#MNN24X7,दरभंगा सिद्धिरस्तु (मिशन मिथिलाक्षर लिपि) संस्था द्वारा 28 मई, 2023 (रविवार) को तृतीय मिथिलाक्षर प्रबोध सम्मान समारोह, जुबली सभागार, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के प्रागंण मे आयोजित हुआ जिसमे मुख्य अतिथि के रुप मे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान एवं कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति डा० शशिनाथ झा उपस्थित थे।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन, मंगलाचरण एवं जय जय भैरवि गोसाउनि गीत के गायन से हुआ। इस अवसर पर मिथिलाक्षर का इतिहास: दशा एवं दिशा पर परिचर्चा का भी आयोजन हुआ। इस परिचर्चा मे डा० शशिनाथ झा, डॉ. अवनीन्द्र कुमार झा एवं डा० बिभा कुमारी ने भाग लिया। परिचर्चा की शुरूआत करते हुए डा० बिभा कुमारी ने कहा की अति प्राचीन एवं समृद्ध लिपि होते हुए भी इसके विलुप्त होने एक कारण उस समय महिलाओँ अशिक्षित होना भी है। यदि महिलायें मिथिलाक्षर जानती होती तो अवश्य इस लिपि को पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित रखती।

महिलायें संस्कृति को बचाकर रखती हैं जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मिथिला पेन्टिंग, लोक गीत एवं अरिपन इत्यादि है। डॉ अवनीन्द्र कुमार झा ने मिथिलाक्षर के इतिहास पर प्रकाश देते हुए कहा कि यह लिपि ब्रह्मी लिपि से विकसित हुई और इससे बंगला, उड़िया और असमिया लिपि विकसित हुई। मिशिगन यूनिवर्सिटी के डा० अंंशुमान पाण्डेय द्वारा मिथिलाक्षर पर किये गये उल्लेखनीय कार्य की भी उन्होने विस्तार से चर्चा की यद्यपि इस कार्य हेतु मिथिला मे उन्हे अपेक्षित सहयोग नही मिला। उन्होंने मिथिलाक्षर लिपि के फौण्ट न बनने का भी जिक्र किया और कहा कि मिथिलाक्षर के सर्वसाधारण में प्रचार-प्रसार के लिए फौण्ट का होना जरूरी है। डा० शशिनाथ झा ने मिथिलाक्षर के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि मिथिलाक्षर/तिरहुता लिपि का प्रमाण छठी शताब्दी से मिलता है। सैकड़ों शिलालेख एवं हजारो पाण्डुलिपि आज भी विद्यमान है जो इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। मिथिलाक्षर लिपि सीखने से अधिक उसके निरंतर अभ्यास करते रहने की जरूरत है।

अखिल भारतीय मिथिला संघ के अध्यक्ष विजय चंद्र झा ने सिद्धिरस्तु के कार्य की सराहना करते हुए मिथिलाक्षर और मैथिली साहित्य के लिए अरुण कुमार मिश्र, हरि मोहन झा और उज्ज्वल कुमार झा (त्रिमुर्ति) के योगदान की विस्तृत चर्चा की।

इस कार्यक्रम मे सिद्धिरस्तु द्वारा प्रकाशित ज्ञानवर्धन कंठ की मैथिली लघु कथा पुस्तक “छ त्र ज्ञ”, सुनिता झा की मैैथिली निबन्ध संग्रह “दृष्टि दर्पण”, प्रो सत्यनारायण झा की मैथिली काव्य संग्रह “बदैल गेल आब गाम” और मिथिलाक्षर ज्ञानमाला (तृतीय संस्करण) का विमोचन भी किया गया। साहित्यकार सारस्वत की मैथिली काव्य संग्रह “जीवनदास” का भी विमोचन हुआ। इस अवसर पर कई साहित्यिकार जैसे विभूति आनंद, नारायण झा, प्रोफेसर अशोक मेहता, प्रोफेसर हरे कृष्ण सिंह, प्रोफेसर संजीत झा सरस, आनंदजी झा आदि उपस्थित थे।

इस अवसर पर सिद्धिरस्तु द्वारा मिशन मिथिलाक्षर लिपि के कई वरिष्ठ प्रशिक्षिकाओं जैसे विभा झा, आभा झा, नीता झा, सबिता ठाकुर, बीनू झा, रेखा चौधरी, नर्मदा झा को मोमेंटो एवं शाॅल से सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर सिद्धिरस्तु के इकाई मिशन मिथिलाक्षर लिपि द्वारा प्रशिक्षित लगभग 200 प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र एवं मोमेंटो से सम्मानित किया गया तथा सिद्धिरस्तु द्वारा प्रकाशित मिथिलाक्षर ज्ञानमाला पुस्तक की एक प्रति भेंट किया गया। इस अवसर पर सिद्धिरस्तु के अध्यक्ष हरि मोहन झा जी कहा कि यह बहुत दुख की बात है कि मिथिला की सांस्कृतिक पृष्टभूमि होते हुए भी दरभंगा में मैथिली भाषा एवं मिथिलाक्षर लिपि की स्थिति दयनीय है। यहां के लोग आपस में बोलचाल के लिए मैथिली के बजाय हिन्दी का प्रयोग करते हैं। उन्होंने मैथिली भाषा एवं मिथिलाक्षर लिपि के उत्थान के लिए सभी मैथिलों को संकल्प लेने का आह्वान किया। इस संबंध में यजुर्वेद के श्लोकों का तो जिक्र किया ही और इसके साथ-साथ इजरायल देश के राजभाषा हिब्रू भाषा के पुनर्स्थापन में बेन यहुदा एलिजर के योगदान को याद किया। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का मनाया जाना बंग्लादेशियों का अपने भाषा के प्रति को प्रदर्शित करता है।

मंच का संचालन संस्थापकद्वय उज्ज्वल कुमार झा एवं शारदा नंद झा द्वारा किया गया। अपने समापन भाषण में सिद्धिरस्तु के संस्थापक अरुण कुमार मिश्र ने सभी लोगों को धन्यवाद को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए लोगों मैथिली भाषा एवं मिथिलाक्षर लिपि के संरक्षण हेतु संकल्प लेने का आह्वान किया।