किसी तरह शिक्षक बहाली की प्रक्रिया को चुनाव तक टालना चाह रही है सरकार:संजीव।
शिक्षक बहाली नियमावली 2023 में अप्रत्यासित सुधार की जरूरत है:संजीव।
#MNN@24X7 सरायरंजन/समस्तीपुर, शिक्षक बहाली नियमावली 2023 में अप्रत्याशित सुधार की जरूरत है। उक्त बातें गंगसारा पंचायत के पूर्व पंचायत समिति सदस्य सह युवा समाजसेवी बागी संजीव कुमार इन्कलाबी ने पटना स्थित पाटलिपुत्र के पी.एम मॉल अवस्थित चौथी मंजिल के एक सभागार में प्रैक्सीस संस्था के द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही।
संजीव कुमार इन्कलाबी ने कहा की सरकार शिक्षक बहाली की प्रक्रिया को और जटिल बना कर रखना चाहती है। उन्होंने शिक्षक की कमी पर चिन्ता जाहिर करते हुए कही की बिहार में शिक्षक की जितनी कमी है उसके अनुसार बहाली नहीं हो रही है। सरकार मुफ़्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के तहत आजतक छात्र शिक्षक अनुपात के अन्तर को पूरा नहीं कर पाई है ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना करना बेवकूफी है।
उन्होंने कहा कि आज सरकार बिहार की सर्वश्रेष्ठ प्रतियोगी परीक्षा बी.पी.एस.सी के द्वारा शिक्षक बहाल करना चाह रही है मैं इसका समर्थन करता हूं पर मैं सरकार से यह भी कहना चाहता हूं की यदि आपको बी.पी.एस.सी से ही शिक्षक की बहाली करनी है तो फिर बी.एड एंट्रेंस एग्जाम को समाप्त करके पहले बी.पी.एस.सी का एग्जाम ले लें और इस प्रतियोगी परीक्षा में उत्तीर्ण छात्र छात्राओं को ही बी.एड करवाएं वो भी सरकार अपने खर्चे से इसके बाद बिना शर्त के नियुक्ति पत्र दे दें। इस नियम को लाकर सरकार यह साबित करना चाह रही है की हम तो इतनी तादाद में बहाली भी निकाले अब आप बी.पी.एस.सी उत्तीर्ण हुए ही नहीं तो हम क्या करें? सरकार इसी तरह से अपने आंकड़े में दिखायेगी की हमने 10 लाख नौकरी दिया पर आपने नहीं लिया।
उन्होंने नियोजित शिक्षकों के सवाल पर कहा की ये सरकार इस परीक्षा को लेकर नियोजित शिक्षकों से ये कहवाना चाहती है की “नहीं मुझे राज्यकर्मी का दर्जा नहीं चाहिए हम नियोजित ही सही हैं क्योंकि ज्यादातर शिक्षक बी.पी.एस.सी कंप्लीट नहीं कर पाएंगे और अपने आप को नियोजित रहने पर मजबूर हो जाएंगे तथा नियमित और वेतनमान का मुद्दा सदा सदा के लिए समाप्त हो जायेगी। नियोजित शिक्षकों में भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है,कुछ लोग इस नई नियमावली का विरोध कर रहे हैं तो कुछ लोग समर्थन कर रहे हैं।
समर्थन कर रहे शिक्षकों से खास बातचीत के दौरान उन्होंने कहा की यदि सरकार ये घोषणा कर दे की बी.पी.एस.सी में डिसक्वालिफाई को नियोजित शिक्षक रहने का भी अधिकार नहीं रहेगा यानी अयोग्य घोषित करके नौकरी से हटा दिया जाएगा तब सभी की हेंकरी बाहर हो जायेगी। क्योंकि कुछ शिक्षक लोग इस नियमावली का समर्थन करते हैं क्योंकि उनको इस एग्जाम को क्वालीफाई होने या नहीं होने से कोई फर्क नहीं परता है। फेल होने के बाद भी नियोजित तो रहेंगे ही।
