अयाची मिश्र गुरु दक्षिण में अपने जैसे 10 शिष्यों को तैयार कर ज्ञान-परंपरा आगे बढ़ाने की दक्षिण स्वीकारते थे- डॉ धीरज।

#MNN24X7 दरभंगा ‘भारतीय दर्शन में पंडित अयाची मिश्र का योगदान’ विषयक कार्यक्रम में डॉ धीरज पाण्डे का हुआ एकल व्याख्यान

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग में स्थापित अयाची मिश्र चेयर तथा डॉ प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में विभागाध्यक्ष डॉ शिवानंद झा की अध्यक्षता में “भारतीय दर्शन में पंडित अयाची मिश्र का योगदान” विषयक सिंपोजियम का आयोजन विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग में हुआ, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के प्राध्यापक डॉ धीरेन्द्र कुमार पांडे, संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो एवं संस्कृत- प्राध्यापक डॉ आर एन चौरसिया, स्वागत कर्ता डॉ राजीव कुमार, विषय प्रवेशक डॉ प्रियंका राय तथा धन्यवाद कर्ता डॉ संजीव कुमार साह आदि ने अपने विचार व्यक्त किया। इशान के संचालन में आयोजित सिंपोजियम में डॉ ममता स्नेही, डॉ मोना शर्मा, डॉ ज्योति कुमारी, सदानंद विश्वास, मणिपुष्पक घोष, राघव झा, बालकृष्ण कुमार सिंह, सुजाता प्रभाकर, हरिओम झा, अनिल कुमार सिंह, रानी कुमारी जिग्नेश कुमार, रवीन्द्र कुमार, मंजू अकेला, कृष्ण मोहन भगत सहित सभी 60 से अधिक प्रतिभागियों को फाउंडेशन की ओर से प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ। वहीं अतिथियों का स्वागत पुष्प-पौधों से किया गया।

मुख्य वक्ता डॉ धीरेन्द्र कुमार पांडे ने पंडित अयाची मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि मिथिला दर्शन, यज्ञ, ज्ञान-विज्ञान, स्त्री-शिक्षा तथा ऋषियों की असाधारण बैकुंठ सदृश्य भूमि है। चार आस्तिक दर्शनों का उद्भव के साथ ही छह दर्शन यहीं पल्लवित एवं पुष्पित हुईं। इसे माया नगरी भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन विचारों एवं तर्कों का शास्त्र है जो मुक्ति का मार्ग दिखता है। मिथि के नाम पर बना मिथिला में छह शत्रुओं का मर्दन होता है। मिथिला में निवास करने मात्र से ही जीवन मुक्ति मिलती है। डॉ पाण्डे ने कहा कि भवनाथ मिश्र के गुणों के कारण ही इनका नाम अयाची मिश्र पड़ा। वे अपने शिष्यों से दक्षिण नहीं लेते थे, बल्कि उन्हें कहते थे कि अपने जैसे ही 10 शिष्यों को पढ़कर ज्ञान-परंपरा को आगे बढ़ाओ। वे अपने जीवन में किसी से याचना नहीं किया। वे प्रकांड विद्वान एवं शैव थे। अयाची मिश्र मूलतः न्याय के विद्वान थे, पर मीमांसा एवं वेदांत के भी बड़े जानकार थे। अयाची मिश्र के पुत्र शंकर मिश्र ने उनके विचारों को कई ग्रंथों में संकलित किया।

फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने भी अयाची मिश्र का भारतीय दर्शन के विकास में योगदान को रेखांकित किया। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ शिवानंद झा ने कहा कि आज के आर्थिक युग में अयाची मिश्र की नैतिकता की भावना अनुकरणीय है। इनका काल 14वीं सदी का उत्तरार्ध और 15वीं सदी का पूर्वार्द्ध भाग है। इनके बारे में कई की किंवदंतियां प्रचलित हैं। शंकर मिश्र इनके ज्येष्ठ पुत्र थे, जिन्होंने उनकी 20 कृतियों को मूर्त्त रूप दिया। वे किसी से भी दान, पुरस्कार या सम्मान आदि नहीं लिए, इसी कारण उनके नाम में अयाची जुड़ा। इस अवसर पर डॉ घनश्याम महतो तथा डॉ आर एन चौरसिया आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किया।

स्वागत भाषण में विभागीय प्राध्यापक डॉ राजीव कुमार ने बताया कि अयाची मिश्र सरिसव-पाही के मूल निवासी थे। इनका मूल नाम भवनाथ मिश्र था। जीवन में कभी किसी से याचना न करने के कारण ही उनका नाम अयाची मिश्र पड़ा। धन्यवाद ज्ञापन में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक डॉ संजीव कुमार साह ने कहा कि अयाची मिश्र का जीवन अनुकरणीय है। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर और अधिक अध्ययन-अध्यापन तथा शोध-कार्य करने की जरूरत है।