मौसम की मार पर भारी पड़ती आस्था

#MNN@24X7 दरभंगा। कड़ाके की ठंढ मे जहाँ लोग अपने अपने घरों मे दुबकने को मजबूर हो रहे हैं, वहीं आस्था और हठयोग के साथ मिथिला के हजारों लोग बाबा बैद्यनाथ की नगरी के लिए काँवर लेकर प्रस्थान कर रहे हैं। कमरथु लोग कंधे पर काँवर लेकर बोलबम के नारों के साथ नंगे पाँव सड़कों पर दिख रहे हैं। ये काँवरिये अपने अपने घरों से पैदल ही देवघर के लिए प्रस्थान करते हैं।

मिथिला से काँवर लेकर पैदल यात्रा करते हुए माघ मास के शुक्ल पक्ष की वसंत पंचमी को बाबा बैद्यनाथ को गंगाजल चढ़ाने की परंपरा का निर्वाह करने को लेकर रविवार को दरभंगा से कांवरियों का जत्था रवाना हुआ। कछुआ चकौती कैंप के साथ दो दर्जन से अधिक काँवर यात्रियों ने शुभंकरपुर स्थित श्मशान काली मंदिर से प्रस्थान किया।

इस जत्था में मैथिली के प्रख्यात गीतकार मणिकांत झा, कछुआ चकौती के कामोद झा, अरुण झा, राजन यादव, सुधीर यादव, हीरा मिश्र, चंद्रमोहन ठाकुर, कौशल झा, देवन मंडल, महेश ठाकुर, सचिन झा, सुनील झा, नाहस रुपौली के नीतीश सौरभ, गजेंद्र झा एवं शुभंकरपुर के संतोष कुमार झा आदि शामिल हैं।

काँवर यात्रा मे शामिल मैथिली के प्रख्यात गीतकार मणिकांत झा ने बताया कि बैद्यनाथ धाम मे काँवर चढ़ाने का आरंभ मिथिला से ही हुआ है। उन्होंने बताया कि माता पार्वती का नैहर मिथिला मे होने के कारण मिथिला के लोग उन्हे अपनी बहन मानते हैं और महादेव से भी रिश्ता बनाकर रखे हुए हैं।

काँवर प्रथा के शुभारंभ के संदर्भ में मणिकांत झा ने बताया कि शिवरात्रि के दिन देवघर में विवाहोत्सव मनाया जाता है और उससे पूर्व वसंत पंचमी को महादेव का तिलकोत्सव होता है जिसमें मिथिलावासी ससुराल पक्ष की ओर से शामिल होते हैं।

ज्ञात हो कि माघी कामर यात्रा मे दरभंगा ,सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, बेतिया, समस्तीपुर, बेगूसराय तथा नेपाल के तराई क्षेत्र के सैकड़ों गाँवों के लोग लाखों की संख्या मे बाबा बैद्यनाथ पर जलाभिषेक करते हैं।

इस काँवर यात्रा की मुख्य विशेषता यह है कि इसमे शामिल लोग इस कड़ाके की ठंढ मे भी नंगे वदन अर्थात शर्ट,कुर्ता, गंजी आदि खोल कर ही भोजन करते हैं और जमीन पर ही सोते हैं। अब इसे आप आस्था कहें या हठयोग!