विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो की अध्यक्षता में आयोजित शोकसभा में प्रो रेणुका, प्रो जीवानन्द, डा जयशंकर व डा चौरसिया ने रखे विचार।

2 मिनट का सामूहिक मौन धारण कर विभाग द्वारा प्रो चण्डेश्वर झा को दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग से मई 1993 में अवकाश प्राप्त प्राध्यापक प्रो चण्डेश्वर झा के निधन पर संस्कृत विभाग द्वारा सभागार में विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो की अध्यक्षता में शोकसभा का आयोजन किया गया, जिसमें प्रो रेणुका सिन्हा, प्रो जीवानन्द झा, डा जयशंकर झा, डा आर एन चौरसिया, डा ममता स्नेही, सोनाली मंडल, अनिमेष मंडल, संदीप घोष, सदानंद विश्वास, अमित कुमार झा, मंजू अकेला, उदय कुमार उदेश, योगेन्द्र पासवान सहित काफी संख्या में शोधार्थी व छात्र-छात्राएं भी उपस्थित थे।

संस्कृत विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर साहित्य विभागाध्यक्षा एवं प्रो झा की छात्रा रही प्रो रेणुका सिन्हा ने कहा कि गुरुदेव प्रो झा सरल, शांत, लोकप्रिय, छात्रहितेषी, सामाजिक एवं सच्चे सारस्वत साधक थे, जिनके निधन से हम सभी मर्माहत हैं। उनके निधन से संस्कृत जगत में हुई क्षति की पूर्ति संभव नहीं है।

संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रो झा के छात्र रहे प्रो जीवानन्द झा ने कहा कि उनकी सरलता, आत्मीयता एवं स्वागतभाव अविस्मरणीय रहेगी। उनकी शिष्य- परंपरा में मेरे अतिरिक्त प्रो रेणुका सिन्हा, प्रो जयप्रकाश नारायण, डा जयशंकर झा, डा सोमेश्वर झा दधीचि के साथ ही अनेकानेक सुप्रतिष्ठित व सफल शिष्य शामिल हैं।

विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो ने बताया कि स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में सितंबर 1979 से मई 1993 के बीच कार्यरत प्रोफेसर चन्देश्वर झा का निधन उनके निवास स्थल प्रोफेसर कॉलोनी, दिग्घी पश्चिम, दरभंगा में गत 9 सितंबर, 2022 को हो गया।

प्रो झा काशी से परंपरागत संस्कृत- विद्या का अध्ययन करने के बाद साहित्याचार्य एवं संस्कृत से एम ए भी किया था। वे विशेष रूप से व्याकरण एवं साहित्य के विशेषज्ञ थे। उन्होंने 1962 ईस्वी में मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज, बिहार में व्याख्याता के रूप में योगदान किया था। वहां से वे सितंबर 1979 में मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में हस्तांतरित हुए, जहां से 31 मई, 1993 को सेवानिवृत्त हुए थे। यह केवल विद्वान ही नहीं, बल्कि उदारमना महामानव भी थे।

विभाग के पूर्व प्राध्यापक एवं झा के छात्र रहे डा जयशंकर झा ने गीता के श्लोकों से अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि पी जी संस्कृत विभाग के संस्थापक शिक्षक के रूप में प्रो चण्डेश्वर झा का छात्र होने का मुझे सौभाग्य मिला। उनके निधन से मेरी गुरु- परंपरा का पटाक्षेप हो गया है। उनकी मृदुल शैली की अमिट छाप को संजोने का मैं जीवन भर प्रयास करूंगा। वे अपनी अमृतवाणी, परोपकारिता एवं दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे।

विभागीय प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया ने अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि मधुबनी जिला के मढिया, बासोपट्टी के मूलनिवासी प्रो झा 97 वर्ष की अवस्था में दिवंगत हुए हैं। वे शिक्षकों के आदर्श थे, जिनकी विद्वता, सहयोगी स्वभाव तथा इंसानियत हम शिक्षकों का सदा मार्गदर्शन करती रहेगी। उनका निधन सम्पूर्ण संस्कृत- जगत के लिए अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई असंभव है।
शोकसभा में 2 मिनट का सामूहिक मौन धारण कर विभागीय शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों द्वारा प्रो चण्डेश्वर झा को दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि।