जयंती पर कार्यक्रम आयोजित
#MNN@24X7 दरभंगा, संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ शशिनाथ झा ने शुक्रवार को कहा कि बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर संस्कृत शिक्षा के बड़े हिमायती थे। वे खुद संस्कृत पढ़ना चाहते थे लेकिन पराधीन व्यवस्था की तत्कालीन छुआछूत प्रथा के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए जबकि उस जमाने मे विदेशियों को संस्कृत शिक्षा ग्रहण करने की छूट थी। इसका बाबा साहेब को काफी मलाल रहा।
अम्बेडकर जयंती पर मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति ने आगे कहा कि मध्यप्रदेश के इंदौर शहर अंतर्गत महू में 14 अप्रैल 1891 में जन्मे बाबा साहेब का बचपन गरीबी में बीता लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई लिखाई जारी रखी। यही कारण है कि 21 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने करीब करीब सभी धर्मों की पढ़ाई कर ली थी। वे नौ भाषाओं के ज्ञाता थे और करीब 32 शैक्षणिक डिग्रियां उन्हें मिली थी।
उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि कुलपति डॉ झा ने बाबा साहेब को सामाजिक स्वतंत्रता का सबसे बड़ा समर्थक कहा।उन्हें विधिवेत्ता,अर्थशास्त्री, शिक्षाविद, दार्शनिक, लेखक, पत्रकार, धर्मशास्त्री, सम्पादक, वकील बताते हुए कुलपति ने कहा कि आज जो भारतीय संविधान की जो रूपरेखा हमें देखने को मिलती है उसमें उनका योगदान अविस्मरणीय है। करीब दो साल 11 माह और 17 दिनों तक वे संविधान की धाराओं को लिखते रहे थे। वे आजाद भारत के पहले कानून मंत्री थे। दुर्भाग्य से मधुमेह बीमारी के कारण 6 दिसम्बर 1956 को उनका निधन हो गया।
वहीं उन्होंने कहा कि यह सुखद संयोग ही है कि आज बाबा साहेब की जयंती है और आज ही के दिन विक्रम संवत की शुरुआत हुई थी।
इसके पूर्व कुलपति द्वारा दीप प्रज्वलन एवं बाबा साहेब के चित्र पर माल्यार्पण के बाद कार्यक्रम की शुरुआत की गई।इस मौके पर डॉ श्रीपति त्रिपाठी, डॉ पवन कुमार झा, डॉ दीनानाथ साह,डॉ उमेश झा, विजय शंकर झा, रामप्रकाश राम, रविन्द्र कुमार मिश्र, सुशील कुमार झा बौआ जी, श्रीधर शर्मा समेत कई कर्मी मौजूद थे।