समय आ स्थान: काशी (वाराणसी) आ दिल्ली कऽ दरबार।
पात्र सूची
1. गोस्वामी तुलसीदास – रामभक्त कवि, शांत आ विनम्र स्वभाव।
2. रहीम ख़ानख़ाना – अकबर क मंत्री, कवि आ दानवीर।
3. सेवक – रहीम के आज्ञाकारी आ श्रद्धालु सेवक।
4. शिष्य – तुलसीदास के संग रहऽ बला भक्त।
5. संदेशवाहक – तुलसीदास आ रहीम’क बीच सनेश लाब बला व्यक्ति।
6. वाचक (Narrator) – कहानी के भाव आ परिवेश बुझाब बला।
(पहिल दृश्य – काशी में तुलसीदास जी क आश्रम)
मंच-सजावट: बांस के छोट झोंपड़ी, मैट’क दियौरी, तुलसी के गाछ, रामचरितमानस केर पांडुलिपि।
हल्लुक भक्ति संगीत पृष्ठभूमि में (“श्रीराम जय राम जय जय राम”)।
वाचक: वाराणसी केर पवित्र भूमि पर, तुलसीदास जी प्रभु राम के ध्यान में लीन छथि। मुदा हुनकर आश्रम में कई एक दिन सं अन्न के अभाव अछि …
शिष्य: (चिंतित स्वर में) गुरुदेव, अन्न समाप्त भ गेल अछि। भक्तजन सेहो की एक दिन सं किछु लऽ के नहि ऐलथ।
तुलसीदास: (शांत भाव सं) चिंता जुनि करू पुत्र, प्रभु राम अपन लीला सं सब किछु कऽ सकैत छथि।
तैयौ हमरा मोन होइत अछि जे रहीम ख़ानख़ाना के सनेस पठा दी — ओ दानी आ धर्मात्मा पुरुष छथि।
(संगीत हल्लुक भऽ जाइत अछि, दृश्य बदलैत अछि)
दोसर दृश्य –दिल्ली दरबार, रहीम ख़ानख़ाना कऽ निवास
मंच-सजावट: शाही पर्दा, आसन, किछु सैनिक आ दरबारी। रहीम हाथ में कलम आ कागज़ लेने बैसल छथि।
वाचक: दिल्ली दरबार में अब्दुर रहीम ख़ानख़ाना कवि सबहक बीच बैसल छथि। वैह समय छल जे एकटा संदेशवाहक आबैत अछि आ सनेश सुनबैत अछि।
संदेशवाहक: (प्रणाम करैत) मालिक, तुलसीदास जी सनेस पठौलन्हि। संभवतः ओ सहायता चाहैत छधि।
रहीम: (हल्लुक मुस्की कऽ संग) तुलसीदास जी ! रामभक्त आ संत कवि छथि। हुनकर सेवा केनाय हमर परम सौभाग्य हैत। (सेवक के बजबैत छथि, संगहि आदेश दैत छथि।)
जाऊ, सोना कऽ थैली लीय आ ओकरा सीधा तुलसीदास जी लग पहुंचा आऊ, मुदा माथा झुकाकेऽ।
सेवक: जे आज्ञा मालिक। (माथ झुका कऽ हाथ जोडै़त)
वाचक: सेवक विनम्रता सं सोना के थैली लऽ काशी दिस प्रस्थान करैत अछि।
तेसर दृश्य – तुलसीदास जी के आश्रम
मंच-सजावट: पहिले दृश्य एहेन। एखन तुलसीदास जी तुलसी के पौधे में जल दऽ रहल छथि।
(सेवक प्रवेश करैत अछि, पूजा उपरांत माथा झुका थैली आगू बढ़बैत अछि।)
तुलसीदास जी: (आश्चर्य सं तकैत)
कहू ऽ ई केहेन दानऽक रीति अछि!
(भावुक भऽ एकटा दोहा बजैत छथि)
“ऐसी देनी देन ज्यूँ, कित सीखे हो सायं।
देत हाथ ऊँचा करे, लेत हाथ निचायं॥”
सेवक: (आदर संग पुछैत छथि)मालिक के ई दोहा अवश्य सुनेबनि। (प्रणाम कऽ विदा लैत छथि।)
चारिम दृश्य – रहीमऽक दरबार।
सेवक वापस घुरि दरबार अबैत छथि। रहीम ध्यानमग्न बैसल छथि।
सेवक: मालिक, तुलसीदास जी आशीर्वाद पठौलन्हि आ ई दोहा सेहो कहलन्हि …(दोहा कऽ दोहरबैत छथि।)
रहीम: (मुस्कुराहट क संग कहैत छथि) ओ संत छथि, सही कहलनि।(संगहि धीरे सं ओकर उत्तर एकटा दोहा ओहो कहैत छथि)
“देवनहार कोई और है, भेजत है दिन रैन।
लोग भरम हम पर करे, ताते नीचे नैन॥”
वाचक: वाह! रहीम ने ईश्वर के असल दाता मानि अपन अहंकार के नकारि देलथि।
पांचम दृश्य – भक्ति के मिलन
मंच पर तुलसीदास जी आ रहीम दूनू प्रवेश करैत छथि।
पृष्ठभूमि में कोमल संगीत, दीपों की रोशनी।
तुलसीदास: रहीम जी, अपनेक विनम्रता हमर हृदय के छूबि लेलक।
रहीम: आ अहाँकेँ भक्ति हमरा नम्रता सिखेलक, तुलसीदास जी। ईश्वरे सबहक पालनहार छथि।
वाचक (अंत में): एहि कथा सं हमरा सबकेँ यैह शिक्षा भेटैत अछि जे धर्म, जाति वा भाषा सं पैघ होइत अछि — मानवता के धर्म आ विनम्रता केर भाव। “धर्म, भक्ति आ मानवता — यैह सत् उपासना अछि।”
“सत् दान वैह अछि जे अहंकार रहित हो,
आ सत् भक्त वैह जे प्रत्येक जीव में ईश्वर देखथि”।
(दीप प्रज्वलित होइत अछि, संगीत स्वर धीरे धीरे बढ़ैत — “रघुपति राघव राजा राम”)
पर्दा धीरे धीरे खसैत अछि
प्रारंभ: “श्रीराम जय राम जय जय राम”
मध्यांतर: हल्की बांसुरी या सितार धुन
समापन: “रघुपति राघव राजा राम”
(त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी, आपके सुझाव आमंत्रित हैं।)