#MNN@24X7 दरभंगा, विश्वविद्यालय मैथिली विभाग में मैथिलीके चर्चित कथाकार,उपन्यासकार, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत कवि जीवकांत की जयंती विभागाध्यक्ष प्रो दमन कुमार झा की अध्यक्षता में मनायी गई । अध्यक्षता करते हुए प्रो झा ने कहा कि जीवकांत अपनी रचना से मैथिली भाषा को हमेशा समृद्ध करते रहे। उन्हें 1998 ई में ‘तकैत अछि चिडै’ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्रदान किया गया। और 2010 में प्रबोध साहित्य सम्मान से भी उन्हें सम्मानित किया गया। वे अपने को मूलतः कवि मानते थे क्योंकि उनकी कविता नव्यतम शिल्प की कविता है। उनकी कविताओं में युगीन वैचारिक संघर्ष एवं टीस सहजता से मिल जाती है। वे भाषा, बिम्ब, चित्रण एवं यथार्थता की दृष्टि से अपने समकालीन कवियों में अलग छाप छोड़ते नजर आते हैं।उनकी दृष्टि मिथिला के बच्चों की ओर भी गया। उनके लिए उन्हेंने सहज शैली में कविता की पुस्तक लिखी ‘हमर अठन्नी खसलै वनमे ‘, जिसके लिए उन्हें 1914 ई में साहित्य अकादेमी बाल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
प्रो अशोक कुमार मेहता ने कहा कि जीवकांत की कथाओं में ग्रामीण परिवेश की संवेदना मुखरता से अभिव्यक्त पाई है जो एकसरि ठाढि कदम तर रे, सूर्य गलि रहल अछि, वस्तु आदि कहानी संग्रह में देखा जा सकता है।
उन्होंने जीवकन्त की ‘वस्तु’ कथा को रेखांकित करते हुए कहा कि मनुष्य स्त्री को वस्तु के रूप में उपयोग करता रहा है किन्तु स्त्री उपभोग की वस्तु नहीं है। उसके पास भी हृदय है, संवेदना है, स्नेह है, घृणा है, प्रेम है।उसका भी सम्मान होना चाहिए।
डॉ अभिलाषा कुमारी ने कहा कि जीवकांत मैथिली साहित्य के बहुविध साहित्यकार हैं। इन्होने कथा,कविता उपन्यास,बाल साहित्य से मैथिली साहित्य को समृद्ध किया है।उनकी दू कुहेसक बाट, पीयर गुलाब छल, नहि कतहु नहि, पनिपत, और अगिनबान प्रमुख उपन्यास हैं। प्रदीप बिहारी के सम्पादन में प्रकाशित ‘जेना कोनो गाम होइत अछि’ में सभी उपन्यास एक साथ प्रकाशित हैं।
डॉ सुरेश पासवान ने जीवकांत के पत्र लेखन के प्रसंग कहा की जीवकांत सभी को पत्र लिखते थे।इन्हे पत्र लिखने में महारत हासिल थी।पत्र में ही तत्कालीन साहित्यिक पर टिप्पणी कर दिया करते थे।इस अवसर पर डॉ प्रमोद कुमार पासवान, भाग्यनारायण झा, निरेन्द्र कुमार, शोधार्थी और विभागीय छात्र छात्राए उपस्थित थे।