#MNN@24X7 राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान, मोहनपुर दरभंगा के प्राचार्य प्रो.दिनेश्वर प्रसाद ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की पूर्व संध्या पर बताते हुए कहा की आयुर्वेद में वर्णित सदवृत्त पालन, रसायन एवं वाजीकरण के माध्यम से मानस रोगों का इलाज किया जा सकता है। वर्तमान समय में असीम इच्छाओं एवं अत्याधिक महत्वकांक्षी होने से मानसिक रोगों में तेजी से विस्तार हुआ है।
आज कि वर्तमान युवा पीढ़ी के अंदर सहनशीलता के अभाव के कारण उत्तेजना आदि देखने को मिल रही है। इसके पीछे हमारे वर्तमान अप्राकृतिक जीवन शैली एवं वैरोधिक आहार का सेवन है।आज की युवा पीढ़ी देर रात्रि तक जगती है। देर रात्रि जागरण और प्रातःकाल देर से उठना भी मानसिक रोगों का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। रात्रि जागरण से पूर्ण रूप से निद्रा की प्राप्ति नहीं हो पाती है। जिसके कारण इस रोग में बढ़ोतरी हुई है।
मानस रोगों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है। यह विभाजन प्रमुख लक्षणों की विभिनता के अनुसार किया गया है। प्रथम समूह उन मानसिक रोगों का है,जिनमें मानसिक तनाव तथा उत्तेजना प्रधान लक्षणों की बहुलता है और दूसरे समूह में रोग में विषाद प्रधान लक्षणों की बहुलता है।
आयुर्वेद में उत्तेजना प्रधान लक्षणों में रसायन, विशेषत: मेध्य रसायन औषधियां जैसे- ब्राह्मी, शंखपुष्पी एवं जटामांसी आदि औषधियां अपने शांति दायक गुण एवं क्षोभहर प्रभाव के कारण लाभकारी सिद्ध होती है। इसके अतिरिक्त रसायन औषधियां ऊर्जा की वृद्धि कर मानस रोगों को शांत करने में सहायक होती है। इसके विपरीत वाजीकरण औषधियां विषाद प्रधान मानस रोगों में प्रभावकारी देखी गई है। यह अपने उत्तेजनात्मक गुण एवं ओज तथा उर्जा बढ़ता प्रभाव के कारण उक्त मानस रोगों में अधिक लाभकारी है।
अचार रसायन के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि सदवृत्त पालन से भी शरीर एवं मन पर रसायनवत प्रभाव पड़ता है और आचार रसायन पालन मात्र से रसायन के सभी फल प्राप्त होते हैं। धातु पोषण की प्रक्रिया में सुधार तथा दीर्घआयुष्य, व्याधिक्षमत्व एवं मेधा वृद्धि प्राप्त होती है। आचार रसायन के पालन से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और मन स्वस्थ रहने से शारीरिक क्रियाएं स्वस्थ रूप से कार्य करती है।
हमें सत्यवादी, क्रोधरहित, अहिंसक ,प्रशांत, प्रिय भाषी, जप एवं पवित्रता में तत्पर, धीर, नित्य दान करने वाला, तपस्वी वयोवृद्ध की पूजा एवं सेवा में रत , प्राणियों पर दया दृष्टि रखने वाला, नित्य दुग्ध धृत का सेवन करने वाला, युक्ति जानने वाला,अहंकार रहित, सदाचार युक्त तथा धर्म शास्त्रों का स्वाध्याय करने वाला होना चाहिए। मानसिक दोषों में रज और तम गुण की प्रधानता देखी जाती है। हमें इन पर विजय पानी चाहिए। योगाभ्यास में वर्णित यम एवं नियम के पालन से रज एवं तमोगुण पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। चित्त की अनंत वृत्तियों पर निरोध किया जा सकता है। दक्षिण भारत में मानसिक रोगों का इलाज आयुर्वेदिक चिकित्सालय में सफलतापूर्वक किया जा रहा है। प्राचार्य ने बताया की राजकीय महारानी रमेश्वरी भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान में भी पंचकर्म विभाग में मानस रोगों के इलाज में शिरोधारा,शिरोबस्ती नस्य कर्म आदि के द्वारा किया जा रहा है एवं इसका उत्तम प्रभाव रोगी में देखने को मिल रहा है।
संस्थान में ज्योतिष चिकित्सा विभाग की ओ. पी. डी चलाई जा रही है। आयुर्वेद में वर्णित दैवव्यापाश्रय चिकित्सा के माध्यम से मानसिक रोगों का इलाज डॉ दिनेश कुमार के द्वारा किया जा रहा है। मानसिक रोगों का मुख्य रूप से चंद्रमा से संबंध होता है । मोहनपुर परिसर में नवग्रह आयुर्वेद वाटिका की स्थापना की गई है। आयुर्वेद, योग एवं ज्योतिष को अपनाकर पूर्ण रूप से मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं।