“ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में मिथिला एवं कश्मीर का योगदान” विषयक सम्मेलन में अनेक देशों के विद्वानों की होगी सहभागिता।

सम्मेलन में कुलपति प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह व प्रो शशिनाथ झा, प्रति कुलपति डॉली सिन्हा व डा सिद्धार्थ शंकर सिंह, मुख्यातिथि प्रो गोविंद चौधरी व मुख्य वक्ता प्रो राधाकांत ठाकुर आदि रखेंगे विचार।

संस्कृत न केवल ज्ञान- विज्ञान, बल्कि तंत्र- मंत्र एवं अध्यात्म- दर्शन का समृद्ध भंडार- प्रो जीवानन्द।

मानवता, संस्कृति एवं संस्कार की भाषा संस्कृत के अध्ययन- अध्यापन से सामाजिक समस्याओं का निदान संभव- डा चौरसिया।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्त्वावधान में आगामी 30- 31 अगस्त, 2022 को “ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में मिथिला एवं कश्मीर का योगदान : संस्कृत वाङ्मय के परिप्रेक्ष्य में” विषयक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में किया जा रहा है।

सम्मेलन के बारे में विशेष जानकारी देते हुए विभागाध्यक्ष प्रो जीवानंद झा ने बताया कि छह संस्थाओं- मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, संस्कृत विभाग, रामकृष्ण महाविद्यालय, मधुबनी, लोक भाषा प्रचार समिति, बिहार तथा राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति, आंध्र प्रदेश के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित किया जा रहा है।

वर्तमानमें अपना सबऽलग केवल एकहि टा जीवन अछि, दू वा तीनटा नहिं


सम्मेलन में उद्घाटन कर्ता के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह, मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल के प्रो गोविंद चौधरी तथा मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के पूर्व कुलपति प्रो राधाकांत ठाकुर उपस्थित होंगे। वहीं संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशिनाथ झा की अध्यक्षता में आयोजित सम्मेलन में सारस्वत अतिथि के रूप में प्रति कुलपति प्रो डॉली सिन्हा, संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डा सिद्धार्थ शंकर सिंह, मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो मुश्ताक अहमद, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो वैद्यनाथ मिश्र, लोकभाषा प्रचार समिति, बिहार के अध्यक्ष डॉ जयशंकर झा, आर के कॉलेज, मधुबनी के प्रधानाचार्य डा फुलो पासवान तथा बीआरबी कॉलेज, समस्तीपुर के प्रधानाचार्य डा वीरेन्द्र कुमार चौधरी आदि अपने विचार व्यक्त करेंगे। सम्मेलन में कई लोगों को सम्मान भी प्रदान किए जाएंगे।

उन्होंने कहा कि संस्कृत न केवल ज्ञान- विज्ञान, बल्कि तंत्र- मंत्र एवं अध्यात्म- दर्शन का समृद्ध भंडार है। प्रो झा ने बताया कि सम्मेलन में मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह के सहयोग से पांच अन्य देशों के विद्वान भी भाग लेंगे।

जौँ अहाँ अपन इतिहास के बिसरब, तखन इतिहासो अहाँ के बिसरि जायत।


विभागीय प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया ने बताया कि मिथिला एवं कश्मीर का प्राचीन ज्ञान- विज्ञान के विकास में अविस्मरणीय योगदान रहा है। मिथिला अनादि काल से ही अपनी ज्ञान, भक्ति व कर्म की त्रिवेणी हेतु अद्वितीय ऊर्जा एवं बौद्धिक क्षमता के लिए न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शिक्षा- जगत में विख्यात रही है। मिथिला में याज्ञवल्क्य, गौतम, कपिल, कणाद, मंडन, वाचस्पति, उदयनाचार्य, गंगेश व जैमिनी आदि स्थान एवं काल से ऊपर सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक दार्शनिक हुए, जिनका दार्शनिक योगदान सर्वविदित एवं सर्वमान्य रहा है। मानवता के कल्याणार्थ संस्कृति एवं संस्कार की भाषा संस्कृत के उत्थान से ही सामाजिक समस्याओं का निदान संभव है। सम्मेलन में विद्वानों के विमर्श से नए तथ्य उजागर होंगे जो सरकार और समाज को भी दिशा- दशा प्रदान करेंगे।

सम्मेलन के आयोजन सचिव डा नारायण झा ने बताया कि इस सम्मेलन में करीब 500 पंजीयन हुए हैं, जिनमें 24 मुस्लिम, तीन ईसाई तथा 7 बौद्ध धर्म के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। उद्घाटन सत्र 30 अगस्त को पूर्वाह्न 11 से अपराह्न 01 बजे के बीच सम्पन्न होगा। तत्पश्चात् अनेक तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएंगे, जबकि समापन 31 अगस्त को अपराह्न काल में होगा।प्रतिभागियों के शोध- सारांश से संबंधित स्मारिका का भी विमोचन सम्मेलन में किया जाएगा।

के एस कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा शंभूकांत झा ने कहा कि संस्कृत के कारण ही विश्व में भारत की पहचान है। सम्मेलन से शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को अनेक तथ्य मिलेंगे, जिसपर अध्ययन- अध्यापन के साथ ही शोधकार्य भी संपन्न हो सकेगा। उन्होंने सम्मेलन के विषय को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संस्कृत से ही भारत पुनः विश्वगुरु बनेगा। इस अवसर पर डा राजीव कुमार झा, उदय कुमार उदेश, योगेंद्र पासवान व राहुल कुमार आदि उपस्थित थे।