#MNN@24X7 कृषि विज्ञान केंद्र जाले के पौध संरक्षण वैज्ञानिक सह जलवायु अनुकूल परियोजना के अन्वेषक डॉ गौतम कुणाल के द्वारा जलवायु अनुकूल कृषि परियोजना अंतर्गत चयनित ग्राम ब्रह्मपुर में ग्रीष्मकालीन फसलों में कीट व रोग प्रबंधन विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन ब्रह्मपुर उच्च विद्यालय के परिसर में किया गया।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान ब्रह्मपुर के उप मुखिया बृजेश कुमार ठाकुर, प्रगतिशील किसान रजत ठाकुर, रोहित कुमार, हेमंत ठाकुर, विक्रांत ठाकुर, जलवायु अनुकूल कृषि परियोजना के शोध सहायक डॉ संदीप सुमन समेत कुल 83 कृषक उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षक डॉ गौतम कुणाल ने बताया कि इन दिनों जलवायु में लगातार परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इस परिवर्तन के कारण खेती करने की पद्धति, फसलों का चयन एवं फसल चक्र में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इसी परिवर्तन को देखते हुए बिहार सरकार एवं भारत सरकार के द्वारा परियोजनायें चलाई जा रही हैंताकि कृषक बंधुओं को अधिक समस्या का सामना ना करना पड़े।
उन्होंने बताया कि पहले जिले में मुख्यतः दो फसल लिए जा रहे थे जिनमें खरीफ में धान और रबी के मौसम में गेहूं। ज्यादातर खेत गेहूं की कटाई उपरांत खाली रह जाते थे परंतु कृषि विज्ञान केंद्र के प्रयासों के द्वारा इन दिनों रबी और खरीफ फसल के बीच में जो अवधि होती है, उसमें मूंग की बुवाई की जा गई है। उन्होंने बताया कि केंद्र के इस कार्य का मुख्य उद्देश्य खाली पड़े भूमि से कुछ उत्पादन लेना अथवा खेतों में हरी खाद का इस्तेमाल करना है।
कार्यक्रम को बढ़ाते हुए उन्होंने बताया कि मूंग की फसल में विभिन्न अवस्थाओं में अनेक प्रकार के रोग लगने की सम्भावना रहती है। यदि इन रोगों की सही पहचान करके उचित समय पर नियंत्रण कर लिया जाए तो उपज का काफी भाग नष्ट होनें से बचाया जा सकता है।
इसी कड़ी में उन्होंने मूंग में लगने वाली पीली चित्ती रोग के बारे में विशेष कर चर्चा किया। इस परिपेक्ष में डॉक्टर कुणाल ने बताया की यह एक विषाणु जनित रोग है जो सफेद मक्खी के द्वारा फैलती है। इसमें पत्तियों पर अनियमित पीले एवं हरे रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं। जो बाद में मिलकर बड़े–बड़े धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं। जिससे सम्पूर्ण पत्ती पीली पड़ जाती है तथा पतियों में उत्तक क्षय भी होने लगता है। संक्रमित पौधों में पुष्प एवं फलियाँ देर से तथा कम लगते हैं इस रोग के लक्षण फलियों एवं दोनों पर भी दिखाई देते हैं। हयह रोग सफेद मक्खी से फैलता है। सफेद मक्खी को थायमेथॉक्सम 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर नियंत्रित किया जा सकता है।
साथ हीं उन्होंने आम व लीची में लगने वाली कीट व्याधि के बारे में चर्चा की और आगामी खरीफ के मौसम में बोई जाने वाली फसलें के बारे में भी कृषकों को अवगत कराया।