एक ही पुस्तक पर दो प्रमुख सम्मान मैथिली विषय के लिए गौरव की बात -प्रोफ़ेसर दमन कुमार झा
#MNN@24X7 दरभंगा, आज दिनांक 19 8 2023 को विश्वविद्यालय मैथिली विभाग में मनाया गया बाबू आरसी प्रसाद सिंह की जयंती। विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दमन कुमार झा की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में जहां एक ओर विभागीय शिक्षक ने अपने विचार प्रस्तुत किए वहीं दूसरी ओर विभाग में कार्यरत शोधार्थी, छात्र-छात्रा सबों ने भी अपने- अपने शब्दों में बाबू आरसी प्रसाद सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विभागाध्यक्ष ने अपने संबोधन में कहा कि हमने बाबू आरसी प्रसाद सिंह को बहुत नजदीक से देखा है जब मैं पटना में अध्ययन कर रहा था ।हमजहाॅ रहते थे आये दिन साहित्यकारों का उस मोहल्ले में जमघट सा लगता था जिसमें पटना स्थित रहने वाले नामचीन साहित्यकार एवं कवियों में से एक थे बाबू आरसी प्रसाद सिंह। जिन्होंने मात्र अपनी भावनाओं को शब्द के माध्यम से व्यक्त नहीं किया अपितु मानव समाज को अपने शब्दों से प्रकृति का साक्षात्कार भी करवाया उनकी भावनाओं में , शब्द की अभिव्यक्तियों में प्रकृति का दर्शन सहज रूप में देखने को मिलता है। जिसकी जीती जागती तस्वीर हम उनकी रचना सूर्यमुखी कविता संग्रह में देखते हैं ।यही वह रचना है जिन रचना पर बाबू आरसी प्रसाद सिंह को विद्यापति सम्मान मैथिली अकादमी पटना के द्वारा तथा भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान साहित्य अकादमी सम्मान नयी दिल्ली द्वारा प्रदान किया गया ।यह मैथिली विषय के लिए गौरव की बात है ।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विभाग के वरीय शिक्षक प्रोसेसर अशोक कुमार मेहता ने कहा कि बाबू आरसी प्रसाद सिंह का जीवन पूरी तरह सादगी से भरा पड़ा था और जिस प्रकार सादगी उनके रहन सहन और आचरण में था ठीक उसी प्रकार उनकी सभी रचनाएं गंगा यमुना सरस्वती की निर्मल जल के समान है ।वह मूल रूप से छायावाद कविता रचनाकार के रूप में विशेष तौर पर जाने जाते थे परंतु उनकी रचनाओं पर ध्यान आकर्षित करने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी भावना प्रकृति निर्मित वस्तुओं में या जीवो में जो उदारता है ,जो निश्छलता है ,जो विशेषता है ,उसे शब्दों के रूप में उन्होंने साकार किया और प्रकृति के साथ मानव जीवन के विविध पक्षो को भी उजागर किया ।
कार्यक्रम में विभाग के शिक्षक डॉक्टर सुरेश पासवान ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि रचना चाहे विषयगत हो या भाषागत साहित्यकार या कवि की सभी रचनाओं के पीछे किसी न किसी विशेष व्यक्तित्व की प्रेरणा होती है। जिस प्रकार डॉक्टर जयकांत मिश्र ने मैथिली की प्रथम इतिहास की रचना अपने गुरु डॉ अमरनाथ झा की प्रेरणा से तथा यात्री नागार्जुन ने हिंदी के स्थापित साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी की प्रेरणा से उसी प्रकार बाबू आरसी प्रसाद सिंह ने अपनी रचना भुवनेश्वर सिंह भवन जैसे साहित्यकारों की प्रेरणा से एक ऐसे स्तर तक पहुंचाने में कामयाब हुए जहां इन्हें विशिष्ट सम्मान के साथ विशिष्ट स्थान भी मिला ।
कार्यक्रम में अपने संबोधन में विभाग की शिक्षिका डॉ सुनीता कुमारी ने कहा कि बाबू आरसी प्रसाद सिंह की तीन प्रमुख रचनाएं सूर्यमुखी ,पूजाक फूल, तथा माटिक दीप यह तीनों रचनाएं बहुत ही बेहतरीन रचनाएं हैं इसकी एक -एक कविता अनुकरणीय है ।कार्यक्रम में राजनाथ ,शिवम, मनोज , इत्यादि शोध छात्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम में विभागीय शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मी सहित विभाग के सभी छात्र एवं शोध छात्र की उपस्थिति में कार्यक्रम का संचालन विभाग की शिक्षिका डॉ सुनीता कुमारी तथा धन्यवाद ज्ञापन विभाग में कार्यरत शोध छात्र सह सहायक प्राचार्य श्री प्रमोद कुमार पासवान ने किया।