विभीषिका कभी खत्म नही होती : प्रो0 पाठक
शिक्षा के अभाव में विदेशी ताकतों का मनोबल बढ़ा : प्रतिकुलपति
भारत की अखंडता के लिए नई पीढ़ी को करना है जागरूक : विभाग प्रचारक
भारत विभाजन विभीषिका पर संस्कृत विश्वविद्यालय में संगोष्ठी
#MNN@24X7 दरभंगा, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने कहा कि हमारी उदारता एवं सहिष्णुता के साथ साथ एकता के अभाव का बेजा लाभ लेकर विदेशियों ने सालों साल हमपर राज किया। महान जीवन दर्शन के कारण भी विदेशी प्रहार हुआ।मनमाफिक लूट पाट की। समाज को खोखला कर दिया। सभ्यता व संस्कृति तक को नष्ट करना चाहा लेकिन हमारी सनातन धारा चलती रही। वे हमारे ज्ञान को नहीं लूट सके। विश्वविद्यालय मुख्यालय में भारत विभाजन विभीषिका विषय पर बुधवार को दरबार हॉल में आयोजित समगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो0 पांडेय ने उक्त बातें कही। इसी क्रम में कुलपति ने बताया कि इतिहास से सीखकर हम संगठित हों, एकत्रित हों। हमारी अस्मिता बरकरार रहनी चाहिए। सनातन धर्म व संस्कृति के साथ साथ सनातन ढांचे को सुदृढ़ करना होगा। तभी अन्य विभाजन से बच सकते हैं। नीति व कूटनीति के अलावा कुछ राजनेताओं के कारण देश का विभाजन हुआ था। धर्मांतरण व नशीली पदार्थो के व्यापार भी इसके कारण थे।नई पीढ़ी को इसके बारे में बताने की जरूरत है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के सभी शहीदों को नमन करते हुए कहा कि देश विभाजन की विभीषिका को याद कर हमसभी को आगे बढ़ना है। वहीं मुख्य अतिथि मिथिला विश्वविद्यालय के सेवा निवृत्त मानविकी संकाय अध्यक्ष व हिंदी के मूर्धन्य विद्वान प्रो0 प्रभाकर पाठक ने कहा कि भय वर्तमान होता है जबकि विभीषिका कभी खत्म नहीं होती। इसकी परछाई सदा मौजूद रहती है। उन्होंने कहा कि देश विभाजन के लिए वैसे तो समाजिक, धार्मिक , आर्थिक के कारणों को गिनाते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इसके मूल में सिर्फ व सिर्फ तत्कालीन राजनीति थी।सरदार बल्लभ भाई पटेल देश बंटवारे के विरोध में थे लेकिन वे भी अंत मे लाचार हो गए ।उन्होंने कहा कि राजनीति को जब धर्म लपेटता है तो विभाजन जैसा दंश सम्भव हो जाता है। प्रो0 पाठक ने नई पीढ़ी से आह्वान किया कि वे कहानी अमृतसर एक्सप्रेस एवं यशपाल द्वारा लिखित उपन्यास झूठ सच अवश्य पढ़ें। विभाजन विभीषिका को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उस दौर में करीब 10 लाख हिन्दू मारे गए थे और डेढ़ करोड़ को शरणार्थी बनना पड़ा था। करीब एक लाख से अधिक महिलाओं का अपहरण हुआ था। इसको याद रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि विभीषिकाओं के बावजूद लोकतंत्र सिर्फ भारत मे ही बचा है।
विषय प्रवर्तन करते हुए संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो0 सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि विभाजन जहां कहीं भी हुआ है ,वहां विभीषिका स्वतः आ जाती है। सभी विभीषिकाएं दर्द भरी ही होती हैं । शिक्षा के अभाव में विदेशी ताकतें मजबूत हुईं और हमलोग गुलाम हुए। बाद में स्वतंत्रता तो मिली लेकिन विभाजन के दंश के साथ। अभी भी हम भारतीय ज्ञान परम्परा को छोड़कर दूसरे की तरफ देखने मे लगे हैं। इसलिए इतिहास को याद कर जाति, धर्म व सम्प्रदाय के नाम पर हमसभी न बंटें। उन्होंने सवाल उठाया कि तब ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि बिना जनमत संग्रह कराए ही देश का विभाजन कर दिया गया। इसको लेकर कई ऐतिहासिक पहलुओं को उजागर करते हुए प्रोवीसी प्रो0 सिंह ने कहा कि बसुधैब कुटुम्बकम की अवधारणाओं को अपनाते हुए चलने की जरूरत है। ऐसा संकल्प लें। हम पुरोहित की तरफ पूरा देश देख रहा है।
इसी क्रम में विशिष्ट अतिथि आरएसएस के विभाग प्रचारक रविशंकर मिश्र ने कहा कि आज अखण्ड भारत संकल्प दिवस है। भारतीय संस्कृति व सभ्यता के माध्यम से देश को एक सूत्र में बांधे रखने की जरुरत है। उन्होंने राष्ट्र को व्यापक रुप मे परिभाषित किया और उदाहरणों से समझाया कि कैसे बिना जमीन के भी राष्ट्र की परिकल्पनाएं सम्भव है। उन्होंने अखण्ड भारत के निर्माण के संकल्प को दोहराया। अपना देश कैसे व किन कारणों से विभाजित हुआ , इसके बारे में आज नई पीढ़ी को बताने का अवसर है। राष्ट्रीयता के आधार पर हमसभी को एक रहना है।
उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि डॉ रामसेवक झा के संयोजन व संचालन में सम्पन्न संगोष्ठी की शुरुआत डॉ ध्रुव कुमार मिश्र के मंगलाचरण से हुई। इसके बाद मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन किया गया। धन्यवाद ज्ञापन विकास पदाधिकारी डॉ पवन कुमार झा ने प्रस्तुत किया। डॉ साधना शर्मा की अगुआई में समेकित रूप से राष्ट्र गान होने के बाद कार्यक्रम की समाप्ति की गई। तकनीकी सहयोग सूचना वैज्ञानिक डॉ नरोत्तम मिश्रा एवम गौरव कुमार का रहा। मौके पर विश्वविद्यालय के सभी पदाधिकारी, शिक्षक व अन्य कर्मी मौजूद रहे।