#MNN24X7 कथा प्रारंभ

रामपुर रेलवे ट्रैक…
रात के करीब 10 बजे।
धुंध के बीच से एक भारी ट्रेन गुजरती है, और उसके बाद लेटा मिलता है एक शरीर—
सिर धड़ से अलग।

रेलवे पुलिस को तुरंत सूचना दी गई।
कुछ ही देर में पहचान हुई—
टीनू झा, सिविल लाइन क्षेत्र का रहने वाला।

लेकिन यह कोई साधारण हादसा नहीं था।

टीनू की जेब से मिला चार पन्नों का सुसाइड नोट—
और यहीं से कहानी मोड़ लेती है।

कुछ महीने पहले टीनू की मुलाकात एक मैट्रिमोनियल साइट पर स्नेहा से हुई।
पहली बातचीत…
फिर चैट…
फिर कर्पूरी चौक पर मुलाकातें।

धीरे‑धीरे रिश्ता गहराता गया।
टीनू को लगा—
उसे अपना जीवनसाथी मिल गया है।

लेकिन उसे नहीं पता था कि
जिसे वह प्यार समझ रहा है, वह दरअसल एक जाल था।

कुछ ही समय बाद स्नेहा ने अचानक टीनू पर रेप का केस दर्ज करा दिया।
पुलिस ने कार्रवाई की, टीनू को गिरफ्तार किया, जेल भेज दिया।

जमानत पर बाहर आने के बाद
उसका जीवन पहले जैसा नहीं रहा।

सुसाइड नोट में लिखा था—

> “जिस लड़की को मैंने अपना समझा, उसी ने मुझे बर्बाद कर दिया।”
“वह मुझे झूठे केस में फँसाने, पैसे मांगने और बदनाम करने की धमकी दे रही है।”

यह सिर्फ ब्रेकअप नहीं था…
यह मानसिक प्रताड़ना की कहानी थी।

उस शाम टीनू काली शर्ट और पैंट पहनकर घर से निकला।
किसी को नहीं पता था कि यह उसका आख़िरी दिन होगा।

रात होते‑होते घर वाले बेचैन होने लगे।
उसकी मोबाइल लोकेशन आख़िरी बार रामपुर ट्रैक के पास मिली।

और फिर…
ट्रैक पर पड़ी थी उसकी निर्जीव देह।

मगर वहां मिले
सुसाइड नोट ने पुलिस का ध्यान खींचा।
डिजिटल चैट्स की जांच हुई—
कॉल रिकॉर्डिंग्स सुनी गईं—
और सच साफ़ हो गया:

स्नेहा उसे
ब्लैकमेल कर रही थी, धमका रही थी, और मानसिक रूप से यातना दे रही थी।

सुसाइड नोट, डिजिटल सबूत और परिजनों के बयान के आधार पर
स्नेहा के खिलाफ अभियोग दर्ज कर दिया गया।

प्यार या खेल?

टीनू की मौत ने कई सवाल छोड़ दिए:

क्या यह सच में प्यार था?

या एक सोचा‑समझा खेल?

क्या हर ऑनलाइन रिश्ता भरोसेमंद होता है?

एक तरफ दिल से प्यार करने वाला युवक…
दूसरी तरफ लालच, झूठ और आरोपों में उलझी युवती।

अंत में बचा सिर्फ एक सवाल—
“इस प्यार को क्या नाम दिया जाए?”