चार साल से शिक्षक बहाली का इंतजार कर रहे अभ्यर्थियों के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने कहा की सरकार अभ्यर्थियों को चार साल पांच साल इंतजार कराने के बाद आज नियम बदलकर उसे सड़क पर लाकर रख दिया है। फिर शिक्षक पात्रता परीक्षा का क्या मतलब रहा? शिक्षक प्रशिक्षण की डिग्री लेने का क्या मतलब रहा? सरकार को इसपर जवाब देना चाहिए। जिस तरह सरकार बदलती है इसी तरह सालों साल नियम यदि इसी तरह बदलती रही तो कभी भी शिक्षक की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है।सरकार ने आगामी बहाली में पौने तीन लाख रिक्तियां निकाली है जिसपर भर्ती करेगी उसमें से पांचवीं से आठवीं में महिलाओं के लिए 50% शीट सुरक्षित है तथा 33% शीट नौवीं से दसवीं के लिए सुरक्षित है जबकि सरकारी प्रतियोगी परीक्षा परिणाम के अनुसार मात्र दोनों पात्रता परीक्षा में 20 हज़ार महिला ही उत्तीर्ण हुई है ऐसे में उनका पूरा शीट भर नहीं रहा है,ऊपर से बी.पी.एस.सी परीक्षा थर्ड अंपायर बनकर खड़ी है। ऐसे में शिक्षक की कमी को पूरा कर पाना सरकार के लिए चुनौती है। वर्ष 2014 में हुए उत्क्रमित उच्च विद्यालयों में आजतक बिना शिक्षक के ही पढ़ाई हो रही है जिसपर सरकार की नज़र ही नहीं है। आख़िर कैसे हो रही है बिना शिक्षक के पढ़ाई?कैसे परीक्षा में अच्छे परिणाम आरहे हैं यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सवाल है।
उन्होंने कहा कि इस विषम परिस्थिति में सरकार को इस नए नियमावली में सुधार करना चाहिए,पहले शिक्षक की कमी को पूरा करें फिर बाद में बी.पी.एस.सी के द्वारा दक्षता परीक्षा लेते रहें। आज शिक्षक की कमी की वजह से छात्र पलायन कर रहे हैं,छात्राएं की छीजन दर में वृद्धि हो रही है। बच्चे ट्यूशन और कोचिंग संस्थानों पर निर्भर रहना पर रहा है ऐसे में बिहार की शिक्षा व्यवस्था सवाल के घेरे में है।यद्यपि 20वीं सदी के उत्तरार्ध में बिहार की शिक्षा दर लगभग तिगुनी होकर राज्य की जनसंख्या के क़रीब 48 प्रतिशत तक पहुंच गई है, फिर भी यह देश के अन्य राज्यों की शिक्षा दर की तुलना में काफ़ी नीचे है। महिला साक्षरता दर (33.57 प्रतिशत) की तुलना में पुरुष साक्षरता दर (60.32 प्रतिशत) लगभग दुगनी है।
उन्होंने कहा कि मैं इस शिक्षक भर्ती की नई नियमावली का विरोध नहीं कर रहा हूं पर यह नियम को लाने का उचित समय नहीं है। पहले छात्र शिक्षक अनुपात में आरही बड़े अन्तर को समानुपाती करें फिर सबको बी.पी.एस.सी प्रतियोगी परीक्षा लेकर राज्यकर्मी बनाएं। अभी राज्यकर्मी बनने की कोई जल्दबाजी नहीं है पहले विद्यालय में शिक्षक भर तो दीजिए। इस नियमावली को लाकर सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है की किसी तरह से बहाली को टाल दिया जाए या टाल रही है। सरकार चाह रही है की इस बहाली को किसी तरह लोकसभा–विधानसभा चुनाव तक खींचकर ले जाना चाहती है। ना तो विधानसभा में कोई बहस हुई और न ही सदन से पास कराई गई पता नहीं कैसे नियम बन भी जाता है और लागू भी हो जाता है!