दुनिया भर में नीति निर्माता और विकास से जुड़े सभी बुद्धिजीवी वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पोषण में सुधार लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, पर उन्हें एक कठोर वास्तविकता का भी सामना करना पर रहा हैं और वो हैं ” जलवायु परिवर्तन “.

जैसे- जैसे विश्व जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है, बढ़ती आबादी और उसकी पोषण संबंधी मांग कृषि के कार्बन पदचिह्न को भी बढ़ा रही है. इस सिनसिले में बीसा-सिम्मिट अपने राष्ट्रीय भागीदारों के साथ मिल कर पिछले दो दशकों से जलवायु अनुकूल कृषि सम्बन्धित तकनीकों का विकास करने के साथ किसानों के मध्य उनके प्रचार और प्रसार को सुनिश्चित करने का कार्य कर रहा है.

इस कार्य से किसानों को होने वाले लाभों से प्रेरित हो कर कुछ समय पहले ही बिहार सरकार ने जलवायु अनुकूल कृषि करने समबन्धित तकनीकों का प्रचार और प्रसार सभी 38 जिलों में सुनिश्चि करने हेतु अपना समर्थन दिया है.

जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के सफलता को देखते हुए कॉर्नेल विश्वविद्यालय, अमेरिका के वैज्ञानिकों ने बीसा फार्म का दौरा किया। हम आपको बता दें कि कॉर्नेल विश्वविद्यालय, टाटा के साथ जीरो- हंगर, जीरो कार्बन फूड सिस्टम्स प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. शोधकर्ता भारतीय कृषि क्षेत्र में विभिन्न उत्पादन प्रणालियों के सामने आने वाली चुनौतियों का आकलन कर रहे हैं और उनके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को माप रहे हैं।

शोधकर्ता इस विश्लेषण का उपयोग कर, एक रोडमैप विकसित करेंगे जिससे उत्पादकता को हानि किए बिना उत्सर्जन में कमी आये, इस परियोजना का नेतृत्व TCI शोधकर्ताओं एवं कॉर्नेल विश्वविद्यालय में कृषि और जीवन विज्ञान द्वारा किया जा रहा है।

कॉर्नेल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहले बजीतपुर – पाटेपुर में स्थित सी.आर.ए. गाँव का दौरा किया और वहाँ किसानों से भी मिला

इसके बाद बीसा, पूसा में चल रही लॉन्ग टर्म ट्रायल्स, मेढ़ विधि और जीरो टिलेज के संबंधित बीसा के वैज्ञानिकों से
जानकारी ली. बिहार में बीसा द्वारा चलाये जा रहे फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में भी जानने के इच्छुक थे कॉर्नेल विश्वविद्यालय से आये शोधकर्ता। वो बीसा द्वारा कृषि में कार्बन पदचिह्न को कम करने के तरीके से काफी प्रभावित थे।

डॉ. राजकुमार जाट, वैज्ञानिक एवं बीसा- पूसा प्रभारी ने बताया की “बिहार सरकार द्वारा चलायी जा रही “जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम” की विश्व स्तर पर सराहना की जा रही हैं” आज देश, विदेश से वैज्ञानिक, शोधकर्ता एवं कई अन्य लोग यहाँ आते हैं और इसकी जानकारी लेते हैं. आज कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वैज्ञानिक बीसा, समस्तीपुर फार्म में आये और कृषि में कार्बन पदचिह्न को कम करने के तरीके एवं बिहार के किसानों को जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए तैयार किये जाने के प्रक्रिया को काफी सराहा.

डॉ. राजकुमार जाट ने शोधकर्ताओं को फार्म में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों की जानकारी दी। उन्होंने ये भी बताया की किस प्रकार बीसा, बिहार सरकार एवं अन्य संस्थानों के साथ जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम को किसानों तक पहुँचा रहे हैं. कॉर्नेल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जानकर बहुत प्रभावित हुए कि किस तरह फसल प्रणाली, फसल विविधता और नई तकनीकों को अपना कर बिहार के किसान अपनी आजीविका में निरंतर सुधार ला रहे हैं.

वैज्ञानिकों को यह जानकर हैरानी हुई की बिहार में बाढ़ के भारी प्रभाव के बाद भी किसान यहाँ खेती कर रहे हैं और अपनी आजीविका के साथ साथ अपने परिवार का भी ख्याल रख रहे हैं।

कॉर्नेल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि बीसा, बिहार सरकार एवं अन्य संस्था द्वारा चलायी जा रहे कार्यक्रम अपने आप में एक मिसाल हैं, बिहार में जो बीसा कृषि के क्षेत्र में कर रहा है उससे सीखने के लिए बहुत कुछ है, इसलिए हम यहाँ हैं। बीसा सही मायने में जीरो – हंअर, जीरो कार्बन की ओर काम कर रहा है।

इस दौरान डॉ. विजय सिंह मीणा, डॉ. इल्लाथुर राजेश, डॉ. अर्पित गौड़, कई अन्य वैज्ञानिक एवं बीसा और सी. आर. ए कार्यक्रम के कर्मचारी उपस्थित थे।

कॉर्नेल विश्वविद्यालय से आये शोधकर्ता कुछ दिनों तक बिहार दौरे पर हैं, ये विभिन्न स्थानों पर जाएंगे और किसानों से भी मिलेंगे।