएड (नियमित) से जुड़े सभी मसलों का जल्द होगा निदान और विभाग जल्द स्वयं स्वतंत्र अस्तित्व में करने लगेगा कार्य : प्रो. अशोक कुमार मेहता
-संस्थाओं से निकला ज्ञान ही वैधज्ञान : प्रो. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी
-नई शिक्षा नीति 2020 का लक्ष्य बच्चों का सर्वांगीण विकास करना : प्रो. आशीष श्रीवास्तव

दरभंगा। देश की तस्वीर और तकदीर शिक्षकों ने ही बदली है। एक विद्यार्थी जब शिक्षक बन जाता है तो उन्हें रोजगार ही नहीं मिलता है, बल्कि उन्हें देश की दशा और दिशा बदलने की जिम्मेदारी भी दी जाती है। उक्त बाते दिनांक 29.08.2022 (सोमवार) को दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा संचालित बीएड (नियमित) विभाग के स्थापना के 10 वर्ष पूरा होने के अवसर पर 23 से 29 अगस्त 2022 के बीच मानए जा रहे स्थापना दिवस सप्ताह के समापन समारोह को जुबली हॉल में संबोधित करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. मुश्ताक अहमद ने कही।

भेड़िया धसान अछि छात्रऽक ई समूह, आखिर हिनकर मार्गदर्शक केऽ?


उन्होंने कहा कि मुझे इस बात पर गर्व है कि जब मेरे विश्वविद्यालय के बीएड (नियमित) विभाग के बच्चे अपने विद्यालय और महाविद्यलाय में जाकर कुछ अलग कार्य करते हैं, वे भीड़ में शामिल होना अपना मकसद नहीं मानते हैं। विभाग रिजल्ट के साथ छात्र-छात्राओं को कौशल एवं दक्षता प्रदान कर रहा है, जो अन्य महाविद्यालयों के लिए भी अनुकरणीय है। प्रो. अहमद ने कहा कि शिक्षा के बदलते आयाम को अपनाकर ही देश अपने-आपको विकसित देशों की श्रेणी खड़ा कर सकते हैं। लॉर्ड मैकाले के बदले अपनी नई शिक्षा नीति 2020 कहां खड़ी है, इसपर शिक्षाशास्त्र के शिक्षकों को विचार-विमर्श करने की जरूरत है। रोजगार पाना ही मकसद नहीं होना चाहिए, रोजगार देना भी मकसद होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजन से विचारों का आदान-प्रदान होता है।

दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. अशोक कुमार मेहता ने संबोधित करते हुए कहा कि मैं खुद भी बीएड (नियमित) की विकास यात्रा का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से साक्षी रहा हूं। विभाग ने कैसे एक कमरे से अपनी यात्रा शुरू करते हुए इस फलक तक दूरी तय की है। बीएड (नियमित) से जुड़े सभी मसले का निदान जल्द ही हो जायेगा और विभाग स्वयं स्वतंत्र अस्तीव में कार्य करने लगेगा। मुझे इस बात का गर्व है कि बीएड (नियमित) के सभी शिक्षक शिक्षा का उच्च मापदंड का पालन कर रहे हैं। शिक्षक का कार्य सिद्धांतिक कम व्यवहारिक ज्यादा है, इसलिए शिक्षकों को हमेशा नया सीखते रहना चाहिए।

अध्यापक शिक्षा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ विषय पर संबोधित करते हुए महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के स्कूल ऑफ एडुकेशन के संकाय़ध्यक्ष प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि अब तक सभी कमेटियों ने शिक्षा में सुधार के लिए पहल किए हैं, लेकिन वह फलीभूत नहीं हुआ है। सभी कमेटियों के सलाह पर ही नई शिक्षा नीति 2020 लाई गई है। शिक्षा का लक्ष्य बच्चों का सर्वांगीण विकास करना है। शिक्षा राज्य का नहीं समाज का विषय रहा है। भारतीय परंपरा हमेशा प्रभावशीलात पर कार्य किया है, न कि रोजगारशीलता पर। उन्होंने कहा कि यह बात सच है कि शिक्षकों के लिए कोर्स बनाने में अपने देश ने देरी की है। अब जब कोर्स का प्रारूप तैयार हो गया है तो इसके प्रचार-प्रसार के लिए देश भर के शिक्षाशास्त्र विभागों को जिम्मेदारी लेने की जरूरत है।

अगर, बच्चों के शिक्षा और चरित्र को बेहतर कर दिया जाए तो इससे राष्ट्रनिर्माण खुद हो जाएगा। समय के साथ बदलाव के लिए तकनीकी को अपना जरूरी है तभी विश्व के साथ ताल-से-ताल मिलाकर आगे बढ़ सकते हैं।

‘ज्ञान और शिक्षा’ विषय पर संबोधित करते हुए आर्यभट्ट ज्ञान विवि, पटना के शिक्षाशास्त्र के पूर्व संकायध्यक्ष प्रो. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी ने कहा कि ज्ञान का मतलब जानना और समझना होता है। जो जाना जा चुका है और जो जानना है, का लक्ष्य ही ज्ञान है। भारतीय परंपरा में क्या करना चाहिए, वहीं से ज्ञान मिलता है। संस्थाओं से निकला ज्ञान ही वैधज्ञान हैं, इससे बाहर निकलना होगा। जिस ज्ञान की वैधता बाजार तय कर रहा है वह ज्ञान नहीं सामान्य ज्ञान है। ज्ञान के लिए जिज्ञासा का होना जरूरी है। जिज्ञासा से ही ज्ञान में बढ़ोत्तरी होती है।

फिलहाल शिक्षा लयहीन हो गई है, जिसपर विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए तकनीक अपनाने की जरूरत है, लेकिन ज्ञान किस माध्यम से दी जा रही है इसका बहुत ही महत्व है। सोचने और समझने की भाषा को ज्ञान से दूर कर देने से बच्चों को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है। भयभीत समाज कभी भी सृजनशील नहीं हो सकता है। इसका परिणाम है कि आज का बच्चा करियर को लेकर ज्यादा भयमुक्त रहते हैं। इसे जल्द से जल्द दूर करने की जरूरत है। बच्चे खुद अवलोकन, विश्लेषण और निर्णय ले सकें, तभी भारतीय परंपरा कायम रहेगा।

बीएड (नियमित) के विभागध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार मिलन ने कार्यक्रम की शुरुआत में सभी अतिथियों का स्वागत किया। अपने संबोधन में डॉ. मिलन ने कहा कि आज बीएड (नियमित) विभाग अपना स्थापना के 10 वर्ष पूरा करने के बाद 11वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। यह मेरे विभाग के लिए खास है। शिक्षा की व्यवस्था में उपलब्धि का मतलब व्यक्ति एवं समाज को देना है। एक शिक्षक कुछ प्राप्त करने के लिए नहीं समाज को देने पर ही कार्य करते हैं। देने वाले को काफी कठिनाई होती है, पर शिक्षक सभी कठिनाइयों पर ध्यान न देकर समाज में बेहतरी के लिए अपना योगदान देते रहते हैं। बीएड (नियमित) विभाग जो आज इस फलक तक पहुंचा है, इसके लिए विभाग के सभी वर्तमान और पूर्व फेकल्टी बधाई के पात्र हैं। मेरा मानना है कि अगर आप पढ़ाएंगे तो बच्चे जरूर वर्ग में आएंगे। आज विश्वविद्यालय में इस बात की चर्चा होती रहती है कि अगर कहीं क्लास होता है तो वह बीएड (नियमित) विभाग है। इसके लिए मुझे अपने विभाग के छात्र ही प्रेरित करते हैं। प्राध्यापकों की महेनत बच्चों को परेशानियों पर ध्यान जाने ही नहीं देते हैं। परेशानियों के बीच भी विभाग पढ़ाई और वर्ग संचालन में कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने कहा कि बड़े स्तर पर स्थापना दिवस मानने का मकसद बच्चों को अवसर प्रदान करना है। हमारे छात्र जहां कहीं भी हैं, वहां अपने स्कूल के माहौल को बदल रहे हैं और आगे भी बदलते रहेंगे। इस अवसर पर विभागध्यक्ष ने विभाग की स्थापना करने वाले अधिकारियों और संस्थान के पूर्व प्राध्यापकों के योगदान को याद किया।

कार्यक्रम के अंत में विभाग के पूर्ववर्ती छात्र, जो वर्तमान में बिहार के सरकारी विद्यालयों में कार्यरत है, उन्हें मोमेंटो और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया। डॉ. निधि वत्स ने मंच संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन किया। स्थापना दिवस सप्ताह समापन समारोह में बीएड नियमित के डॉ. शुभ्रा, डॉ. कुमारी स्वर्णरेखा, डॉ. मिर्जा रुहुल्लाह बेग, किरण कुमारी, डॉ. रेश्मा तबस्सुम, डॉ. जयशंकर सिंह, गोविंद कुमार, प्रसेनजीत राय, राजू कुमार, सुनील कुमार गुप्ता, डॉ. बबीता, सुभगलाल दास, कुमार सत्यम व अन्य शिक्षककर्मी और छात्र-छात्राएं मौजूद थे।