वर्तमान युग प्रतियोगिताऽक युग अछि। सफलता, हरेक विद्यार्थी केऽ लक्ष्य होइत छैक। प्रत्येक युवा के नीक नौकरी भेटन्हि हुनकर सदिखन यैह इच्छा रहैत छैन्ह। संगहि हुनका स्थिरता चाही, नीक पैकेज चाही, अतिरिक्त सुविधा के सेहो जरूरत रहैत छैन्ह. मुदा स्कूल/कॉलेजऽक सर्टिफिकेट वा डिग्री मात्र बस कोनों संस्थान कें किवाड़ खटखटेबाऽके अनुमति दैत छै. आगू हरेऽक संस्थान अपन-अपन तराजू पर जांच करैत अछि, तौलैत अछि, परीक्षण करैत अछि, परीक्षा लैत अछि, फेर समूह चर्चा, व्यक्तिगत साक्षात्कार, चिकित्सा परीक्षा सबहक चरण सेहो अबैत अछि। ई एकटा नमहर प्रक्रिया अछि।

अधिकांशतः अपना सब स्वयं अप्पन जीवन केऽ निर्णय नहि लैत छी,सबटा देखौंस आ बस एकटा भीड़ के हिस्सा छी अपना सभ, वर्तमान समय में अधिकांश युवा पहिने तऽ हरेक फार्म भरैत छथि, फेर एक दू टा गाइड कीन लैत छथि। “जौं घर पर खर आ मुंह में कौर रहै” यानी माता पिता आर्थिक रूप सं सक्षम रहथि ,तखनऽ तऽ कोचिंग संस्थान में मोटगर फीस दऽ दैत छथि, ओतहु की तऽ एकटा छोट सन घर में 40-50 टा विद्यार्थी ठूसल आब कतहु कतहु त इ संख्या 100 सं बेसी सेहो भ रहल छै। भागवत कथा जकाँ माईक लऽ मास्टर साहेब के पढेनाई क तऽ बाते नहि करू, अधिकांश ठाम पुरने पैटर्न। बस सपना क बाड़ी मुदा खाली पूरा थाड़ी। बस सब्जबाग, हरेक हफ्ता में टेस्ट। जाहिमेः अधिकांश संस्थान इन्टरनेट सं डाउनलोड सामग्रीकेँ अपन संस्थान केऽ सील लगाकेऽ विद्यार्थी सभकेँ पैकेट पकड़ा दैत छथि।

आगू त “बहुत कठिन है डगर पनघट की” बला हाल। सीटेऽ कम रहैत अछि,जखन कि उम्मीदवार कई एक गुना बेसी, औसत रूप सं परिणाम निकलला पर 100 में संऽ 1 टा केऽ घर पर पाबनि मनैत अछि, बांकि बचलाहा पुनर्मुसकौ बला हाल फेर सं जुईट गेला पेरऽ में। फेर सं अगिला परीक्षा केऽ लेल फार्म भरनाई, वैह प्रक्रिया मोन-कुमोन सं करैत छथि। जौं उम्मीदवार सफल गेला तखन तऽ बस पूछू नहि सबटा सफलता कऽ श्रेय तीन-चारि टा कोचिंग संस्थान लऽ लैऽत अछि। धनराशि दऽकेऽ फोटो लऽ फर्जी रोल नम्बर साटि अखबार सबहकके पहिल पृष्ठ पर विज्ञापन दऽ देल जाएत अछि, किछु आर नबका उम्मीदवार सभकेँ लूटबाऽक लेल।

एहि चक्रव्यूह सं छात्र-छात्रा सभकेँ बाहर निकालबाक लेल, संगहि सही-गलत के निर्णय अपनहि लेबाक क्षमता बढे़बाक लेल। आगू अपना सबहक संग रहताह मास्टर साहेब। जिनका संग आगू अपना सभ और विमर्श करब। 🙏