#MNN@24X7 कृषि विज्ञान केंद्र, जाले के द्वारा दिनांक 5 जून 2023 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर “जैविक एवं प्राकृतिक खेती की प्रदर्शनी सह कार्यशाला” का आयोजन किया गया इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इस दिन को मनाने का खास मकसद औद्योगिक प्रदूषण को कम करना और पेड़ों की कटाई पर रोक लगाना है।

इस कार्यक्रम की अगुवाई केंद्र के प्रधान सह वरीय वैज्ञानिक डॉ दिव्यांशु शेखर ने की। इस दौरान केंद्र के पौध संरक्षण विशेषज्ञ डॉ गौतम कुणाल, कृषि अभियंत्रिकी डॉ अंजली सुधाकर, गृह वैज्ञानिक पूजा कुमारी, मत्स्य वैज्ञानिक डॉ जगपाल, प्रक्षेत्र प्रबंधक डॉ चंदन कुमार प्रगतिशील किसान हीरा भगत, आबीद खान, राज किशोर मिश्रा आदि उपस्थित रहें।

कार्यक्रम में संबोधन के दौरान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ दिव्यांशु शेखर में बताया की देश और दुनिया में हर साल विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस दिवसप्रथम विश्व पर्यावरण दिवस 1973 में मनाया गया था। ये दिन लोगों में जागरूकता बढ़ाता है और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देता है। विश्व पर्यावरण दिवस लोगों को परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करता है और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करता है।

उन्होंने बताया कि पर्यावरण में जो स्थिरता आई है उसके जिम्मेवार कहीं ना कहीं हम खुद हैं। क्योंकि हमने ईश्वर के द्वारा दी गई नायाब तोहफा ‘प्रकृति’ का दोहन अपने स्वार्थ के लिए इतना अधिक किया कि हमारी प्रकृति अस्वस्थ होने लगी। और यह तो सार्वभौमिक सत्य है कि जैसे-जैसे प्रकृति का संतुलन बिगड़ेगा जलवायु में भी परिवर्तन देखने को मिलेगा। हमने अपने स्वार्थ के लिए प्राकृतिक संसाधनों (वृक्ष, भूमि, जल आदि) का हनन इस कदर किया है इसे पुण: अपने वास्तविक रूप में आने के लिए काफी समय लगेगा। किंतु अपने पर्यावरण को स्वस्थ रखने के लिए अगर हम एक साथ मिलकर यह संकल्प लें की अपनी प्रकृति को संरक्षित स्वस्थ और सुरक्षित रखेंगे तो यह संभव हो सकता है।

केंद्र की गृह वैज्ञानिक पूजा कुमारी ने जलवायु में होने वाली परिवर्तन को देखते कृषकों को बताया कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए, हमें ऐसी फसलों की आवश्यकता है। जिनमें अधिक लचीलापन हो और जिन्हें बहुत कम प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता हो। बाजरा एवं अन्य मोटे अनाज तापमान परिवर्तन, नमी-व्यवस्थाओं और इनपुट स्थितियों के अनुकूल हो सकता है। मोटा अनाज किसानों पर बोझ नहीं डालते, इन्हें ज्यादा सिंचाई और उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती, और यह उन्हें ‘फ्यूचर स्मार्ट फूड’ बनाता है।” इसमें पानी एवं रासायनिक उर्वरकों की बहुत कम आवश्यकता होती है। साथ ही उन्होंने शिक्षकों को प्राकृतिक विधि द्वारा निर्मित उर्वरक बीज शोधन हेतु सामग्री एवं कीट व रोग प्रबंधन के लिए प्राकृतिक विधि द्वारा निर्मित कीटनासि एवं फफूंदनासि के बारे में विस्तृत जानकारी थी।

इस अवसर पर डॉ जगपाल ने जल संरक्षण की बात करते हुए कहा की, पानी एक अनमोल संपत्ति है। जो पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों और पौधों के अस्तित्व के लिए बहुत मूल्यवान है। इसलिए पानी जीवित रहने के लिए बहुत आवश्यक है। हमें पानी का उचित प्रयोग करना चाहिए ताकि वह दूसरों के लिए भी उपलब्ध हो सके।

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए केंद्र की कृषि अभियंत्रिकी डॉ अंजली सुधाकर ने बताया कि भूमिगत जल का पुनर्भरण दो तरीके से होता है। एक प्राकृतिक भूभरण जिसमें वर्षा जल एकमात्र स्रोत है जो पृथ्वी पर जल की उपलब्धता, मृदा नमी, भूमिगत जल पुनर्भरण आदि के लिए प्रमुख स्रोत हैं। वर्षा जल ही अन्य स्रोतों जैसे नदियाँ, धाराएँ, जलासय, झील एवं कृषि सिंचाई के माध्यम से भूमिगत जल एवं मृदा नमी में प्राकृतिक रुप से वृद्धि होती रहती हैं। दूसरा कृत्रिम पुनर्भरण जैसे छोटे बाँध या नाला बाँध, वाहिका फैलाव तकनीक, अंतःस्त्रवण कुण्ड तकनीक, कुओं एवं कुण्डों का पुनर्भरण संरचना के रुप में संशोधन, भूमिगत जल प्रबंधन, कृषि क्षेत्र में जल प्रबंधन आदि।

डॉ चंदन कुमार ने धान की सीधी बुवाई से संबंधित अहम जानकारी साझा की। वहीं डॉ कुणाल ने इसके प्रबंधन के बारे में बताया। इस कार्यक्रम के दौरान कुल 273 कृषक उपस्थित रहे।