#MNN24X7 दरभंगा, वर्ष 2025 के अंतिम दिन राजकुमारगञ्ज, दरभंगा स्थित बाबूजीक लाइब्रेरी में प्रतिवर्ष की परंपरा के अनुरूप साल के विदाई के अवसर पर एक गरिमामय अनौपचारिक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन केवल कविताओं का मंच नहीं रहा, बल्कि साहित्य, स्मृति और मानवीय संवेदना के गहन संवाद का साक्षी बना।

गोष्ठी में उपस्थित कवियों ने प्रेम, हास्य प्रकृति, सामाजिक सरोकार, स्त्री चेतना, समय-बोध और मानवीय पीड़ा जैसे विविध विषयों पर आधारित रचनाओं का पाठ किया। कवि फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण’ की भावपूर्ण पंक्तियों ने श्रोताओं को आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया, वहीं वाचस्पति ठाकुर ‘सुजीत’ की कविताओं में समकालीन समाज की सच्चाइयाँ मुखर होकर सामने आईं। डॉ. प्रो. उषा चौधरी, मणिकान्त झा, रितु प्रज्ञा, प्रतिभा स्मृति, मुन्नी मधु, लक्ष्मी सिंह ठाकुर, मुकेश झा ‘सोनू’, साकेत सौरभ ठाकुर, अतुल कुमार मिश्र, स्वर्णिम किरण ‘प्रेरणा’ और इन्दिरा देवी की रचनाओं ने गोष्ठी को बहुआयामी स्वर प्रदान किया।

विशेष रूप से बेंगलोर से ऑनलाइन जुड़े प्रसिद्ध चिकित्सक सह साहित्यकार डॉ. कीर्तिनाथ झा के काव्य पाठ ने यह सिद्ध किया कि साहित्य भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर हृदयों को जोड़ता है। उनकी कविताओं में मानवीय करुणा और जीवन-दर्शन की स्पष्ट झलक देखने को मिली।

कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो. अशोक कुमार मेहता ने कहा कि ऐसे आयोजन स्थानीय साहित्यिक चेतना को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने बाबूजीक लाइब्रेरी को मिथिला की साहित्यिक विरासत का एक सशक्त केंद्र बताया। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. योगानन्द झा ने किया, जिन्होंने कवियों और श्रोताओं के बीच सहज संवाद स्थापित किया।

गोष्ठी के उत्तरार्ध में 16 दिसंबर को दिवंगत दरभंगा निवासी कवि भवेश चन्द्र मिश्र ‘शिवांशु’ के आकस्मिक निधन पर एक भावपूर्ण शोक सभा आयोजित की गई। इस अवसर पर प्रसिद्ध वैद्य गणपति झा, मित्रनाथ झा एवं हीरेन्द्र कुमार झा ने शिवांशु जी के व्यक्तित्व, उनकी सृजनशीलता और साहित्यिक योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें संवेदनशील और प्रतिबद्ध कवि बताया। उपस्थित साहित्यकारों ने दो मिनट का मौन धारण कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।

कार्यक्रम की शुरुआत हीरेन्द्र कुमार झा के स्वागत भाषण से हुई, जबकि समापन राजेश कुमार सिंह ठाकुर के धन्यवाद ज्ञापन के साथ संपन्न हुआ। वर्षांत की इस साहित्यिक संध्या ने यह स्पष्ट कर दिया कि बाबूजीक लाइब्रेरी केवल पुस्तकों का घर नहीं, बल्कि विचार, संवेदना और सृजन का जीवंत केंद्र है।