#MNN@24X7 दरभंगा, मानसून के शुष्क मिजाज को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र, जाले के द्वारा राष्ट्रीय जलवायु समुथान कृषि में नवप्रवर्तन परियोजना अंतर्गत चयनित ग्राम मुरैठा में खरीफ के लिए धान के अतिरिक्त अन्य आकास्मिक फसल का चयन हेतु एक बैठक का आयोजन किया गया।

इस बैठक का नेतृत्व कृषि विज्ञान केंद्र, जाले के पौध संरक्षण वैज्ञानिक सह राष्ट्रीय जलवायु समुथान कृषि में नवप्रवर्तन परियोजना के अन्वेषक डॉ गौतम कुणाल ने की। इस बैठक के दौरान इस परियोजना के सहायक शोधकर्ता अभिषेक रंजन मुरैठा गांव के प्रगतिशील किसान अनिल चौधरी, गुलाब चौधरी, हरिश्चंद्र, धर्मेंद्र कुमार झा समेत कुल 28 कृषक उपस्थित थे।

किसान इस बार औसत से भी कम हुई बारिश से परेशान हैं। धान की बुवाई में पहले ही देरी हो चुकी है। किसी तरह अगर धान की फसल लगा भी दी है तो अच्छी बारिश नहीं होने की वजह से फसल बर्बाद होने की नौबत आ गई है। इसी को मद्देनजर यह बैठक का आयोजन किया गया।

डॉ कुणाल ने बताया कि यह बैठक द्विपक्षीय वार्ता पर आधारित था। इसमें कृषक अपने पूर्व में की गई अनुभव के आधार पर खरीफ के मौसम में बोई जाने वाली धान के अतिरिक्त अन्य फसलों के चयन के बारे में बताया साथ ही विशेषज्ञों ने वर्तमान परिवेश में नूतन पद्धति के द्वारा की जाने वाली फसलों के चयन के बारे में बताया। दोनों पक्षों की बातों को सुनकर एक निष्कर्ष निकालते हुए वर्तमान मौसम में फसलों के चयन के बारे में चर्चा किया।

विशेषज्ञों के अनुसार बाजरा और मडुवा अच्छा विकल्प हो सकता है। इन दोनों फसलों को अगस्त में लगाया जा सकता है। सामान्य तौर पर सितंबर में लगाने वाली तोरिया विकल्प भी अच्छा है, इसकी फसल 90 दिनों में तैयार हो जाती है। मोटे अनाजों में इसके अलावा सांबा, चीना और कोदो की फसल का चयन लाभकारी होगा। खरीफ दलहनी (राजमा, अरहर, उड़द इत्यादि) फसलें भी किसान लगा सकते हैं।

डॉ कुणाल ने बताया कि बारिश नहीं होने से जिले में हरे चारे का भी किल्लत देखने को मिल रही है। ऐसे में किसानों के द्वारा ज्वार, बाजरा, नेपियर, गिन्नी आदि हरे चारे का चयन लाभदायक होगा। सब्जियों में टमाटर, बैंगन, आगत गोबी, लौकी, भिंडी भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। इन फसलों का चयन कर किसान अन्य फसलों की तुलना में तीन गुना ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।