काव्य समीक्षा-व्यथित वसन्त – समीक्षा लेखक -डा धनाकर ठाकुर।

विष्णुकांत मिश्रक 2020मे छपल’व्यथित वसन्त’ काव्यसंग्रहक 57 गोट कविता 104 पृष्ठ भीतर।

‘प्रकृति सुषमा’ पहिल गीत अछि
शैल-नदी कात बसन्त एत अछि
‘ब्यथित बसन्त’ कांटक गाछसं
केना होयत ओकर समूल नाश।

भयानकरसमे ‘पावस’ तांडवनृत्य
‘नील वर्ण सियार’ क भेषमे घूमैत
युवावर्ग धोबयमे मात्र समर्थ
‘ठुठ पीपर’ भेल हम करब ‌‌की?

‘रहस्यमय ईश्वर’क अछि पता नहि
विष्णुकांत ‘वनफूल’क व्यथा गाबी
वीररसीय ‘पावस’ जरबैत ओहि
वसुन्धरा’कें जे सभक पालक।

‘सिपाही’ कहथि विष्णुकान्त ओ
सुखदेव, आजाद,भगतसिंह छोड़ि
छक्का छोड़ौताह छद्मवेशीकें आइ
‘रात्रि वर्णन’ हेमन्तक अमावसक
कंपैत देह चोर उचक्काक अवसर
‘कृष्णाभिसारिका’क नख-शिख
वर्णन भरैत अछि उत्तेजना मोनमे
‘गोधूलिक बेला’ नीड़ जाइत चिड़ै
‘उषाकाल’क नैसर्गिक सुषमा
‘पाणिग्रहण’ डिजिटल संसारमे
अग्निदेवक कोनो काज नहि
‘कालचक्र’ ककरो नहि छोड़य।

‘जीवन सरिता’आनन्दक सागरमे
‘अपन गाम’ बहुत बर्ख पर गेलहूं
गाम बुझाय श्मसान जकां
‘बचकुन बाबा’क पाते कुकुरमूंह
‘श्वान’क वफादारी मनुजकें पाठ
‘सुनसान बाट’ पर चलैत अपन
कपार ठोकैत रहलाह विष्णुकांत
‘सुखाइत गाछ’कानि रहल अछि
‘पथिक’मंजिल तक दिशाहीन नहि
‘धुन्ध’मे फंसैत कुहेस मध्य
‘शान्ति’तकैत रहलाह विष्णुकांत।
‘चुट्टी’ अनुशासनमे सेना आदर्श
‘प्रीति’अहां धरा,धूल छी हम।
‘सन्तोष’क धन आगां
सभ धन धूरि समान।

‘अजगुत’ बेटा बाप पर फानि रहल
धर्मात्माके यमराज तकै छै
‘मिथिलाक गाम’ बबूरे बबूरे आम
‘मृगनयनी’ व्यथा गीत अनन्त छल
‘प्रहरी’ शत-शत प्रणाम बलिदानी
‘माली’ मुरझा गेल बगिया
‘देवाधिदेव महादेव,दानी छी।

‘चेथरू बाबू’क नोत कहियो नहि
‘सांप’सं बचय खातिर
फूकि-फूकि डेंग उठाउ।
‘अतीतक गरिमा’ नैसर्गिक सुखक
‘क्वारेंटाइन सेन्टर ‘कोरोना
हाहाकार सभ ठाम मचल
‘सचेत जे हनुमान कूद कूदैत छी।

‘मिथिला राज’, न्यायोचित मांगने
‘मोबाइल’ ‘गुणगाथा किंचित
‘विनीत’के डर नहि’
‘जगदम्बा’,छीअबलम्ब।
‘छाहरि’ हम कहब ककरा व्यथा
‘आशाक रश्मि’सं भुवन संचालित
‘कर्तव्य’ सफल समाज बनाबी
‘हुंकार’ हिमगिरिक,कुंडलिया कवि
देखयमे ‘महकारी’ बीया कारी
‘प्रलय’पापक घैल जखन भरे छै।

‘मैथिली’ जय जनक वन्दिनी
‘पिआस’ल पानिक मध्य रहितहूं
‘सुन्दरी’ देखि के नहि बेहाल।
‘नव भारत’क नव-नव विधान
लूट, अपहरण, बलात्कार
‘चीरहरण’ सत्यानाश नहि भाङठ
‘अर्चना’ हे शिवशंकर कृपानिधान
‘दोहावली’दशटा प्रयोग एतय।

रहैत यदि ई अध्याय विषय विषय
प्रकृति, देव, मोन, प्रेम,प्रहरी पर
वा नवरसक अनुसार अध्याय
मिथिलाक शान अधिक लिखितहूं
पढ़ैत सूनैत होइत अधिक प्रिय ई।

प्रकृति चित्रणमे छथि प्रवीण कवि
गामक हर बोली बात बुझैत छथि
चेथरू सन पात्र पर हंसबैत छथि
गामक द्वेष पर कनबैत छथि।

किछु उर्दू -हिन्दी शब्दसं बचितहूं
त आओर अधिक अहां सजितहू़।

पृष्ठभूमि कविक अछि प्राकृतिक
व्यथित वसन्त मात्र नहि कविदृष्टि
छथि कवि व्यथित देखि समाजकें
गाम परिवार मिथिला भारत विश्व
समेटने मनोभाव कवि विष्णुकान्त
प्रस्तुत केने किछु फूलपात एतय
नव विषय पर आओर लिखताह
नव नव कविताक सोपान देताह।
(१०.७ २०२३:१९२७, वाराणसी) ‌‌